देश के पहले एनकाउंटर से लेकर सियासी पारा बढ़ाने वाले मुठभेड़ तक…जानिए Encounter की पूरी कहानी

देश में इन दिनों एनकाउंटर पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है. ये हंगामा उत्तर प्रदेश में मंगेश यादव और अनुज सिंह के मुठभेड़ के बाद मचा है. हालांकि देश में किसी मुठभेड़ को लेकर पहली बार सियासी बवाल नहीं मचा है. इसकी कहानी पुरानी रही है. देश में एनकाउंटर की शुरुआत कब हुई और कब-कब किसी मुठभेड़ पर सियासी पारा बढ़ा, इस लेख में हम इसकी ही बात करेंगे.
देश में एनकाउंटर की शुरुआत मुंबई से हुई. साल था 1982. 1 जनवरी को मुंबई पुलिस ने अपराधियों को सबक सिखाने का ये फॉर्मूला अपनाया था. गैंगस्टर मन्या सुर्वे को ढेर कर मुंबई ने ये करके दिखाया था. इस मुठभेड़ ने अन्य प्रदेश की पुलिस के सामने उदाहरण पेश किया. अपराध पर लगाम लगाने के लिए देश के कई राज्यों की पुलिस ये फॉर्मूला पिछले कई वर्षों से अपना रही हैं.
कहानी पहले एनकाउंटर की…
गैंगस्टर मन्या सुर्वे का असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था. 1944 में उसका जन्म हुआ. वह पढ़ाई में काफी अच्छा था. उसने 78 फीसदी अंकों के साथ ग्रेजुएशन किया था. लेकिन गलत सोहबत या कहें दोस्ती यारी में वह रास्ता भटक कर क्राइम की दुनिया में कदम रख दिया.
एक गैंगस्टर के तौर पर मन्या सुर्वे ने पहला अपराध 5 अप्रैल 1980 को किया. उसने एक एम्बेसडकर कार चोरी कर एक ट्रेडिंग कंपनी से 5 हजार रूपये लूट लिए. इसी दौरान उसने अपने खास साथी शेख मुनीर के कट्टर दुश्मन शेख अजीज की भी हत्या कर दी. इस अपराध ने मन्या सुर्वे के आत्मविश्वास को बढ़ा दिया. मन्या जब अपराध की दुनिया में ऊपर चढ़ रहा था तब ही दाऊद इब्राहिम की भी एंट्री हो चुकी थी.
मन्या और दाऊद के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ गई. मन्या सुर्वे के गैंग से पुलिस भी परेशान हो चुकी थी. वो उसके गिरोह का खात्म करना चाहती थी. दाऊद की मुखबिरी के चलते पुलिस एक-एक करके मन्या के गिरोह के गुर्गे का पता लगाने लगी. पुलिस की छापेमारी से मन्या गिरोह की कमर टूट गई. हालांकि मन्य हर बार बचता रहा. पुलिस ने भी ठान लिया कि अब उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ना है. उसने एक स्पेशल टीम बनाई.
मुंबई पुलिस को मुखबिर के जरिए 11 जनवरी को खबर मिली कि मन्या एक कॉलेज के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहा है. दोपहर के लगभग 1.30 बजे मुंबई पुलिस की स्पेशल ड्रेस में उस कॉलेज के जलसे वाले स्थान पर डेरा डाल दिया. तय समय पर मन्या सुर्वे कार से पहुंचा. इस दौरान मन्या को कुछ शक हुआ. उसने अपनी रिवाल्वर निकाल ली. इससे पहले वो फायर करता इंस्पेक्टर इसाक बागवान, राजा तांबट ने उसे संभलने का मौका दिए उसपर फायर कर दिया. इस मुठभेड़ में मन्या घायल हो गया. पुलिस की टीम तुरंत उसे अस्पताल लेकर पहुंची, लेकिन उसकी मौत हो गई.
इन एनकाउंटर से बढ़ा सियासी पारा
इशरत जहां केस- साल 2004 में मुंबई की 19 साल की महिला इशरत जहां और तीन अन्य लोग अहमदाबाद में हुए मुठभेड़ में मारे गए थे. पुलिस ने दावा किया था वे आतंकी समूह का हिस्सा थे. 2009 में मजिस्ट्रेट ने एनकाउंटर को फर्जी बताया. हालांकि जब ये मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो इसकी जांच के लिए SIT का गठन किया गया. 2011 में एसआईटी ने भी माना एनकाउंटर फर्जी था. सीबीआई ने गुजरात पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया.
विकास दुबे- गैंगस्टर विकास दुबे को यूपी पुलिस ने 2020 में एक एनकाउंटर में मार गिराया था. पुलिस विकास दुबे के घर पर दबिश मारने गई थी, उसी दौरान पुलिस टीम पर हमला हुआ था. विकास दुबे तब भाग निकला था. मध्य प्रदेश के उज्जैन में उसे गिरफ्तार किया गया था. उज्जैन से कानपुर लाते वक्त वह एनकाउंटर में मार गिराया गया था. राजनीतिक दलों ने इस एनकाउंटर के बहाने योगी सरकार पर हमला बोला. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. पुलिस ने अदालत को बताया कि विकास दुबे पुलिस पर हमला करना चाहता था. बदले में पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें उसकी मौत हो गई.
हैदराबाद एनकाउंटर केस- गैंगरेप और हत्या के आरोपी चार लोग 2019 में हैदराबाद में एक पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे. चारों तब ढेर किए गए जब उन् पुलिस क्राइम सीन पर लेकर जा रही थी. पुलिस ने बताया कि चारों आरोपी अधिकारियों से पिस्टल छीनकर भाग रहे थे. जब पुलिस उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रही थी, तब उन्होंने कुछ राउंड फायरिंग की और गोलीबारी में आरोपी मारे गए.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वीएस सिरपुरकर की अध्यक्षता वाले एक आयोग ने पुलिस के दावों का खंडन किया और कहा कि जानबूझकर मौत के इरादे से गोलियां चलाई गईं.
भोपाल जेल एनकाउंटर, 2016- अक्टूबर 2016 में SIMI से जुड़े 8 लोग भोपाल सेंट्रल जेल से भागने की कोशिश किए थे. जवाब में पुलिस ने उनपर फायरिंग की और सभी मारे गए. इसकी जांच हुई और रिपोर्ट में कहा गया कि आरोपी से सरेंडर करने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने पुलिस और लोगों पर फायरिंग पर शुरू कर दी. पुलिस के पास ओपन फायर के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. इस मुठभेड़ से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे. हालांकि जून 2018 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पुलिस को क्लीन चिट दे दिया था.
बटला हाउस, 2008- दिल्ली के बटला हाउस में 2008 में हुए इस मुठभेड़ ने खूब सुर्खियां बटोरी. 19 सितंबर को ये घटना हुई थी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने इसे अंजाम दिया था. मारे जाने वालों में इंडियन मुजाहिदीन के 2 आतंकी थे. इसके अलावा इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हुए थे. मानवाधिकार संगठनों ने बाटला हाउस एनकाउंटर को फेक बताया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच के आदेश भी दिए थे. दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट मिली थी. इस एनकाउंटर पर सियासी रोटियां भी सेकी गईं. सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और दिग्विजय सिंह ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. पुलिस की क्लीन चिट मिलने के बाद बीजेपी ने इन नेताओं से माफी की मांग की.

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