दिलजीत दोसांझ के कॉन्सर्ट में पहुंचे ट्रूडो, गर्मजोशी से सिंगर से की मुलाकात, क्या प्रवासियों को साधने की है रणनीति
टोरंटो के रोजर्स पार्क में अचानक प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आ गए और गायक दिलजीत दोसांझ से मिले. कनाडा में बसे सिखों का हौसला बढ़ाने के लिए जस्टिन ट्रूडो का यह कदम रणनीतिक हिसाब से एकदम दुरुस्त है. अगले वर्ष कनाडा में संसदीय चुनाव हैं और लोकप्रियता खो रहे प्रधानमंत्री ट्रूडो के लिए प्रवासियों का दिल जीतने का यह एक उपाय हो सकता है. लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री ट्रूडो लोकप्रिय भारतीय गायक दिलजीत दोसांझ से मिलने के बहाने भारत के साथ अपनी खुन्नस भी निकाल गए.
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक तो अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पहले ट्विटर) पर स्पष्ट लिखा कि पंजाबी गायक दिलजीत दोसांझ से मिल कर उन्हें बहुत ख़ुशी हुई. दूसरे, उन्होंने कनाडा को एक बहुभाषी और बहु संस्कृतियों वाला देश बताते हुए पंजाबियों के योगदान की सराहना की. इससे उन्होंने प्रवासी भारतीयों और पंजाबियों को साधने की कोशिश की.
भारतीय पहचान मिटाने की साज़िश
दिलजीत दोसांझ पंजाबी भाषा के भी गीत गाते हैं और हिंदी गायन में उनका बड़ा नाम है. फिर जब कोई भारत का निवासी भारत के बाहर होता है तो उसकी पहचान भारतीय होती है. जिस तरह प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो कनाडा को मल्टी लिंग्वल, मल्टी रैशियल और मल्टी कल्चरल देश बताते हुए भी उसकी पहचान कनेडियन बताते हैं. उसी तरह भारत की सेलिब्रिटी की पहचान भी भारतीय हुई न कि पंजाबी.
ज़ाहिर है ट्रूडो की न तो ज़ुबान फिसली न अपने मोबाइल पर अँगुली. यह कोई टाइपो इरर भी नहीं है, बल्कि जान-बूझ कर की गई त्रुटि है. अब या तो सिखों की भारत से अलग पहचान बता कर जस्टिन ट्रूडो अलग सिक्खिस्तान (ख़ालिस्तान) की मांग को बढ़ावा दे रहे हैं अथवा इस तरह वे भारत को उसकी औक़ात बताना चाहते हैं, कि देखो हमें तुम वही सम्मान दो जो अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी और इटली को देते हो.
हिंदुओं के प्रति बेरुख़ी
खुद कनाडा में रह रहे भारतीयों की इस पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं. कुछ मानते हैं कि जस्टिन ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी जनाधार खो चुकी है इसलिए वे भारत से आए प्रवासियों को पटाने के लिए दिलजीत दोसांझ से मिलने पहुँचे. मगर एक सवाल है कि उनका विशेष झुकाव भारत से कनाडा आए सिखों की तरफ़ ही क्यों है, उनमें भी जिनसे अलगाववाद को खुराक मिले. वे कनाडा में रहने वाले हिंदुओं के प्रति अपना बड़ा दिल क्यों नहीं दिखाते. हिंदुओं के प्रति उनकी कोई विशेष नरमी नहीं है.
आज की तारीख़ में कनाडा में हिंदू प्रवासियों की आबादी सिखों से अधिक है. इससे तो यही माना जाएगा कि उन्हें कनाडा की नागरिकता ले चुके हिंदुओं के वोटों के प्रति कोई दिलचस्पी ही नहीं है. मज़े की बात कि उनके प्रतिद्वंदी और कंज़र्वेटिव पार्टी के मुखिया पियरे पोलिवर का भी रुख़ हिंदुओं के प्रति उदासीनता से भरा हुआ है.
सिख अलगाववादियों को शरण देता है कनाडा
कनाडा में हिंदी टाइम्स मीडिया (HMT Group) के समूह संपादक राकेश तिवारी कहते हैं, कि पार्टी कोई भी आए विदेश नीति इतनी आसानी से नहीं बदलती. भारत और कनाडा के बीच खटास तो 1980 से चली आ रही है. तब भी कनाडा सिख अलगाववादियों की शरण स्थली बना हुआ है. जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो उस समय के प्रधानमंत्री थे. उनके हटने के एक वर्ष बाद कनिष्क विमान हादसा हुआ था.
अटलांटिक महासागर के ऊपर से उड़ रहे एयर इंडिया के बोइंग विमान को तब उड़ा दिया गया था, उसमें 329 लोग मारे गए थे. इसमें 307 यात्री और 22 क्रू मेम्बर थे. विमान मांट्रियाल से दिल्ली की उड़ान पर था. इस हादसे में 268 कनाडा के नागरिक थे और 24 भारत के तथा 27 ब्रिटिश नागरिक थे. 23 जून 1985 को हुआ यह हादसा एयर इंडिया का सर्वाधिक भीषण हादसा था.
भारतीय अधिकारी भी कनाडा के प्रति उदासीन
श्री तिवारी के अनुसार कनाडा और दिल्ली के बीच यह कटुता कैसे पनपी, यह एक अनजाना विषय है. वैसे किसे नहीं पता कि कनाडा एक तरह से अमेरिका का उपग्रह है. कनाडा की पूरी सीमा अमेरिका से सटी है या फिर महासागर है. दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध इस तरह के हैं कि यदि अमेरिका अपनी सप्लाई चेन बंद कर दे तो कनाडा में त्राहि-त्राहि मच जाए. खाने-पीने, ओढ़ने-बिछाने की सारी सामग्री अमेरिका से आती है. यद्यपि कनाडा के पास विशाल तेल भंडार हैं. दुनिया के संपूर्ण पेय जल का सात प्रतिशत हिस्सा कनाडा के पास है.
अर्थ व्यवस्था पूरी तरह सुदृढ़ है. क्योंकि लगभग एक करोड़ वर्ग किमी के क्षेत्रफल वाले इस देश में आबादी महज़ चार करोड़ के क़रीब है. इसमें भी यदि प्रवासी हटा दिए जाएं तो यह आबादी तीन करोड़ ही रह जाएगी. कुल आबादी का 23 प्रतिशत यहाँ प्रवासी हैं. अब तो यहाँ यूरेनियम का भी पता चला है. इसके बावजूद भारत सरकार के अफ़सर कनाडा के साथ दूरी बरतते हैं. वे यहाँ के हिंदुओं की समस्या से नहीं समझते.
सिखों को भारतीय नहीं मानते ट्रूडो
यह विचित्र है कि कनाडा में 18.5 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. इसमें 828000 हिंदू हैं और 771000 के क़रीब सिख बाक़ी में अन्य धर्मावलंबी. अर्थात् हिंदू आबादी यहाँ काफ़ी अधिक है. क्योंकि भारत के अलावा नेपाल, बांग्ला देश, पाकिस्तान, श्रीलंका, सूरीनाम, गयाना, फिजी और मारीशस के हिंदू भी यहाँ बड़ी संख्या में हैं. इसके अलावा इस्लाम के अनुयायियों की भी आबादी यहाँ खूब है. अकेले पाकिस्तान और बांग्ला देश के मुसलमान ही नहीं बल्कि इराक़, यमन, ज़ोर्डन, लेबनान और फ़िलिस्तीन से आए लोग यहाँ बसे हैं.
