दिल्ली-हरियाणा विधानसभा चुनाव में ‘एकला चलो रे’ की नीति पर INDIA गठबंधन, नफा होगा या नुकसान?
दिल्ली और हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने हैं. हरियाणा में जहां इस साल के अंत में चुनाव होगा तो वहीं राष्ट्रीय राजधानी में अगले साल की शुरुआत में वोट डाले जाएंगे. इन दोनों ही राज्यों में इंडिया गठबंधन एकला चलो रे की नीति पर चलने की राह पर है. ऐसा इस वजह से क्योंकि गठबंधन की दो बड़ी पार्टियां कांग्रेस और आप खुद को इन राज्यों में मजबूत स्थिति में देखती हैं.
लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस दोनों राज्यों में साथ चुनाव लड़ी थीं. दिल्ली में 4-3 और हरियाणा में 9-1 के सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहत दोनों पार्टियों ने किस्मत आजमाया था. दिल्ली में दोनों ही पार्टियां एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाईं. लेकिन हरियाणा में कांग्रेस के दम पर इंडिया गठबंधन को गदगद होने का मौका मिला. यहां पर कांग्रेस ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की.
हरियाणा में कांग्रेस का जोश हाई
हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें हैं. इसमें से 5 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. इस प्रदर्शन के बाद कांग्रेस का जोश हाई है. यही वजह है कि पार्टी के नेता विधानसभा चुनाव में भी जीत की आस लगाए बैठे हैं और वो भी अपने दम पर. पार्टी साफ कर चुकी है कि वह अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि लोकसभा चुनाव में पंजाब में हम अकेले लड़े थे. हरियाणा में हमने आप को एक सीट दी थी, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि विधानसभा चुनाव में गठबंधन होगा. उन्होंने कहा कि आप खुद कह चुकी है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन नहीं होगा.
2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 90 में से 31 सीटें जीतने में सफल हुई थी. उसका वोट शेयर 28.08 प्रतिशत था. वहीं, 2014 में उसके खाते में सिर्फ 15 सीटें आई थीं और वोट शेयर 15 प्रतिशत से भी कम था. वहीं, आप एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाई थी. देखा जाए तो 2014 के बाद चुनाव दर चुनाव हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हुआ है. कांग्रेस को लगता है कि राज्य में बीजेपी सरकार की लोकप्रियता कम हुई है. इसमें किसानों का गुस्सा और बेरोजगारी अहम रोल रहा है.
आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में जरूर मजबूत दिखी है लेकिन हरियाणा में अब तक उसका जलवा देखने को नहीं मिला है. 2024 के लोकसभा चुनाव में वो एक सीट पर लड़ी और हार गई. वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में वो 46 सीटों पर लड़ी थी और सभी पर शिकस्त का सामना करना पड़ा.
दिल्ली में भी राहें अलग!
हरियाणा की तरह दिल्ली में भी आप और कांग्रेस अलग-अलग रास्ते पर चलती दिखेंगी. लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली में सीट-बंटवारे हुआ था, जिसमें राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल जैसे दोनों दलों के शीर्ष नेताओं ने कार्यकर्ताओं से सहयोग करने का आह्वान किया था. लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद यह सहयोग खत्म हो गया. स्थानीय कांग्रेस नेताओं के मुताबिक राज्य स्तर पर आप के साथ गठबंधन की कोई गुंजाइश नहीं है.
दिल्ली कांग्रेस के नेताओं के अनुसार, लोकसभा चुनाव में आप के साथ गठबंधन को जरूरी बनाने वाले कारण विधानसभा चुनाव के परिदृश्य की तुलना में अलग थे. पार्टी की स्थानीय इकाई के अनुसार आम चुनावों में प्राथमिकता बीजेपी के साथ मुकाबले में वोटों के बंटवारे को कम करने की थी, जबकि राज्य स्तर पर कांग्रेस का मुख्य ध्यान खोई हुई जमीन वापस पाने पर होगा. 2014 में हार के बाद से कांग्रेस दिल्ली में वापसी के लिए संघर्ष कर रही है. इससे पहले वह लगातार 15 वर्षों तक राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में थी.
फिलहाल राज्य विधानसभा में उसका एक भी विधायक नहीं है. दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के असफल होने का एक बड़ा कारण यह है कि उसने आम आदमी पार्टी के हाथों अपना समर्थन आधार खो दिया है. पार्टी का आकलन है कि आप दिल्ली में कांग्रेस की कीमत पर बढ़ी है.