पश्चिम बंगाल और केरल की उपराज्यपाल के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, मांगा जवाब

केरल और पश्चिम बंगाल की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में महीनों से लंबित विधेयकों के चलते याचिका दायर की थी. केरल और पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य के उपराज्यपाल के खिलाफ याचिका दायर की थी. पश्चिम बंगाल और केरल सरकार का कहना है कि कई विधेयकों को महीनों तक लंबित रखा गया, उन पर सहमति देने से इंकार किया गया या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के चलते उन्हें महीनों तक लंबिक किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की इन याचिकाओं पर आज सुनवाई की और राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने इन सभी बातों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. तेलंगाना सरकार पहले से ही इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुकी है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि कई बिल को राज्यपालों ने मंजूरी देने की जगह राष्ट्रपति के पास भेज दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के राज्यपाल सचिवालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
CJI ने जारी किया नोटिस
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने राज्यों से कहा, उप राज्यपाल द्वारा बिल आरक्षित करने की शक्ति पर उठने वाले कुछ प्रश्न तैयार करें. केरल की ओर से वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि यह पहले ही किया जा चुका है. पश्चिम बंगाल की ओर से पेश वकील एएम सिंघवी ने कहा कि वह प्रश्न तैयार करने को वेणुगोपाल के साथ बैठने पर सहमत हैं. सीजेआई ने कहा कि गृह मंत्रालय के जरिए केंद्र को पक्षकार बनाने की छूट है. हालांकि, केरल के राज्यपाल कार्यालय को नोटिस जारी किया गया है और तीन हफ्ते में जवाब मांगा गया है.
8 महीने से विधेयक लंबित
पश्चिम बंगाल ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य के उप राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ याचिका दायर की. जिसमें राज्य सरकार ने दावा किया कि जिन विधेयकों को राज्य सरकार ने पास कर दिया है, उपराज्यपाल उनको मंजूरी देने में देरी कर रहे हैं. न सिर्फ पश्चिम बंगाल बल्कि ऐसी ही एक याचिका केरल सरकार ने उपराज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ भी दायर की है. केरल सरकार का पक्ष रखने वाले वकील के के वेणुगोपाल ने कहा, बिल पिछले 8 महीने से रुके हुए हैं, उन्होंने कहा राज्य के उपराज्यपाल बिल को मंजूरी देने में देरी कर रहे हैं. यह संविधान के खिलाफ है.

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