ट्रंप को टक्कर दे पाएंगी कमला हैरिस? क्या हैं उनकी 3 ताकत और कमजोरी

अमेरिकी राजनीति में घटनाक्रम बहुत तेजी से बदले हैं. पहले ट्रंप पर एक कातिलाना हमला, फिर कभी ट्रंप के कट्टर आलोचक रहे जेडी वेंस की उप-राष्ट्रपति के तौर पर दावेदारी से मामला दिलचस्प हो गया था. लेकिन सबसे बड़ी पहलकदमी कल 21 जुलाई को हुई. अब तक जो मुकाबला डोनाल्ड ट्रंप और बाइडेन के बीच माना जा रहा था, उसमें कल शाम ट्विस्ट आया.
बाइडेन अपनी उम्र और याद्दाश्त को लेकर बैकफुट पर थे. ट्रंप इसका फायदा उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे. लेकिन कल जैसे ही बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से हाथ पीछे खींचा, अब तक बाइडेन के मुकाबले खुद को नौजवान बताने वाले ट्रंप अमेरिकी राजनीति में सबसे उम्रदराज उम्मीदवार हो गए. ये हुआ बाइडेन की ओर से कमला हैरिस का नाम आगे बढ़ाने की वजह से.
अगर हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति उम्मीदवार चुन ली जाती हैं तब रिपब्लिकन पार्टी के लिए स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण हो सकती है. दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुई 27 जून की डिबेट में जो बाइडेन का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. अमेरिका में प्रेसडेंशियल डिबेट की ये ताकत होती है कि वह किसी को चुनाव हरा दे और किसी को चाहे तो चुनाव जीता दे. बाइडेन पर डिबेट में बढ़त हासिल करने के बाद ट्रंप को अपनी जीत पर काफी भरोसा हो गया था. लेकिन अब स्थिति दूसरी है. क्योंकि उनके सामने अब तेज-तर्रार, ऊर्जावान कमला हैरिस हो सकती हैं.
हो सकती हैं इसलिए क्योंकि भले ही जो बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए कमला हैरिस का समर्थन किया है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी का भी समर्थन मिल गया है. उनकी उम्मीदवारी पर अंतिम फैसला अगले महीने शिकागो में होने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी के कन्वेशन में होगा. इस साल की शुरुआत में आयोजित डेमोक्रेटिक पद की प्राइमरी के दौरान बाइडेन को लगभग 95 फीसदी समर्थन मिला था. इस समर्थने को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि ये प्रतिनिधि हैरिस का समर्थन करेंगे.
ऐसे में, अगर एक पल को यह मान भी लें कि कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बन जाती है तो भी उनके लिए ट्रंप को मात दे पाना इतना आसान नहीं होगा. हालिया सर्वे तो इसी बात के संकेत दे रहे हैं. हैरिस की अप्रवूल रेटिंग भी बाइडेन ही की तरह कम है. हालांकि, हैरिस समर्थकों का मानना है कि अब जब जो रेस से बाहर हो गए हैं तो आने वाले दिनों में जब कभी ट्रंप और हैरिस के बीच डिबेट होगी, सर्वे के आंकड़े तेजी से बदल जाएंगे.
पर डोनाल्ड ट्रंप भी कोई हलवा राजनेता नहीं हैं. उन्होंने पहले ही से ये कहकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि – जो बाइडेन की तुलना में कमला हैरिस को हराना और आसान होगा. पर वाकई ऐसा है भी या ट्रंप बस हवा-हवाई बातें कर रहे हैं? इसे समझने के लिए हमें कुछ बिंदुओं पर नजर डालनी होगी जो ट्रंप को टक्कर देने के मामले में हैरिस के पक्ष और खिलाफ में जाती है.
कमला के पक्ष में क्या क्या है?
पहली बात – अमेरिकी चुनाव में अब तक उम्र का सवाल सबसे ज्यादा हावी रहा है. इसी वजह से बाइडेन को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. अब जो सूरत-ए-हाल है, उसमें हैरिस को सीधे तौर पर इस हवाले से बढ़त मिल सकती है. हैरिस की उम्र 59 साल है और बाइडेन की 81. यानी वो बाइडेन से करीब 22 साल छोटी हैं. अगर वह अपनी पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की ऑफिशियल उम्मीदवार बनती हैं तो पार्टी के अंदर और बाहर युवा पीढ़ी और उनकी आकांझाओं को लीड करेंगी. ट्रंप के बारे में यही बात इतनी शिद्दत से नहीं कही जा सकती.
प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक डेमोक्रेटिक पार्टी को युवा मतदाताओं के बीच पर्याप्त बढ़त हासिल है, जबकि रिपब्लिकन पार्टी की खासी पैठ 60 के उम्र के मतदाताओं के बीच है. अगर बाइडेन की वजह से इन युवाओं का आकर्षण कम भी हुआ होगा तो वो लोग हैरिस के नाम पर फिर से डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़ सकते हैं. युवाओं के बीच हैरिस बंदूक, हिंसा, गर्भपात जैसे मुद्दों पर अपने रूख को लेकर काफी लोकप्रिय रही हैं.
