देश के बैकों में खत्म हो रहा पैसा, 2.86 लाख करोड़ से घटकर बचा रह गया 0.95 लाख करोड़, क्या है वजह?

देश का सबसे बड़ा बैंक SBI हो या प्राइवेट सेक्टर का कोई छोटा बैंक, इस समय देश के सभी बैंक पैसों की कमी से परेशान हैं. हालत यहां तक पहुंच गए हैं कि बैंकों के पास अब लोन बांटने के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं बच पा रहा है. बैंकों के डिपॉजिट में लगातार गिरावट आ रही है, अपने पीक टाइम पर बैंकों के पास जमा रकम 2.86 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी, लेकिन 28 अगस्त को ये घटकर महज 0.95 लाख करोड़ रुपए रह गई है. आखिर इसकी वजह क्या है?
बैंकों के डिपॉजिट में आ रही कमी को लेकर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में एक बात खास तौर पर सामने रखी गई है कि पूरे अगस्त के महीने में डिपॉजिट में लगातार गिरावट देखी गई है. एसबीआई के नए चेयरमैन सी. एस. शेट्टी ने भी ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में कहा कि बैंकों पर डिपॉजिट बढ़ाने का दबाव अभी कुछ और वक्त तक जारी रह सकता है.
सरकार से लेकर आरबीआई तक परेशान
देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैंकों से अपनी जमा को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाने को कहा है. इसके बावजूद बैंकों की लिक्वीडिटी (नकदी की स्थिति) कमजोर होती जा रही है. बैंकों की जमा में आ रही गिरावट सरकार से लेकर आरबीआई तक के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. ये देश में आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है.
वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों से ग्राहकों के साथ बेहतर संबंध बनाने और अच्छी कस्टमर सर्विस देने के लिए भी कहा है. इसी के साथ बैंकों से कस्टमर्स तक पहुंच बनाने, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहकों तक पहुंच बनाने के लिए भी कहा.उन्होंने बैंकों की रिव्यू मीटिंग में इस बात का उल्लेख विशेष तौर पर किया कि क्रेडिट ग्रोथ हो रही है, लेकिन डिपॉजिट पर भी बैंकों को ध्यान देना होगा, क्योंकि इसी के दम पर क्रेडिट ग्रोथ सस्टेनबल रह पाएगी.
क्यों घट रहा बैंकों का डिपॉजिट?
बैंकों के डिपॉजिट में कमी आने की समस्या को वित्त मंत्री के एक बयान से समझा जा सकता है. उनका कहना है कि बैंकों को अपने कोर काम पर ध्यान देना चाहिए. इसका मतलब ये नहीं है कि वह उस पर फोकस नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनका काम है कि वह लोगों की जमा स्वीकार करें और फिर उसे लोन के तौर पर काफी सावधानी से बांटे.
उनका कहना है कि जमा और लोन के बीच एक संतुलन होना चाहिए, तभी ये पहिया घूमेगा. ऐसा नहीं हो सकता है कि जमा कम हो और लोन बांटने का काम तेज. इतना ही नहीं उन्होंने बैंकों से उभरते क्षेत्रों की बेस्ट प्रैक्टिस को अपनाने के लिए भी कहा है.
वहीं आरबीआई गनर्वर की ओर से भी कहा गया है कि पहले के जमाने में आम आदमी के लिए निवेश का एकमात्र विकल्प बैंक होते थे. लेकिन अब ग्राहकों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है और लोग कैपिटल मार्केट यानी शेयर बाजार की ओर ज्यादा रुख कर रहे हैं. इसके अलावा अन्य फाइनेंशियल एसेट में उनका निवेश बढ़ा है. इसलिए बैंकों की जमा में कमी आने की वजह ग्राहकों के व्यवहार में बदलाव आना है.
गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि बैंकों की जमा का एक बड़ा हिस्सा अब म्यूचुअल फंड, पेंशन फंड और इंश्योरेंस फंड की ओर मूव हो रहा है.

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