दुनिया की पहली एमपॉक्स डायग्नोस्टिक किट तैयार, WHO से भी मिली मंजूरी

दुनियाभर में एमपॉक्स वायरस के बढ़ते प्रकोप को लेकर पूरी दुनिया चिंतित थी. लगभर हर देश से इसके मामले रिपोर्ट किए जा रहे थे लेकिन अब केस कम हो रहे हैं. इस बीच राहत की बात ये है कि दुनिया की पहली एमपॉक्स वायरस को डिटेक्ट करने वाली डायग्नोस्टिक किट बनकर तैयार हो चुकी है और इस किट को WHO ने भी अपनी मंजूरी दे दी है. आइए जानते हैं इस किट के बारे में.
इस टेस्ट किट को एलिनिटी एमपीएक्सवी टेस्टिंग किट कहा जा रहा है जिसे एबॉट मॉलिक्यूलर इंक द्वारा तैयार की गई है. इसकी टेस्टिंग के लिए पीड़ित के घाव से लिए गए स्वॉब से ये टेस्टिंग की जाएगी. एमपॉक्स वायरस से पीड़ित व्यक्ति के हाथों में पानी से भरे दाने हो जाते हैं, जिनमें से लिक्विड का रिसाव होता रहता है. इस लिक्विड को स्वॉब के जरिए टेस्टिंग की जाएगी.
प्रारंभिक तौर पर इसी किट से मंकीपॉक्स वायरस की टेस्टिंग दुनियाभर में की जाएगी. इस टेस्टिंग किट को WHO से भी मंजूरी मिल गई है.
800 से ज्यादा जानें ले चुका है मंकीपॉक्स
अबतक दुनियाभर में बीते कुछ सालों में एमपॉक्स वायरस के चलते 800 से अधिक मौतें हो चुकी है और दुनिया के 16 देशों में आधिकारिक तौर पर इस बीमारी की पुष्टि भी हो चुकी है. यही वजह है कि WHO इसे एक हेल्थ इमरजेंसी तक घोषित कर चुका है. WHO के ताजा बयान के मुताबिक परीक्षण के बाद इस वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी जा चुकी है ताकि इसके निदान में ज्यादा देरी न आए और मरीज को जल्द से जल्द इलाज मुहैया कराया जा सके.
अफ्रीका में अब भी खतरा
हालांकि इस किट की मंजूरी के बाद भी अफ्रीका में मंकीपॉक्स वायरस के प्रचार प्रसार को रोकने में अभी काफी समय लग सकता है क्योंकि अफ्रीका में सीमित परीक्षण क्षमता और एमपॉक्स वायरस मामलों की पुष्टि में देरी अभी भी जारी है जो इस बुखार के लगातार प्रसार में योगदान दे रही है. इसलिए अफ्रीका में इस किट की मदद से टेस्टिंग को बढ़ाया जाएगा ताकि मामलों में कमी आनी शुरू हो सके.
कैसे फैलता है मंकीपॉक्स
ये बीमारी एमपॉक्स और मंकीपॉक्स दोनों ही नामों से जानी जाती है. ये संक्रमित जानवर के मनुष् में वायरस के प्रसारित होने से फैलती है. इसमें मरीज को तेज बुखार की शिकायत होती है जिसके बाद शरीर में मवाद से भरे दाने उभरने लगते हैं. जिनसे पानी रिसने लगता है और ये रिसाव जिस-जिस व्यक्ति को छूता है उसे भी ये बीमारी हो जाती है. समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो मरीज की जान तक जा सकती है. हिंदुस्तान में भी इसके दो मामलों की पुष्टि हो चुकी है. हालांकि पहले मामले में जहां इसके क्लेड 2 वायरस की पुष्टि हुई थी वही दूसरे मामले में मरीज में क्लेड 1 वायरस पाया गया था. भारत के दोनों मरीजों की हालत फिलहाल स्थिर है.

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