दूसरी बात – अमेरिका में रंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव का इतिहास काफी गहरा है. कुछ हद तक अब भी अश्वेत लोगों में ये भावना है कि उनके साथ उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है. हैरिस जो खुद अश्वेत हैं, 2020 में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद ब्लैक लाइव्स मैटर्स आंदोलनों में मुखर आवाज बनकर उभरीं,
ऐसे में उन्हें अफ्रीकी-अमरीकी नेता के तौर पर एक मजबूत पहचान मिली. कमला उन सांसदों में से एक रही हैं जिन्होंने रंग के आधार पर भेदभाव करने वाले पुलिसवालों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए जस्टिस इन पुलिसिंग एक्ट का समर्थन किया था. हालांकि, ये पास नहीं हो पाया. बावजूद इसके, उनकी कोशिश और मुखरता के मद्देनजर, उन्हें अमेरिका के एशियन और अश्वेत लोगों का समर्थन मिलना आसान होगा.
तीसरी बात – अमेरिका में गर्भपात के अधिकार को लेकर लगभग 50 साल से बहस जारी है. डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टी की इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है. डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी का मानना है कि गर्भ में बच्चे की जान लेना पाप है, वहीं डेमोक्रेटे्स का मानना है कि महिलाओं का उनके शरीर पर पूरा अधिकार है. ईसाई धर्म में चूंकि अबॉर्शन को गलत माना जाता है, इसलिए कोई भी लीडर इसपर खुलकर बोलने से बचता रहा है. लेकिन कमला हैरिस अबॉर्शन राइट के पक्ष में खुलकर बोलती आई हैं. महिलाओं में, खासकर नौजवान पीढ़ी में उन्हें इसका लाभ मिल सकता है.
इसी साल मार्च महीने की बात है, जब कमला हैरिस ने एक अबॉर्शन क्लिनिक जाकर सभी को चौंका दिया था. अमेरिका में ऐसा पहली बार हो रहा था जब कोई उपराष्ट्रपति ऑफिशियल दौरे पर किसी गर्भपात सेंटर में पहुंचा हो. ऐसा कर कमला ने साबित किया कि वे अधिकारों की लड़ाई में अमेरिका की महिलाओं के साथ हैं. और उनके बयान केवल और केवल दिखावे के लिए नहीं हैं. चुनाव में ये चीजें उनके पक्ष में जा सकती हैं. यही नहीं डेमोक्रेट्स LGBTQ+ समुदाय का समर्थन करते हैं, वहीं ट्रंप का रूख इस पर काफी सख्त है. ऐसे में ये समुदाय भी कमला को वोट कर सकता है.
कमला के खिलाफ कौन सी चीजें जा सकती हैं?
पहली बात – हैरिस को अगर डेमोक्रेट्स की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार चुन भी लिया जाता है तो उनके पास प्रचार करने और पार्टी और मतदाताओं को अपने पीछे एकजुट करने के लिए मुश्किल से तीन महीने ही होंगे. इन तीन महीनों में ही उन्हें ट्रम्प के खिलाफ एक मजबूत जमीन तैयार करनी होगी. जो इतना आसान नहीं होगा.
दूसरी बात – दूसरी सबसे बड़ी चुनौती गैर कानूनी प्रवासियों का मुद्दा है. इसको लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी पहले ही से बैकफुट पर है. ट्रम्प इसे अमेरिका में एक बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब भी रहे हैं. 19 जुलाई को रिपब्लिकन पार्टी के कन्वेशन में ट्रंप ने एक चार्ट की तरफ इशारा किया था. इसमें उन लोगों की संख्या थी जो डेमोक्रेटिक पार्टी की सत्ता में गैर कानूनी तरीके से अमेरिका आए.
अब दिक्कत ये है कि जो बाइडेन ने प्रशासन संभालने के बाद कमला हैरिस को मेक्सिको से बढ़ते अवैध प्रवासियों के संकट से निपटने की जिम्मेदारी दी थी. पर जानकार मानते हैं कि वह इसमें कुछ खास सफल नहीं हो पाईं. ऐसे में, ट्रंप उनको इस मुद्दे पर काफी घेर सकते हैं.
तीसरी बात – आख़िरी और शायद सबसे जरूरी बात. कमला हैरिस पहले भी अमेरिकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी हासिल करने की कोशिश कर चुकी हैं. मगर साल 2020 में वो अपने बुरे प्रदर्शन की वजह से नाकाम साबित हुई थीं. अगर ये पुरानी चीजें एक दफा नए सिरे से कमला पर हावी होती हैं तो उनके लिए ट्रंप के सामने खुद को मजबूती से रख पाना काफी मुश्किल और जोखिम भरा भी हो सकता है.

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