नहीं रहे पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह, जानिए रियासत से सियासत तक का सफर
देश के पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कुंवर नटवर सिंह का 95 साल की उम्र में निधन हो गया. अचानक तबीयत खराब होने से उन्हें गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. नटवर सिंह रिटायर्ड आईएफएस (भारतीय विदेश सेवा) अधिकारी भी रह चुके हैं. साथ ही अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया.
दरअसल नटवर सिंह का जन्म 16 मई 1929 को राजस्थान के भरतपुर जिले के जघीना गांव में भरतपुर के शासक वंश से जुड़े एक जाट हिंदू परिवार में हुआ था. वह गोविंद सिंह और उनकी पत्नी प्रयाग कौर की चौथी संतान थे. 1967 में नटवर सिंह ने पटियाला राज्य के अंतिम महाराजा यादविंद्र सिंह की सबसे बड़ी बेटी महाराजकुमारी हेमिंदर कौर से शादी की थी. जो वर्तमान में पटियाला के महाराजा और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बहन भी थीं.
नटवर सिंह की शिक्षा
नटवर सिंह ने भारतीय राजघरानों और कुलीनों के लिए पारंपरिक शैक्षणिक संस्थान अजमेर के मेयो कॉलेज और ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री ली. इसके बाद वह आगे की उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज चले गए. यहां उन्होंने कॉर्पस क्रिस्टी कॉलेज में पढ़ाई पूरी की और चीन में पेकिंग यूनिवर्सिटी में कुछ समय के लिए विजिटिंग स्कॉलर भी रहे.
इस दौरान नटवर सिंह का चयन भारतीय विदेश सेवा के लिए हो गया. अपनी नौकरी के दौरान उन्होंने चीन, न्यूयॉर्क, पोलैंड, इंग्लैंड, पाकिस्तान, जैमिका, जांबिया समेत तमाम देशों में काम किया.
सियासी जीवन की शुरुआत
1984 में आईएफएस सेवा से इस्तीफा देकर उन्होंने कांग्रेस जॉइन की और अपने सियासी जीवन का आगाज किया. इसी साल नटवर सिंह ने भरतपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर राज्य मंत्री बने. उन्हें इस्पात, कोयला, खान और कृषि विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी. 1984 में ही उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण मिला था.
इसके बाद 1986 में नटवर सिंह विदेश मामलों के राज्य मंत्री बने. 1987 में न्यूयॉर्क में आयोजित निरस्त्रीकरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 42वें सत्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था.
वहीं साल 1989 के आम चुनावों में नटवर सिंह उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन यहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. वहीं राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी. इस बार पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे.
प्रधानमंत्री के साथ मतभेद
इस बार प्रधानमंत्री के साथ मतभेद की वजह से उन्होंने एनडी तिवारी और अर्जुन सिंह के साथ पार्टी छोड़ दी. नटवर सिंह ने एक नई राजनीतिक पार्टी, अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस का गठन किया था. हालांकि 1998 में जब सोनिया गांधी ने पार्टी पर नियंत्रण लिया, तो तीनों नेताओं ने अपनी नई पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
इसके बाद 1998 के आम चुनावों में नटवर सिंह नौ साल बाद भरतपुर से फिर लोकसभा (1998-99) सांसद चुने गए. उन्होंने भाजपा के डॉ. दिगंबर सिंह को हराया था. इसके बाद वह 2002 में राज्यसभा के लिए चुने गए. वहीं 2004 में कांग्रेस की सत्ता में वापस के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नटवर सिंह को विदेश मंत्री बनाया था.
नटवर सिंह की आत्मकथा से विवाद
अगस्त 2014 में आई नटवर सिंह की आत्मकथा वन लाइफ इस नॉट इनफ ने भारत की सियासत में हलचल मचा दिया था. किताब में 2004 का जिक्र था, जिसमें बताया गया था कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनी थी. इसके अलावा नटवर सिंह ने अपनी किताब में यह भी लिखा कि यूपीए शासनकाल में सोनिया गांधी की मंजूरी के बिना फैसले नहीं होते थे.