शरणार्थियों में अफ़ग़ानिस्तान के लोग सर्वाधिक हैं. कुल 4.9 प्रतिशत यहाँ मुस्लिम है. इसके बाद चीनी मूल के लोग बसे हैं कोई 4.7 प्रतिशत. इस तरह कनाडा एक ऐसा देश है, जहां हर धर्म और हर देश के लोग बहुतायत में हैं. और उनकी पहचान कनेडियन हैं. किंतु जब भी भारत की बात आती है, जस्टिन ट्रूडो सिखों को अलग कर देते हैं.
भारत-रूस मैत्री की खुन्नस
USA, UK और कनाडा तीनों सिखों के मुद्दे पर भारत से अलग राय रखते हैं. भारत को ले कर यह स्टैंड पुराना है, इसके पीछे खुन्नस भारत-रूस की प्रगाढ़ मैत्री है. कोई भी प्रधानमंत्री आए, जाए ये देश सिख अलगाववाद को उकसाते हैं. इसके बाद इस्लामोफोबिया का हमें भय दिखाते हैं. निज्जर हत्याकांड पर कनाडा निरंतर दबाव बनाए हुए हैं और इस हत्याकांड में वह भारत को घेरने की फ़िराक़ में हैं.
अमेरिका का आरोप है कि भारत अपने कूटनीतिकों की मार्फ़त गुरपरवंत सिंह पन्नू को मारने की कोशिश में है. जो बाइडेन प्रशासन का कहना है, कि भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता ने पन्नू की हत्या की साज़िश रची थी. जबकि भारत इस मामले में जांच समिति गठित कर चुका है. पन्नू को भारत में आतंकवादी घोषित किया जा चुका है. उसके पास कनाडा और अमेरिका दोनों की नागरिकता है.
NDP की बैशाखी
अमेरिका के फ़िलेडेल्फ़िया में रह रहे भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक अतुल अरोड़ा का कहना है, कि कनाडा में लिबरल पार्टी और USA में जो बाइडेन की डेमक्रैटिक पार्टी अपना जनाधार खो रही हैं. ऐसे में भारतीय प्रवासी उनका अकेला सहारा हैं. UK में लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर भारतीयों के वोट से जीते इसलिए ये सब भारतीयों पर डोरे डाल रहे हैं. लेकिन USA और UK में वहाँ की सरकारों ने हिंदू-सिख के बीच दरार पैदा करने की ख़ास कोशिश नहीं की. मगर कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार एक तो न्यू डेमक्रैटिक पार्टी (NDP) की बैशाखियों पर हैं. और कनाडा में 18 सांसद सिख हैं इसलिए ट्रूडो सिख वोटों को अपना बैंक समझते हैं. इसलिए जो भी सिख सेलिब्रिटी कनाडा आता है, उससे मिलने को ट्रूडो आतुर रहते हैं.
सिख-मुस्लिम गठजोड़
टोरंटो के समीप एजेक्स में रह रहे स्वतंत्र लेखक/पत्रकार समीर लाल कहते हैं, कि जस्टिन ट्रूडो NDP के मुखिया जगमीत सिंह के दबाव में सिखों को छोड़ नहीं सकते. दूसरी तरफ़ उनका एक बड़ा वोट बैंक मुस्लिम का है. इसलिए ट्रूडो को लगता है मुस्लिम और सिखों का गठजोड़ उन्हें जिता देगा. जहां तक हिंदू वोटर हैं, वे विभाजित हैं. उनके अपने समाज में कई भेद हैं, कई भाषाएँ और कई संस्कृतियाँ हैं. इसलिए हिंदू एक वोट बैंक नहीं बन सकता. रह गई श्वेत आबादी की बात तो वह कंज़र्वेटिव को पसंद करती है. अमेरिकन अफ़्रीकन आबादी भी विभाजित है. यूँ उसका अधिकांश वोट लिबरल्स को मिलता है. इसलिए भारत की हर सिख सेलिब्रिटी को भुनाने की कोशिश जस्टिन ट्रूडो करते रहेंगे.