ताइवान में राष्ट्रपति की ताकत घटाने वाला बिल पास, जानिए इसे क्यों चीन के समर्थन वाला माना जा रहा?
ताइवान में इसी साल चुने गए राष्ट्रपति लाइ चेंग टे को चीन का आलोचक माना जाता है. चीन भी उनसे बड़ी नफरत करता है. मगर वहां की संसद में नेशनलिस्ट (केएमटी पार्टी) का कब्जा है जो चीन का हिमायत करने वाली पार्टी मानी जाती है.
केएमटी पार्टी ने एक ऐसा बिल संसद से पास करा लिया है जिससे ताइवान के राष्ट्रपति की शक्ति घट सकती है. इस बिल से सबसे अहम बदलाव ये होगा कि देश के बजट पर नियंत्रण, खासकर रक्षा पर खर्च संसद के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा जहां विपक्षी पार्टियां बढ़त लिए हुए हैं.
क्या ये बिल कानून बन पाएगा?
इस बिल के पास होने के बाद देशभर में व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं. हजारों लोग सड़कों पर आ गए हैं और इस बिल को ताइवान के लोकतंत्र के लिए घातक बता रहे हैं. हालांकि, पारित हुआ विधेयक कानून बन पाएगा या नहीं, इसको लेकर चीजें अभी बहुत स्पष्ट नहीं हैं.
ताइवान के प्रधानमंत्री अगर बिल पर वीटो लगा देते हैं तो कानून नहीं बनेगा. ऐसा भी हो सकता है कि ताइवान के पीएम इसे राष्ट्रपति को भेज दें. राष्ट्रपति को 10 दिन के भीतर नए बिल को कानून घोषित करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर संसद से पारित हुआ बिल कानून नहीं बनेगा.
ताइवान की पार्टियों का रुख क्या है?
ताइवान में केएमटी पार्टी विपक्ष में है. इस पार्टी को नेशनलिस्ट भी कहा जाता है. यह दल ताइवान का चीन के साथ एकीकरण की वकालत करती है जबकि मौजूदा राष्ट्रपति लाइ चेंग टे की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी का मानना है कि ताइवाव एक आजाद देश है और वह लोकतांत्रिक परंपराओं से चलेगा.
1949 के गृह युद्ध के बाद ताइवान एक अलग देश के तौर पर अस्तित्त्व में आया. इसके बाद ही से चीन इस पर पूरी तरह नियंत्रण को लेकर कोशिशें करता रहा है. इस कड़ी में वह कई बार आक्रामक रुख भी अपना चुका है जिसकी निंदा पश्चिम के देश करते रहे हैं और वे ताइवान के डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के विचारों का समर्थन करते हैं.
ताइवान पर अमेरिका और चीन
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने ताइवान के विपक्षी पार्टी केएमटी और ताइवान पीपल्स पार्टी पर इल्जाम लगाया है कि इन्होंने नए विधेयक के जरिये ताइवान के लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश की है. वहीं, केएमटी पार्टी इसको एक जरुरी सुधार बताती है.
ताइवान करीब 40 बरसों तक केएमटी पार्टी के अंतर्गत मार्शल लॉ में रहा है. चीन लगातार ताइवान के नजदीक प्लेन भेज ताइवान की सीमा का उल्लंघन करता रहा है. अमेरिका ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध न होते हुए भी ताइवान की सुरक्षा में सहयोग करता रहा है.