न बाहुबली दिखाई दिए-न चला आयोग का डंडा, जानें इस बार कैसे अलग रहा यूपी का लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे मंगलवार शाम तक आएंगे, लेकिन सभी की निगाहें उत्तर प्रदेश पर लगी हुई हैं. देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें यूपी में है और पंडित जवाहर लाल नेहरू से इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी तक यहीं से सांसद चुने जाते रहे हैं. पीएम मोदी भी यूपी की वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस तरह देश की सत्ता का फैसला करने वाले यूपी की सियासी अहमियत को बाखूबी समझा जा सकता है, लेकिन 2024 का लोकसभा चुनाव कई मायने में यूपी में हुए अब तक के चुनावों से अलग रहा है.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 75 सीट पर चुनाव लड़ी है और पांच सीटों पर उसके सहयोगी दल चुनाव लड़ रहे हैं. अपना दल (एस) दो सीटों पर, आरएलडी दो सीटों पर और एक सीट पर सुभासपा चुनाव लड़ी है. इसी तरह इंडिया गठबंधन के तहत सपा 62, कांग्रेस 17 और टीएमसी एक सीट पर चुनाव लड़ी हैं. बसपा अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी और सूबे की 79 सीटों पर चुनाव लड़ रही. आजाद समाज पार्टी से चंद्रशेखर आजाद चुनाव लड़ रहे हैं, जिस पर सभी की नजरें लगी हुई हैं.
1977 के बाद सबसे कम प्रत्याशी
आजादी के बाद से सबसे कम प्रत्याशी आपातकाल के बाद उत्तर प्रदेश में 1977 के लोकसभा चुनाव में उतरे थे. इसके बाद से अब तक के सबसे कम प्रत्याशी 2024 के चुनाव में उतरे हैं. इस बार यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर कुल 851 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. 2019 के चुनाव में 979 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे और 2014 के चुनाव में 1288 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाया था.
1952 के बाद इस बार सबसे लंबा चुनाव
आजादी के बाद पहला लोकसभा चुनाव 1951-1952 में हुआ था, जो अब तक का सबसे लंबा चुनाव रहा था. इस बार 16 मार्च को चुनाव आचार संहिता लागू हुई और एक जून तक सात चरणों में मतदान हुए और नतीजे 4 जून को आ रहे हैं. 1941-52 में चुनाव प्रक्रिया चार महीने से अधिक समय तक चली थी.
चुनाव आयोग का नहीं चला डंडा
2024 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान जमकर बयानबाजी हुई और एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा,लेकिन किसी नेता के प्रचार पर रोक नहीं लगाई गई.इतने लंबे समय के बाद यह ऐसा लोकसभा चुनाव हैं,जिसमें किसी भी दल के किसी भी नेता को बयानों के आधार पर चुनाव प्रचार से रोका नहीं गया. हालांकि, नेताओं ने इस बार खुलकर बोलते हुए नजर आए हैं.
मुलायम-कल्याण-चौधरी के बिना चुनाव
उत्तर प्रदेश की सियासत के मंझे हुए खिलाड़ियों के बिना इस बार का चुनाव हुआ है. यह पहला चुनाव रहा जब मंडल-कमंडल की राजनीति से उभरे बड़े नेताओं के बिना चुनाव हुए हैं. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, बीजेपी नेता कल्याण सिंह, आरएलजी नेता अजित सिंह का निधन हो चुका है. यूपी की सियासत में तीनों ही नेताओं का अहम रोल था. इसके अलावा यूपी में मुस्लिम सियासत के चेहरे रहे आजम खान जेल में बंद रहने के चलते वो चुनाव में नहीं दिखे. सपा और कांग्रेस पहली बार गठबंधन के तहत लोकसभा चुनाव में उतरी थी.
बाहुबली इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरे
उत्तर प्रदेश में बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार कोई भी बाहुबली चुनाव नहीं लड़ सका. मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे बाहुबली नेताओं का निधन हो चुका है तो धनंजय सिंह से लेकर अक्षय प्रताप सिंह, बृजेश सिंह, डीपी यादव और गुड्डू पंडित ने चुनाव से दूरी बनाए रखा था. इसके अलावा बृजभूषण सिंह का टिकट कट जाने के चलते चुनाव नहीं लड़ सके जबकि रमाकांत यादव जेल में बंद रहने की वजह से चुनाव नहीं लड़ सके.