दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था में इस्तीफा देने से क्यों डरते हैं कर्मचारी? नौकरी छोड़ने के लिए एजेंसी की लेनी पड़ती है मदद

दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी जापान में इन दिनों नौकरीपेशा लोग काफी परेशान हैं. वो बीमार होने पर भी छुट्टी नहीं ले पाते क्योंकि छुट्टी लेना या 12 घंटे से कम काम करना जापान में अच्छा नहीं माना जाता. जापान का वर्क कल्चर ऐसा है कि बिना छुट्टी लिए ज्यादा काम करने वालों को ही बेहतर माना जाता है.
काम के अधिक घंटे, वर्क प्रेशर और छुट्टी न मिल पाने के कारण लोग बेहद तनाव में होते हैं और इससे उन्हें कई तरह की बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन बावजूद इसके वो नौकरी नहीं छोड़ सकते. इसकी सबसे बड़ी वजह है उनके बॉस का सख्त रवैया. क्योंकि कंपनियां आसानी से इस्तीफा स्वीकार नहीं करती हैं.
जापान में इस्तीफा देना मुश्किल काम
रिपोर्ट्स के मुताबिक जापानी कंपनियों में बॉस इस्तीफा फाड़ देते हैं और जबरन कर्मचारियों को उसी कंपनी में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. यही वजह है कि जापान में लोग कई दशक तक एक ही कंपनी में काम करते हैं, कई बार लोग एक ही कंपनी में अपनी पूरी उम्र काम करते हुए गुज़ार देते हैं. क्योंकि यहां इस्तीफा देना आसान नहीं है.
बीते कुछ सालों में लोगों को इस्तीफे के लिए एजेंसियों का सहारा लेना पड़ रहा है. ये एजेंसियां इन कर्मचारियों के मन से डर दूर करने, इस्तीफा देने के लिए प्रेरित करने, कंपनी के साथ बातचीत और कानूनी विवाद होने में मदद करने का काम करती हैं.
इस्तीफा देने में मदद करती हैं एजेंसियां
जापान में ऐसी ही एक एजेंसी है ‘मोमुरी’. मोमुरी का अर्थ है-‘मैं अब यह नहीं कर सकता’. मोमुरी के ऑपरेशन मैनेजर शिओरी कवामाता ने मीडिया से बातचीत में बताया है कि पिछले साल उनकी कंपनी को इस्तीफा दिलाने के लिए 11 हज़ार क्वेरी (पूछताछ) मिली.
‘मोमुरी’ बेहद कम फीस पर अपने ग्राहकों को नौकरी से छुटकारा दिलाने का वादा करती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह कंपनी महज़ 150 डॉलर (करीब साढ़े 12 हज़ार रुपये) में अपने ग्राहकों को इस्तीफा देने और कानूनी विवाद होने पर वकीलों की सिफारिश दिलाती है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल से पहले भी जापान में इस तरह की एजेंसियां अस्तित्व में थीं लेकिन कोरोना काल के बाद से इस इस्तीफा दिलाने वाली इंडस्ट्री में काफी उछाल देखा गया है. हालांकि इनकी आधिकारिक संख्या फिलहाल नामालूम है.
काम के प्रेशर से हो रहीं मौतें!
जापान के स्वास्थ्य, श्रम और कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2022 में काम के कारण होने वाली दिमागी और हार्ट संबंधी बीमारियों से 54 लोगों की मौत हो गई थी, जो वास्तव में दो दशक पहले दर्ज किए गए 160 मौतों से एक बड़ी गिरावट है. हालांकि काम पर मानसिक तनाव के कारण होने वाली परेशानी की शिकायत करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, जापान के स्ट्रिक्ट वर्क कल्चर की हक़ीकत को उजागर करती है.
cnn की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में जापान की एक मीडिया ब्रॉडकास्ट NHK की 31 वर्षीय पॉलिटिकल रिपोर्टर की काम पर लंबे समय तक रहने के कारण हार्ट अटैक से मौत हो गई थी, बताया जाता है कि उस रिपोर्टर ने अपनी मौत से पहले एक महीने में 159 घंटे ओवरटाइम किया था.
इसी तरह साल 2022 में कोबे के एक अस्पताल के 26 वर्षीय डॉक्टर ने एक महीने में 200 घंटे से अधिक ओवरटाइम करने के बाद सुसाइड कर लिया था.
‘4 डे वर्क-वीक’ का फॉर्मूला होगा कारगर?
जापान सरकार देश में गिरते जन्म दर की वजह से काफी परेशान है, जापान में गिरते जन्म दर के पीछे भी सबसे बड़ी वजह मानी जाती है काम को लेकर तनाव. यही वजह है कि जापान की सरकार ने एक पहल शुरू की है. जापान की सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए ‘4 डे वर्क-वीक’ की शुरुआत की है, यानी एक सप्ताह में 4 दिन काम और 3 दिन छुट्टी. हालांकि इस पहल की शुरुआत 2021 से ही कर दी गई थी, लेकिन वर्तमान में महज़ 8 फीसदी कंपनियां ही ‘4 फोर डे वर्क-वीक’ का फॉर्मूला अपना रहीं हैं.

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