डेब्यू से पहले पैरालिसिस, 5 महीनों तक बेड पर पड़ा रहा, अब पेरिस ओलंपिक में कारामात दिखाएगा ये हॉकी खिलाड़ी

हॉकी के खेल में भारतीय हॉकी टीम का लंबे समय तक दबदबा रहा. इसके दम पर ही टीम ने ओलंपिक में 12 मेडल जीते, जिसमें 8 गोल्ड मेडल भी शामिल है. 1980 में आखिरी गोल्ड मेडल जीतने के बाद भारत का ये दबदबा खत्म हो गया था और इस खेल में अगला मेडल हासिल करने में 41 साल लग गए. हालांकि, पिछले कुछ सालों से टीम के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है. 2020 का टोक्यो ओलंपिक इसका बड़ा उदाहरण है, जहां टीम ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया था. अब एक बार फिर भारतीय हॉकी टीम ने पेरिस ओलंपिक के लिए कमर कस ली है. इस टीम में पंजाब के सुखजीत सिंह को शामिल किया गया है, जो इंजरी के बाद 5 महीनों तक बेड पर रह चुके हैं और पैरालिसिस जैसी बीमारी को मात देकर टीम में वापसी की है.
एक इंजरी ने सपने पर लगाया ब्रेक
पंजाब के रहने वाले सुखजीत सिंह 26 जुलाई से शुरू होने वाले पेरिस ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा हैं. 28 साल के सुखजीत पहली बार ओलंपिक खेलने जा रहे हैं. अपनी सेलेक्शन के बाद उन्होंने कहा था कि इतने बड़े टूर्नामेंट में खेलना उनका और उनके परिवार सपना था, जो अब पूरा होने जा रहा है. हालांकि, 2022 में टीम इंडिया के लिए डेब्यू करने वाले फॉरवर्ड खिलाड़ी के लिए ये सफर इतना आसान नहीं रहा है. सुखजीत 6 साल पहले 2018 में ही टीम के लिए डेब्यू करने वाले थे, लेकिन एक लेग इंजरी ने उनकी पूरी दुनिया पलट दी. वो टीम इंडिया के लिए डेब्यू करने से चूक गए.
5 महीनों तक बेड पर पड़े रहे
सुखजीत सिंह के पिता अजीत सिंह पंजाब पुलिस में कार्यरत हैं और वो भी एक हॉकी खिलाड़ी रह चुके हैं. उन्होंने अपने बेटे को 6 साल की उम्र से ही हॉकी खिलाना शुरू कर दिया था. इतनी कम उम्र में शुरुआत करने के बाद सुखजीत का टीम इंडिया में खेलने का सपना मुश्किलों से भरा रहा. 2018 में डेब्यू से ठीक पहले उन्हें बैक इंजरी हुई. इसके कारण वो 5 महीने तक बेड पर रहे थे. इतना ही नहीं इस इंजरी की वजह से उनका दायां पैर अस्थायी रूप से पैरालिसिस का शिकार हो गया था. वो चल भी नहीं पाते था, यहां तक खुद से खाना भी नामुमकिन हो गया था.
सुखजीत ने नहीं मानी हार
5 महीने तक बेड पर रहने और पैरालिसिस का शिकार होने के बावजूद सुखजीत ने हार नहीं मानी. उन्होंने इसे अपनी जिंदगी का सबसे बुरा और मुश्किल वक्त बताया. एक वक्त तो उन्हें ऐसा लगने लगा था कि धीरे-धीरे टीम इंडिया के लिए हॉकी खेलने का सपना हाथ से दूर होता जा रहा है. सुखजीत ने इतनी मानसिक और शारीरिक परेशानी सहने के बावजूद हार नहीं मानी. उनकी रिकवरी में उनके पिता का अहम योगदान रहा.
सुखजीत के पिता लगातार उन्हें प्रेरित करते रहे, जिससे उनका आत्मविश्वास जागा. उन्हें लगने लगा कि वो इस बीमारी हरा सकते हैं. इसका नतीजा हुआ कि वो आज चोट से उबरने के बाद सुखजीत ने प्रो लीग 2021-22 के सीजन में स्पेन के खिलाफ डेब्यू किया. इसके बाद अगले दो साल में उन्होंने 70 मैच खेले. इस दौरान उन्होंने 20 गोल दागकर शानदार प्रदर्शन किया और ओलंपिक के लिए जगह बनाई.

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