तीसरे कार्यकाल में पीएम मोदी की पहली पसंद क्यों बना रूस? इससे कारोबार पर कितना असर

पीएम मोदी रूस की यात्रा पर हैं. यह पीएम का दो दिवसीय (8 और 9 जुलाई) दौरा है. पीएम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के न्योते पर वहां गए हैं. मोदी की इस यात्रा पर देश और दुनिया की निगाहें हैं, क्योंकि भारत और रूस एक सबसे भरोसेमंद साथी हैं. इतिहास के पन्नों से लेकर वर्तमान की खबरों तक आप कहीं भी नजर उठा कर देख लीजिए. इन दो देशों के बीच की दोस्ती में आपको कहीं कमी नहीं दिखाई देगी. शायद यही वजह है कि पीएम मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए रूस को चुना है. आज की स्टोरी में हम यह समझेंगे कि पीएम मोदी की यह यात्रा भारत के कारोबार के लिए किन मायनों में कारगर है और सबसे जरूरी बात की इससे भारत के कारोबार जगत पर कितना असर देखने को मिलेगा.
पांच साल में पहली बार रूस जा रहे मोदी
पिछले पांच सालों में पहली बार पीएम मोदी रूस की यात्रा पर हैं. यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब रूस के ऊपर यूरोप समेत अमेरिका ने कई कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं. इस प्रतिबंध का कारण यूक्रेन पर हमला करना बताया है. इन पांच सालों में पीएम मोदी ने वर्ष 2022 में पुतिन से मुलाकात की थी, लेकिन यह बैठक मॉस्को में नहीं बल्कि उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित SCO सम्मेलन में हुई थी. उस बैठक में भी मोदी ने पुतिन से कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है. बता दें कि नई दिल्ली और मॉस्को के बीच दशकों से अच्छे संबंध रहे हैं, खासकर 1971 में जब भारत और पूर्व सोवियत संघ द्वारा भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर साइन किया गया था.
भारत और रूस दोनों एक दूसरे के लिए जरूरी क्यों?
शुरू से ही मास्को ने एशिया में अमेरिकी और चीनी प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए भारत के साथ अपने गठबंधन को ज़रूरी माना है और भारत को हमेशा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रूस जैसी बड़ी शक्ति का समर्थन मिला है. 1961 में जब भारत ने गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाली औपनिवेशिक संप्रभुता को समाप्त करने के लिए अपनी सेना का इस्तेमाल किया, तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की ने भारत की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया और भारत सरकार से तुरंत अपने सैनिकों को वापस बुलाने का आह्वान किया तब भी सोवियत संघ ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था.
सोवियत संघ ने 1957, 1962 और 1971 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को वीटो कर दिया था, जिसमें कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की गई थी. इस बात पर जोर देते हुए कहा था कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए हल किया जाना चाहिए. रूस ने सामान्य तौर पर भारत-पाक संघर्ष पर भी ऐसा ही रुख अपनाया. भारत में राजनीतिक स्पेक्ट्रम में इस तरह के रुख की सराहना की गई.
कारोबार पर इस यात्रा का कितना असर?
भारत का अधिकांश सैन्य हार्डवेयर अभी भी सोवियत-रूसी मूल का है, जिसके लिए स्पेयर पार्ट्स की ज़रूरत होती है. उदाहरण के लिए भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों का बड़ा हिस्सा रूसी मूल का है. भारत ने रूस पर लगे प्रतिबंधों और एक देश पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए रक्षा खरीद में दूसरे देश को भी लाना शुरू कर दिया है, लेकिन फिर भी भारत को रूस से अब भी लंबे समय तक कई हथियारों के पार्ट्स की जरूरत होगी. इसके अलावा भारत को रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के दो स्क्वाड्रन भी मिलने हैं, और कुछ सुखोई लड़ाकू विमानों की भी भारत तलाश कर रहा है.
भारत की चिंता यह है कि रूस, चीन के साथ संवेदनशील तकनीक साझा कर सकता है और यह भी डर है कि रूस, चीन या पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति में स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति धीमी कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो भारत को नुकसान उठाना पड़ सकता है और यही कारण है कि भारत, रूस और पश्चिम देशों के बीच संबंधों को संतुलित करने के लिए रणनीतिक तरीका अपना रहा है.
इतने अरब डॉलर का हुआ दोनों देशों के बीच ट्रेड
इंडियन एंबेसी वेबसाइट पर मौजूद डेटा के मुताबिक, भारत और रूस के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग बढ़ाना दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व के लिए जरूरी है. 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 4 लाख 17 हजार करोड़ और द्विपक्षीय व्यापार को 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 2 लाख 50 हजार करोड़ तक बढ़ाने का लक्ष्य है.
भारतीय आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020-मार्च 2021 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार 8.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. भारतीय निर्यात 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जबकि रूस से आयात 5.48 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. इसी अवधि के लिए, रूसी आंकड़ों के अनुसार, द्विपक्षीय व्यापार 9.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें भारतीय निर्यात 3.48 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात 5.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर था.
भारत बना सबसे बड़ा खरीदार
मई 2024 तक के आंकड़ों पर बात करें तो भारत रूस के समुद्री कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, क्योंकि 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद पश्चिम ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए थे. भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) ने रोसनेफ्ट के साथ एक साल का समझौता किया है, जिसके तहत वह हर महीने कम से कम तीन मिलियन बैरल रूसी तेल खरीदेगी, जिसका भुगतान रूबल में किया जाएगा. RIL रूस के प्रशांत बंदरगाह कोज़मिनो से कम सल्फर वाले कच्चे तेल, मुख्य रूप से ESPO ब्लेंड के एक से दो कार्गो भी हर महीने खरीदेगी.
दुबई के भावों की तुलना में तेल को 1 डॉलर प्रति बैरल के प्रीमियम पर खरीदा जाएगा. RIL रूस के गज़प्रॉमबैंक और भारत के HDFC बैंक का उपयोग करके तेल का भुगतान करेगी. कुल मिलाकर देखें तो भारत और रूस के बीच का ये संबंध आगे भी तेल की कीमतों को कंट्रोल में रख सकता है. साथ ही इससे भारतीय कंपनियों के कच्चे तेल को खरीदने में परेशानी नहीं आएगी.

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