ड्राइविंग करते समय फॉलो करें ये 3 रूल्स, कभी नहीं होगा एक्सीडेंट!

भारत में तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ रही है, कुछ इसी रफ्तार से सड़क, हाईवे और एक्सप्रेस वे का निर्माण भी हो रहा है. इन सबके बीच में देश में लगातार सड़क दुर्घटना के मामलों में भी तेजी आ रही है. ऐसे में कहीं न कहीं सवाल उठना लाजमी है कि रोड़ पर हम कुछ तो गलती वाहन चलाते समय कर रहे हैं.

इसीलिए हम आपके लिए वाहन चलाते समय ध्यान रखने वाली कुछ बातों की जानकारी लेकर आए हैं, जो हादसों के बढ़ते हुए आंकड़ों को रोकने में काफी मददगार साबित हो सकती है. आइए जानते हैं इन टिप्स के बारे में…
लेन चैंजिंग का सेंस
यह न केवल महत्वपूर्ण ड्राइविंग एटिकेट है, बल्कि इसका पालन न करने पर हादसों का भी प्रमुख कारक बन जाता है. मगर भारत में इसका सबसे कम ध्यान रखा जाता है. अक्सर देखने में आता है कि यदि हमारे आगे चल रही कार धीमी हो रही है तो हम अपनी गाड़ी को धीमी करने के बजाय तुरंत उसकी दायीं या बायीं तरफ से निकलने का प्रयास करते हैं. लेन बदलने पर कोई मनाही नहीं है, लेकिन ड्राइविंग एटिकेट कहता है कि लेन बदलने से पहले हम यह सुनिश्चित करें कि हमारे पीछे से दायीं या बायीं ओर से कोई भी वाहन कम से कम 25 मीटर दूर हो. इसके बाद समुचित इंडिकेटर दीजिए, अपने वाहन को थोड़ा धीमा करके लेन को इस तरह आहिस्ता से बदलें कि आप दूसरी लेन में सहजता से मर्ज हो जाएं. ध्यान रहें, सबसे ज्यादा हादसे लेन बदलने के दौरान ही होते हैं.
पार्किंग का सेंस
वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ ही पार्किंग की समस्या भी बढ़ती जा रही है. लेकिन यह समस्या तब और बढ़ जाती है, जब हम पार्किंग एटिकेट भूल जाते हैं. हम यह ध्यान रखते हैं कि केवल हमारी कार को पर्याप्त जगह मिले. कई बार तो ऐसा भी होता है कि जहां तीन या चार कारें पार्क हो सकती हैं, वहां भी हम इस तरह से कार पार्क करते हैं कि दूसरों को पार्किंग करने में दिक्कत आती है. तो इसका शिष्टाचार यही है कि अगर आपके पास पर्याप्त जगह हो, तब भी आप पार्किंग के लिए यथासंभव उतनी ही जगह का इस्तेमाल करें कि आपके बाद आने वाली कारों के लिए भी स्पेस निकल जाए. ध्यान रहें कि गलत पार्किंग या आड़ी-तिरछी पार्किंग भी कई बार हादसों की वजह बन जाती है.
लाइट्स का सेंस
वाहन चलाते समय लाइट्स एटिकेट होने भी जरूरी हैं. हर कार (और दो पहिया वाहन में भी) में दो लाइट्स होती हैं- अपर और डीपर. अपर लाइट्स में हाईबीम होती है, जबकि डीपर लाइट्स में लो बीम होती है. शहरों में हमेशा लो बीम में गाड़ी चलाने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि हाई बीम में सामने वाले की आंखों में चमक पड़ने से वह अपने वाहन से कंट्रोल खो सकता है और हादसा होने की आशंका भी बढ़ जाती है. इसी तरह अगर आप हाई बीम में कार चला रहे हैं तो आपके आगे वाली कार के मिरर पर भी उसका रिफ्लेक्शन पड़ने से उसे दिक्कत हो सकती है.

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