नेता प्रतिपक्ष बनने से बढ़ी राहुल गांधी की ताकत, चुनौतियां भी कम नहीं!

राहुल गांधी लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं. ऐसा पहली बार है, जब वह किसी संवैधानिक पद पर बैठे हैं. राहुल गांधी के राजनीतिक करियर के लिहाज से भी यह पड़ाव बेहद महत्वपूर्ण है. खासतौर से इसलिए क्योंकि विपक्ष के नेता के तौर पर वह पांच साल सरकार के कामकाज की समीक्षा कर सकेंगे. अगले पांच साल संसद में सीधे तौर पर पीएम मोदी बनाम नेता विपक्ष राहुल गांधी देखने को मिलेगा. हालांकि राहुल गांधी के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगीं. उन्हें खुद को सिद्ध करने के साथ ही पार्टी और गठबंधन को साधना भी होगा.
लोकसभा के पिछले दो कार्यकाल में विपक्ष कमजोर रहा. इस बार कांग्रेस सदन में वह 10 फीसदी नंबर जुटाने में सफल रही जिससे उसे नेता प्रतिपक्ष का पद मिल गया. राहुल गांधी नेता विपक्ष बन गए. अब राहुल गांधी को ऐसे कई अधिकार मिल गए हैं जिससे वह सरकार के कामकाज पर सीधे सवाल कर सकते हैं. कांग्रेस कार्यकर्ता इससे उत्साहित हैं. हालांकि राहुल गांधी के सामने ऐसी कई चुनौतियां जिनसे उन्हें पार पारा होगा.
राहुल गांधी के सामने चुनौतियां

कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में अच्छी संख्या में सीटें जीत गई हो, लेकिन अभी भी कई राज्यों में पार्टी की एक भी सीट नहीं आई है, ऐसे में राहुल गांधी को इन राज्यों में संगठन का पुनर्गठन और आपसी खींचतान पर विशेष ध्यान देना होगा चूंकि अब वो नेता प्रतिपक्ष हैं ऐसे में उन्हें संसद में भी पर्याप्त समय देना होगा. टाइम मैनेजमेंट RG के लिए बड़ी चुनौती होगी. राहुल गांधी ने अपनी यात्राओं के जरिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ाया है, लेकिन कई प्रदेशों में उन्हें आंतरिक पार्टी की राजनीति से निपटना होगा और अपनी पार्टी के सदस्यों की अपेक्षाओं का प्रबंधन करना होगा, जो चुनौती है.
इंडिया गठबंधन को संसद से सड़क तक एकजुट रखना भी राहुल के लिए बड़ी चुनौती होगी. राहुल को अपने दल के साथ-साथ विपक्ष के अन्य दलों के साथ भी तालमेल बनाकर रखना होगा. विपक्षी एकजुट होकर ही सरकार को घेर सकते हैं. एक तरफ जहां चुनाव के बाद ही AAP और कांग्रेस अलग अलग सुर में नजर आ रहे हैं वहीं TMC, SP से लेकर राजद तक को अपने साथ रखना बड़ी चुनौती है.
राहुल गांधी को अब मजबूत होमवर्क करना होगा. उन्हें संसद के कामकाज को अच्छी तरह से समझना होगा, चूंकि वो नेता प्रतिपक्ष हैं ऐसे में अधिकतर बड़े मुद्दों पर उन्हें विपक्ष की आवाज उठानी पड़ेगी इसलिए जरूरी है कि ना सिर्फ वो संसद की कार्यप्रणाली को समझें बल्कि संसद के कामकाज से भी पूरी तरह वाकिफ हों. राहुल गांधी को संसद के सत्रों की कार्रवाई में अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी. 17वीं लोकसभा में उनकी अटेंडेंस सिर्फ 51% रही है, और वो सिर्फ 8 चर्चाओं में शामिल रहे हैं.
नेता प्रतिपक्ष शैडो प्रधानमंत्री होता है. पूरे विपक्ष का ना सिर्फ वो नेतृत्व करता है बल्कि कई जरूरी नियुक्तियों में पीएम के साथ बैठता है. विपक्ष के नेता की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका संयुक्त संसदीय समितियों और चयन समितियों में होती है.ये चयन समितियां प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), लोकपाल के साथ ही चुनाव आयुक्तों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जैसे काफी महत्वपूर्ण पदों की नियुक्तियां करती है. ऐसे में पीएम के साथ बैठकर फैसले ले पाना और कामचलाऊ रिश्ते कायम कर पाना राहुल गांधी के लिए चुनौती होगी लेकिन अगर वो खुद को एक परिपक्व नेता के तौर पर और मजबूत करना चाहते हैं तो उन्हें ये करना होगा.
नेता प्रतिपक्ष का काम सरकार को आईना दिखाने का होता है. संसद में आने वाले विधेयकों पर बहस में प्रमुखता से भूमिका निभाना और विपक्ष के नजरिए को सदन में रखने का काम होता है. ऐसे में खामियों को सरकार के सामने रखने के लिए मजबूती के साथ तर्क देने होते हैं. नेता प्रतिपक्ष सरकार के कामों का रिव्यू करता है. उसका काम सरकार के लिए ऑप्शन देना भी होता है. सरकार अगर कोई गलत काम कर रही है तो उसे सदन में एक्सपोज करने का काम नेता प्रतिपक्ष का होता है. राहुल गांधी को ये करना होगा.

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