दुनिया में हर तीसरे बच्चे को मायोपिया की बीमारी, क्यों बढ़ रहे हैं इसके केस?

बच्चों का मोबाइल देखना हर परिवार के लिए एक विकट स्थिति बनती जा रही है. आज छोटे बच्चे जिस हिसाब से फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं उसे देखकर आज हर पैरेंट चिंतित है और ये हाल सिर्फ हिंदुस्तान का नहीं बल्कि पूरी दुनिया का है. बच्चों का ज्यादा फोन देखने का ट्रेंड कोविड के बाद ज्यादा बढ़ा है, ऐसे समय में जब बच्चे घरों में बंद थे तो उनका बाहर जाकर खेलना लगभग पूरी तरह छूट गया था. जिससे बच्चें अपना सारा समय मोबाइल फोन पर बिता रहे थे अब ये उन बच्चों की आदत बन चुकी है. बच्चे बाहर खेलने की बजाय घरों में घुसकर मोबाइल फोन देखना और उस पर गेम्स खेलना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. यही वजह है कि आज बच्चों को मोबाइल की वजह से कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
ज्यादा मोबाइल देखने से हमारे कई अंग प्रभावित होते हैं, जिसमें ब्रेन, आंखें और गर्दन का हिस्सा, हथेलियां शामिल है. यही वजह है कि आज इनसे जुड़ी बीमारियां बच्चों में ज्यादा बढ़ रही है. हालिया आई रिसर्च ने साफ किया है कि मोबाइल देखने से बच्चों की आंखों की रोशनी पर काफी नकारात्मक असर पड़ रहा है और बच्चे मायोपिया के शिकार हो रहे हैं. इस अध्ययन में पता चला है कि तीन में से एक बच्चे की आंखें फोने देखने से खराब हो रही है और उनकी दूर दृष्टि लगातार कमजोर हो रही है.
क्या कहती है रिसर्च
चाइना की सून यात सेन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने इस अध्ययन में पाया है कि कोविड लॉकडाउन के दौरान बच्चों का ज्यादा स्क्रीन पर समय बिताने से आंखों की रोशनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है यही कारण है कि आज हर तीन में से एक बच्चा दूर की चीजों को साफ देखने में असमर्थ है. इससे यही निष्कर्ष निकला है कि दूर की रोशनी कमजोर होना यानी कि मायोपिया एक बढ़ती हुई वैश्विक स्वास्थ्य चिंता है जो 2050 तक लगभग 74 करोड़ बच्चों को प्रभावित करेगी.
क्या कहते हैं आंकड़े
नजर कमजोर होने की सबसे अधिक दर एशिया में पाई गई है जिसमें जापान में 85%, दक्षिण कोरिया में 73%, चीन और रूस में 40% बच्चे इससे प्रभावित पाए गए हैं. जबकि पराग्वे और युगांडा में ये दर काफी कम है जो कि लगभग 1% के बराबर है. वही यूके, आयरलैंड और अमेरिका में ये दर 15% है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक पाया गया है कि 1990 से 2023 के बीच ये समस्या तीन गुना लगभग 36 फीसदी तक बढ़ी है लेकिन इसमें कोविड के बाद सबसे ज्यादा उछाल देखा गया है. मायोपिया की समस्या जहां बढ़ती उम्र में देखी जा रही थी वही अब ये समस्या प्राइमरी के बच्चों में शुरू हो रही है और 20 वर्ष तक आंखों का नंबर काफी ज्यादा बढ़ रहा है. शोधकर्ता इसका एक बड़ा कारण जेनेटिक भी मान रहे हैं जो कि पूर्वी एशिया में सबसे ज्यादा है, आंखों का नंबर बढ़ना बच्चों को विरासत में माता पिता से मिल रहा है. रिसर्चर्स का कहना है कि कम उम्र में ही घंटों घंटों स्क्रीन पर ज्यादा ध्यान देने से आंखों की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ रहा है जो मायोपिया को जन्म दे रहा है. वही जिन देशों में स्कूली शिक्षा लेट शुरू होती है वहां इसकी दर कम एशिया के मुकाबले कम देखी गई है. इसलिए इस रिसर्च के मुताबिक 2050 तक यह स्थिति दुनिया भर के आधे से अधिक किशोरों को प्रभावित कर सकती है. वही इसकी दर महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है.
मायोपिया के शुरूआती लक्षण
– बच्चे का शब्दों को पढ़ने में कठिनाई महसूस होना, स्कूल का ब्लैकबोर्ड भी न पढ़ पाना.
– टीवी, कंप्यूटर को करीब बैठकर देखना
– मोबाइल और टैबलेट की स्क्रीन को बिल्कुल चेहरे से लगाकर देखना
– सिरदर्द की शिकायत होना
– बार-बार आंखें मलना
– आंखें लाल होना और आंखों से पानी आना
बचाव के तरीके
– मायोपिया से अपने बच्चे को बचाने के लिए उसकी फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ाएं और उसे रोजाना दो घंटे बाहर खेलने के लिए भेजें.
– बच्चे का स्क्रीन टाइम कम करें.
– सूरज की रोशनी में खेलने से बच्चों की आंखों पर जोर कम पड़ता है जो बच्चों के लिए काफी फायदेमंद है.
– बच्चे का समय-समय पर आई चेकअप करवाते रहें चाहे उसकी आंखें सही हो या नहीं हो.
– अगर आपके घर में पहले से ही आंखों की रोशनी कम होने और आंखों में नंबर की समस्या है तो बच्चों की आंखों का पहले से ही ध्यान रखें क्योंकि इस स्थिति में बच्चे को मायोपिया होने के चांसेज तीन गुणा अधिक बढ़ जाते हैं.
– अगर बच्चे को चश्मा लग गया है तो सुनिश्चित करें कि वो चश्मा लगाकर रखें और समय-समय पर उसका नंबर चेक करवाते रहें.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *