दिल्ली में हर घंटे 3 पेड़ों की होती है कटाई, जानिए रोक के बावजूद कितने पेड़ों की दी गई कुर्बानी?
इस धरती को पेड़ जो सेवाएं देते हैं उसकी फेहरिस्त बहुत लंबी है. पेड़ एक नेचुरल कंडीशनर की तरह काम करते हैं और शहरों को ठंडा रखने में मदद करते हैं. इंसानों और दूसरे जानवरों के छोड़े हुए कार्बन को सोखते हैं. प्रदूषण को कम करते हैं, कई पक्षियों के लिए आसरा देते हैं. पर इतना कुछ जानते हुए भी हम इन्हें बेरहमी से काटते चले जा रहे हैं.
दूरदराज इलाकों का तो जो हाल है सो है ही. देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की भी यही हकीकत है. हाल ही में दिल्ली के रिज क्षेत्र में पेड़ काटने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था जिस पर कोर्ट ने दिल्ली डेवलपमेंटल अथॉरिटी यानी डीडीए को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने इसे बेशर्म हरकत करार देते हुए कहा है कि इस तरह के कृत्यों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने यूं ही सख्त रूख नहीं अपनाया है, इसके पीछे वजह है. दरअसल दिल्ली में पेड़ों की कटाई पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट रोक लगा चुके हैं. ऐसे में बिना कोर्ट की मंजूरी के इतनी बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए हैं. अदालत में कोर्ट की अवमानना की याचिका दाखिल की गई थी.
कोर्ट ने डीडीए के उपाध्यक्ष से सफाई मांगी है कि ऐसा क्यों किया गया. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पेड़ काटने की हरकत को अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप के समान माना जाएगा.
कोर्ट ने पेड़ों की कटाई की जांच का प्रस्ताव दिया है. इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में बिना कोर्ट की मंजूरी के के पेड़ों की कटाई पर सख्त रुख अपनाते हुए DDA के उपाध्यक्ष को अवमानना का नोटिस जारी किया था.
रिज क्षेत्र को कहा जाता है दिल्ली का फेफड़ा
दिल्ली के दक्षिणी हिस्से को रिज क्षेत्र कहा जाता है, जहां पर अरावली रेंज का एक हिस्सा भी आता है. इस इलाके में बड़ी मात्रा में वन क्षेत्र है जिस वजह से इसे दिल्ली का फेफड़ा भी कहा जाता है. दिल्ली रिज राजस्थान से आने वाली गरम हवाओं से दिल्ली की रक्षा करता है और इसके वन नगर को ऑक्सीजन देते हैं.
पिछले कई सालों में दिल्ली में इससे भी ज्यादा संख्या में पेड़ों की कुर्बीनी दी गई है. दिल्ली के वन विभाग के मुताबिक विकास के नाम पर पिछले तीन सालों में 77 हजार या हर घंटे औसतन तीन पेड़, विकास परियोजनाओं के लिए काट दिए गए. यह भी पता चला है कि जो भी नए पौधे लगाए जाते हैं, उनमें से एक तिहाई भी पेड़ों में तब्दील नहीं हो पाते हैं.
सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक 1998 में मेट्रो के फेज 1 के शुरू होने के बाद से दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने 44,186 पेड़ों को काट दिया था और 7,923 पेड़ों को प्रत्यारोपित किया है. इस अवधि के दौरान, डीएमआरसी को 57,775 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी, हालांकि वह लेआउट में बदलाव और अन्य तरीकों को अपनाकर 12,580 पेड़ों को संरक्षित करने में कामयाब रही.
2015-2021 में 60 हजार पेड़ कटे
साल 2022 में वॉरियर मॉम्स की तरफ से भी एक रिपोर्ट जारी की गई थी. वॉरियर मॉम्स बच्चों के स्वच्छ हवा में सांस लेने के अधिकार के लिए लड़ने वाली माताओं का एक समूह है. रिपोर्ट का नाम Tree Felling Permitted in Delhi (2021-2015) under Section 29 of the Delhi Preservation of Trees Act, 1994 था.
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई थी जब दिल्ली प्रदूषण से गंभीर रूप से जूझ रही थी और बड़ी संख्या में लोग सांस संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे. रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के वन विभाग ने एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों को दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 (डीपीटीए) के प्रावधानों से छूट देकर 2015 और 2021 के बीच 60,443 पेड़ों को काटने की अनुमति दी. इस अधिनियम में पेड़ों के संरक्षण के लिए प्रावधान किया गया है साथ ही जो भी नियमों का उल्लंघन करता है और तो दंड के लिए भी प्रावधान शामिल हैं.
2015 से संख्या लगातार बढ़ रही है जब 1,030 पेड़ काटे गए, 2016 में 3,261 और 2017 में 7,231 पेड़ काटे गए. 2018 में 3,973 पेड़ और 2020 में 3,504 पेड़ काटने की अनुमति दी गई.
पेड़ों की कटाई पर कई बार लग चुकी है रोक
जून 2022 में ही दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने पेड़ को एक जीवित प्राणी के समान ही माना था. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि संबंधित अधिकारी की अनुमति के बिना सिर्फ 15.7 सेमी परिधि तक के पेड़ों की शाखाओं को काटा जा सकेगा. साथ ही पेड़ों की कटाई या उसकी शाखाओं की छंटाई से पहले उसका अंतिम निरीक्षण भी अनिवार्य कर दिया था. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के तहत पेड़ों की छंटाई की मंजूरी नहीं दी जाएगी. यह फैसला प्रोफेसर और डॉक्टर संजीव बगई की याचिका पर सुनाया गया था.
इससे पहले 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने एक आदेश पारित करते हुए बिना जरूरत पेड़ों की कटाई और छंटाई की अनुमति देने पर रोक लगा थी. मई 2022 के भी अपने एक दूसरे फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पेड़ों के संरक्षण से संबंधित एक अवमानना मामले पर सुनवाई करते हुए पेड़ों को काटे जाने पर रोक लगा दी थी.
सितंबर 2023 में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्देश देते हुए घर बनाने के दौरान पेड़ों की कटाई पर रोक को जारी रखने का निर्देश दिया था. अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार किसी को भी पेड़ काटने की मंजूरी नहीं देगी. दिल्ली नगर पालिका परिषद की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक एनडीएमसी 20 सेमी की परिधि वाले पेड़ों की हल्की छंटाई कर सकता है.
कितनी हरी-भरी है दिल्ली?
एमसीडी यानी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ऑफ दिल्ली ने पहला ट्री सेंसस करवाया था जिसमें पता चला कि आखिर दिल्ली कितनी हरी भरी है. 12 जोन में लगभग 1 लाख 56 हजार 067 पेड़ पाए गए. दिसंबर 2023 में मेयर शेलि ओबरॉय ने कहा था कि एमसीडी 15 दिनों में सेंसस पूरा कर लेगी लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक काम अभी भी जारी है और महज 27 फीसदी क्षेत्रों को ही कवर किया गया है.
ट्री सेंसस इसलिए करवाया जाता है ताकि पेड़ों की संख्या, उनकी उम्र, सेहत के बारे में पता चल सके. इस हिसाब से आम लोगों और संबंधित अधिकारियों को बताया जा सके कि इनकी देखभाल के लिए किस तरह के ठोस कदम उठाने चाहिए. वैश्विक स्तर पर जिस तरह से शहरीकरण बढ़ रहा है उसके चलते संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया की आधे से ज्यादा आबादी शहरों में रह रही होगी. ऐसे में बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन उनके लिए बड़ा खतरा बन सकता है.