पहले सरकार और अब कोर्ट…6 साल पहले भी बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ फैली थी आग

बांग्लादेश के युवा सरकारी नौकरियों में आरक्षण का विरोध कर रहे हैं. वे सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्हें रोकने के लिए सुरक्षाबल भी एक्टिव हैं. देशभर में सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 6 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें 4 छात्र भी हैं. एक्शन के विरोध में छात्रों ने गुरुवार को देशव्यापी पंद का ऐलान किया है. लोगों की मौत पर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दुख जताया. उन्होंने मामले में एक न्यायिक जांच समिति गठित करने की बात कही है.
हसीना ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि वे देश की सर्वोच्च अदालत पर भरोसा बनाए रखें क्योंकि यह मुद्दा उसके पास लंबित है. उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि हमारे छात्रों को न्याय मिलेगा (सर्वोच्च न्यायालय में). वे निराश नहीं होंगे.
बांग्लादेश में आरक्षण की कहानी
भारत की तरह बांग्लादेश में भी सरकारी नौकरियां आय के एक स्थिर और आकर्षक स्रोत के रूप में अत्यधिक प्रतिष्ठित हैं. लगभग 400,000 स्नातक हर साल लगभग 3,000 ऐसी नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. बांग्लादेश का गठन 1971 में हुआ और इसी साल से वहां 56 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हो गया था. लेकिन 2018 में सरकारी नौकरी में उसे खत्म कर दिया गया.
जैसे आज बांग्लादेश की सड़कों पर छात्र उतरे हैं वैसे ही 2018 में भी वे सड़कों पर उतरे थे. वो प्रदर्शन अभी हो रहे प्रदर्शन से भी तीव्र था. तब छात्रों ने कहा था कि हमें 56 फीसदी आरक्षण नहीं चाहिए. सरकारी नौकरियों में मिलने वाले 56 फीसदी आरक्षण में से30 फीसदी आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों को, 10 फीसदी महिलाओं को, 10 फीसदी अविकसित जिले में रहने वाले लोगों को, मूल निवासियों को 5 फीसदी और 1 फीसदी दिव्यांग लोगों को मिलता था.
कोर्ट के फैसले का विरोध करते लोग (फोटो-पीटीआई)
दशकों से मिल रहे आरक्षण के खिलाफ 2018 में छात्र सड़कों पर उतरे थे. ये प्रदर्शन 4 महीने चला था. उनके सामने सरकार को झुकना पड़ा था. सरकार ने पूरा का पूरा आरक्षण ही खत्म कर दिया था.
जब आरक्षण खत्म तो छात्र सड़कों पर क्यों?
अब सवाल उठता है कि जब आरक्षण खत्म हो गया था तो फिर छात्र सड़कों पर क्यों उतरे हैं. इसकी वजह है कि जून में बांग्लादेश की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि आरक्षण तो देना होगा. जो भी आरक्षण वापस लिए गए थे उसको फिर से लागू किया जाए. अदालत के इसी फैसले के खिलाफ छात्र सड़कों पर उतरे हैं. अदालत से फैसले का विरोध शुरू में सिर्फ ढाका में था. लेकिन 17 जून को ईद-उल-अधा उत्सव समाप्त होने के बाद बड़े विरोध प्रदर्शन हुए.
छात्रों का कहना है कि हम 56 फीसदी आरक्षण को नहीं स्वीकार करेंगे. 26 फीसदी आरक्षण हमें मंजूर है. उनका कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाला 30 फीसदी आरक्षण नहीं दिया जाए. उनका तर्क है कि बांग्लादेश की आजादी के लिए जो लोग लड़े थे वो अब बुजुर्ग हो चुके हैं. उनके जो बच्चे हैं वो भी 40-50 साल के हो चुके हैं. ऐसे में अब उनके पोते और परपोते को आरक्षण देने की क्या वजह है. छात्रों का कहना है कि सभी के लिए बराबर मौके होने चाहिए. मेरिट सिस्टम आना चाहिए.

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