जिम कॉर्बेट में जिसने काटे पेड़, उसे ही बना दिया डायरेक्टर, धामी के फैसले से सुप्रीम कोर्ट खफा

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है. दरअसल धामी सरकार ने एक ऐसे अधिकारी को राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक बनाया है, जिन पर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में पेड़ काटने का आरोप है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उक्त अधिकारी की जांच के लिए कमेटी बनाई थी. बता दें किआईएफएस अफसर राहुल पर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में पेड़ काटने का आरोप है. कोर्ट ने कहा कि हम सामंती युग में नहीं है, जैसा राजाजी बोलें वैसा ही होगा. तीन जजों की पीठ जिसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मुख्यमंत्री के काम पर कड़ी आपत्ति जताई है.
अदालत ने कहा कि, हम सामंती युग में नहीं हैं, जहां जो भी राजा कहते थे करना होता था. साथ ही लिखित में कारणों के साथ कुछ दिमाग का प्रयोग करना चाहिए था. अपने मंत्री और मुख्य सचिव से, सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ भी कर सकते हैं? या तो उस अधिकारी को बरी कर दिया गया हो या विभागीय कार्यवाही बंद कर दी गई हो. जिस पर राज्य सरकार की ओर से सीनियर वकील एएनएस नाडकर्णी ने मुख्यमंत्री के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया कि मुख्यमंत्री के पास ऐसी नियुक्तियां करने का विवेकाधिकार था. जिस पर कोर्ट ने कहा जब मंत्री और मुख्य सचिव से मतभेद हो तो कम से कम लिखित में कारण के साथ विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था.
सरकार की मनमानी पर कोर्ट की टिप्पणी
तीनों जजों की पीठ ने मुख्यमंत्री के कार्यों पर कड़ी आपत्ति जताई और सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत के महत्व पर जोर दिया. इस अधिकारी को पहले अवैध पेड़ काटने के आरोप में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से हटा दिया गया था. पीठ ने सरकार की मनमानी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को निलंबित करने के बजाय उसका स्थानांतरण कर देना कतई उचित कदम नहीं है.
मंत्रियों को लगा चुकी है फटकार
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के कोर एरिया में अवैध और मनमाने निर्माण के साथ पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले भी राज्य सरकार के वन मंत्री और आरोपी वन अधिकारियों को फटकार लगा चुका है. उस दौरान अदालत ने कहा था कि आप लोगों ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को कूड़ेदान में फेंक दिया है. कोर्ट ने तब टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार के इस कदम से यह बात तो साफ है कि तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ ने खुद को कानून मान लिया था.

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