तिब्बत से चीन को क्या है दिक्कत, अमेरिका के ऐलान से क्या बदलेगा?
चीन तिब्बत पर फिर बौखलाया हुआ है. इस गुस्से का कारण अमेरिका है. फिलीपींस और हांगकांग के बाद अब यूएस ने तिब्बत का राग छेड़ दिया है. भारत पहुंचे अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने ऐलान किया है कि अमेरिका जल्द ही तिब्बत को स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे देगा. इस पर चीन ने कहा है कि अमेरिका दुनिया को बरगलाना बंद करे. चीन ने तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के बारे में भी कहा है कि वह धर्म की आड़ में चीन विरोधी अभियान चला रहे हैं.
तिब्बत पर चीन ने कब्जा कर रखा है. यहां के कुछ इलाकों को चीन के प्रांतों में मिला दिया गया है तो कुछ को चीन ने अपनी संप्रभुता में ही स्वतंत्र क्षेत्रों के तौर पर मान्यता दे रखी है. अमेरिका की हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के चेयरमैन माइकल मैक्कॉल के साथ भारत पहुंचे दल ने तिब्बत की आजादी का समर्थन किया.
क्यों बौखलाया है अमेरिका?
तिब्बत पर चीन का अधिकार है. उसका दावा है कि सदियों से तिब्बत पर उसकी संप्रभुता रही है. हालांकि तिब्बती लोग ऐसा नहीं मानते वह आज भी दलाई लामा के प्रति वफादारी रखते हैं. उधर चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी और खतरा मानता है. दरअसल अमेरिकी संसद ने 12 जून को Resolve Tibet Act से जुड़ा पारित किया है. इसके तहत चीन में तिब्बत के बारे में फैलाए जा रहे दुष्प्रचार के बारे में जागरूक करने के लिए फंड मुहैया कराया जाएगा. इसके बाद अमेरिकी संसद की पूर्व सांसद नैंनी पेलोसी ने दलाई लामा से भी मुलाकात की, जिससे चीन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया है.
क्या है तिब्बत विवाद?
चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा करने के लिए सैनिक भेजे थे. लिया था. इसके लिए हजारों की संख्या में सैनिक भेजे गए थे. चीन का तर्क था कि तिब्बत पर चीन का अधिकार रहा है, हालांकि तिब्बत के लोग ऐसा नहीं मानते. दरअसल इतिहास के मुताबिक एक समय में मंगोल राजा कुबलई खान का तिब्बत, चीन, वियतनाम और कोरिया तक अपने राज्य का विस्तार किया गया था. सत्रहवीं शताब्दी में चिंग राजवंश ने तिब्बत पर कब्जा किया था, लेकिन तीन साल बाद ही तिब्बत के लोगों ने उसे खदेड़ दिया था. 1912 तक सब कुछ सामान्य था. चीन के साथ विवाद की शुरुआत 1912 में हुई जब तेरहवें दलाई लामा में तिब्बत की स्वतंत्रता का ऐलान किया था. इसके बाद से ही तनाव बढ़ता रहा और 1950 में सेना भेजकर चीन ने 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. इसके बाद 1959 में चीन के खिलाफ विरोध की आवाज उठी. यह विद्रोह पूरी तरह नाकाम रहा. इसके बाद दलाईलामा को तिब्बत छोड़कर भारत आना पड़ा था.
#WATCH | Himachal Pradesh: US Representative Congressman Gregory Meeks says, “China can express unhappiness if it wants. We are going to stand for what is right. What is right is to make sure that Tibetans have freedom. They are able to return to their native land and they are pic.twitter.com/aEAaO1qFle
— ANI (@ANI) June 19, 2024
चीन ने क्या कहा ?
भारत में हुई इस मुलाकात से चीन किस कदर बौखलाहट में है वो उसके बयानों में साफ झलकता है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि 14वें दलाई लामा शुद्ध धार्मिक व्यक्ति नहीं बल्कि धर्म की आड़ में चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में लगे हुए एक राजनीतिक निर्वासित व्यक्ति हैं. तिब्बत मामले पर अमेरिका अपने वादों का सम्मान करे और किसी भी प्रकार से दलाई लामा के समूह के साथ संपर्क ना करे.
अमेरिका के समर्थन से क्या बदलेगा?
अमेरिका के तिब्बत को स्वतंत्र तौर से मान्यता देने से भारत को कई फायदे हो सकते हैं, पहले तो भारत चीन के खिलाफ एक रणनीतिक साझेदार बन सकता है. उधर बाइडेन ताइवान के साथ-साथ तिब्बत पर पंगा लेकर जनता में ये संदेश देना चाहते हैं कि चीन को लेकर वह नरम नहीं हैं. दूसरा कारण अमेरिकी और चीन के बीच बारगेन पावर बढ़ सकता है. ताइवान पर चीन आक्रामक है.ऐसे में तिब्बत का मुद्दा उछालकर उस पर दबाव बनाने की कोशिश की जा सकती है.