झारखंड जीतने के लिए बीजेपी ने बनाया प्लान, ST आरक्षित सीटों पर उतारेगी बड़े आदिवासी चेहरे
झारखंड में सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने इस बार राज्य की आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों को जीतने पर जोर लगाया है. बीजेपी ने इस बार राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए अपने कद्दावर चेहरों पर दांव लगाने का फैसला किया है. दरअसल बीजेपी ने इस बार अपने बड़े और कद्दावर चेहरों को झारखंड चुनाव में उतारने का फैसला किया है, पर खास बात ये कि जेएमएम को टक्कर देने के लिए बीजेपी के आदिवासी चेहरे ST आऱक्षित सीटों से ही लड़ेंगे.
दरअसल बीजेपी की कोशिश है कि कोल्हान क्षेत्र और संथाल परगना की सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित की जाए. पार्टी का आकलन है कि अगर बीजेपी के बड़े आदिवासी चेहरे ST आरक्षित सीटों से लड़ते हैं तो जीत की संभावना ज्यादा होगी और पार्टी ST आरक्षित 28 में से लगभग आधी सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. बाबूलाल मरांडी का वो बयान इसकी बानगी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमने रिजर्व सीटों के लिए विशेष तैयारी की है.
फाइट करते दिखेंगे ये चेहरे
भाजपा के पुराने चेहरों में अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी , सुदर्शन भगत, गीता कोड़ा, लुईस मरांडी, सीता सोरेन, सुनील सोरेन, दिनेश ओरांव, समीर ओरांव इन ST आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ते नजर आएंगे. दरअसल बीजेपीको जमीनी कार्यकर्ताओं और स्थानीय संगठनों से फीडबैक मिला है कि पार्टी के कई आदिवासी नेता आदिवासी जनता के बीच अपनी पकड़ का दावा तो करते हैं पर चुनाव लड़ने के लिए सामान्य सीटों पर जोर लगाते है. उदाहरण के लिए प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी खुद आदिवासी हैं पर राजधनबार की सामान्य सीट से विधायक हैं. लेकिन इस बार बीजेपी ये ट्रेंड बदलने वाली है. लिहाजा इस बार पार्टी ने तय किया है कि आदिवासी चेहरों को ST आरक्षित सीटों से ही चुनाव मैदान में उतारा जाए. पार्टी को लगता है कि शहरी सीटों पर तो बीजेपी को वोट मिलते है, जीत भी मिल जाती है पर बीजेपी के लिए एसटी आरक्षित सीटें जीतना मुश्किल हो जाता है.
ये है पार्टी की योजना
बड़े आदिवासी चेहरों को आरक्षित सीटों से उतारने के पीछे ये भी तर्क है कि अगर पार्टी के आदिवासी चेहरे जेएमएम सरकार और हेमंत सोरेन के करप्शन के खिलाफ आदिवासी वोटरों के बीच में जाएंगें तो आदिवासी वोटर उनसे और बीजेपी से कनेक्ट करेंगे.इसके साथ ही बीजेपी में शामिल होने के बाद चंपाई सोरेन, उनके बेटे और लोबिन हेंब्रम भी बीजेपी के टिकट पर ST आरक्षित सीटों से बीजेपी की जीत दर्ज करने के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोकतें नजर आएंगे.2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने सबसे ज्यादा 19 और कांग्रेस ने 6 आदिवासी बहुल सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि बीजेपी ने आदिवासियों वोटरों के प्रभाव वाली सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी.
लैंड जिहाद और दामाद जिहाद के मसले को उठा रही BJP
इस बार बीजेपी है लैंड जिहाद और दामाद जिहाद जैसे मसले को भी जोर शोर से उठा रही है ताकि बांग्लादेशी घुसपैठ और इस्लामी चरमपंथियों से परेशान आदिवासी समुदाय को यह राजनीतिक संदेश दिया जा सके कि उनके समुदाय की रक्षा हेमंत सोरेन नहीं बल्कि बीजेपी की सरकार की सकती है.दूसरी तरफ झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी अपनी तैयारी कर रखी है. जहां एक तरफ हेमंत सोरेन उनको जेल भेजने के पीछे आदिवासियों के खिलाफ बीजेपी की साजिश बताते रहे हैं तो दूसरी तरफ जेएमएम को तोड़ने के पीछे भी लगातार बीजेपी को ज़िम्मेदार बताते रहे हैं.
जेएमएम को पता है कि चंपाई के जरिए भी बीजेपी हेमंत सोरेन और जेएमएम सरकार को घेरने के लिए आदिवासी कार्ड खेलेगी. यही वजह है कि हेमंत सोरेन ने अभी तक चंपाई सोरेन के खिलाफ कार्रवाई नहीं की. ना पार्टी से निकाला ना ही मंत्रिमंडल से. जेएमएम चाहती है कि चंपाई सोरेन खुद पार्टी से इस्तीफ़ा दें ताकि वो विक्टिम कार्ड या सहानुभूति कार्ड ना खेल सकें. चंपाई के बीजेपी में शामिल होने के बाद जेएमएम आदिवासियों के बीच कहेगी कि हमने तो झारखंड का सबसे बड़ा पद यानि मुख्यमंत्री बनाया पर चंपाई सोरेन ने ही बीजेपी के साथ मिलकर धोखा किया.