पहाड़ों पर बढ़ा पर्यटकों का बोझ….ये मजा कहीं सजा न बन जाए!
पहाड़ों पर आपदा आ रही है, न तो हिमाचल प्रदेश इससे अछूता है और न ही उत्तराखंड. चाहे चमोली हो, शिमला हो, जोशीमठ हो या फिर मनाली. हर जगह खतरा है. फिर भी नए साल का जश्न मनाने के लिए लोग सबसे ज्यादा पहाड़ों का रुख कर रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि पहाड़ों पर महाजाम लगा है. हिमाचल के मनाली-शिमला और उत्तराखंड के नैनीताल-भीमताल और चमोली में पहुंचने के लिए वाहनों की कतार लगी है. घंटों लोग जाम में फंस रहे हैं. शायद इन पर्यटकों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं कि जो मजा लेने के लिए वे पहाड़ों पर जा रहे हैं वह उनके लिए सजा भी बन सकता है. पहले से बोझ झेल रहे पहाड़ों पर यह भीड़ तबाही भी ला सकती है.
उत्तराखंड और हिमाचल के टूरिस्ट स्पॉट डेंजर जोन में हैं. खास तौर से मनाली, शिमला और नैनीताल ऐसे इलाके हैं जहां पहले से क्षमता से अधिक बोझ है. इसी साल की शुरुआत में जब जोशीमठ को धंसने की वजह से खाली कराया जा रहा था, तब इस बावत कई चेतावनियां जारी भी की गईं थी. इनमें बताया गया था कि कैसे पहाड़ों पर लगातार बढ़ रहा बोझ खतरा बन सकता है. समय-समय पर पहाड़ों में आने वाली आपदा इन्हीं खतरों का संकेत मानी जा रही है. सबसे खास बात ये है कि हिमाचल के सबसे बड़े टूरिस्ट स्पॉट शिमला और मनाली सबसे ज्यादा खतरे में हैं.
धंस रहा शिमला, यहां आबादी से 15 गुना ज्यादा भीड़
हिमाचल प्रदेश में शिमला को 25 हजार की आबादी के लिए बसाया गया था. अब यहां तकरीबन ढाई लाख लोग रहते हैं, सबसे खास बात ये है कि यहां हजारों की संख्या में पहुंचे पर्यटक इस बोझ को कई गुना बढ़ा देते हैं. इसी का परिणाम है कि पहाड़ों पर बसा शिमला धीरे-धीरे धंस रहा है. यहां का लक्कड़ बाजार, लद्दाखी मोहल्ला समेत शिमला का एक चौथाई हिस्सा धंसाव वाले एरिया में आ चुका है. कई भूवैज्ञानिक सर्वे इसे असुरक्षित घोषित कर चुके हैं. भूवैज्ञानिक और एनविरोनिक्स ट्रस्ट श्रीधर राममूर्ति ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यहां बढ़ रहा निर्माण और नाजुक भूविज्ञान शिमला को धीरे-धीरे धंसा रहा है. हालात इतने गंभीर है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को 2017 में ही शिमला के मुख्य और हरित क्षेत्रों में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा चुका है.
मनाली में पर्यटक न बन जाएं बड़ा खतरा
हिमाचल का मनाली भी डेंजन जोन में है. मैक्लोडगंज स्थित विज्ञान और प्रोद्यौगिकी विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक यहां बढ़ रही भीड़ बड़ा खतरा बनती जा रही है. भारतीय सर्वेक्षण विभाग के पूर्व निदेशक राम कृष्ण ठाकुर ने एक साक्षात्कार में IANS को बताया था कि मनाली शहर भी जोशीमठ की तरह ही भूस्खलन के मलबे पर बसा है. यहां आबादी और पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार नहीं हो सका है. यहां न तो जल निकासी की व्यवस्था है और न ही सीवरेज प्रणाली है. ऐसे में पहाड़ों पर लगातार बढ़ रही भीड़ से यहां पानी का रिसाव बढ़ सकता है जो जोशीमठ जैसी आपदा का कारण बन सकती है.
दरकता जा रहा नैनीताल
नैनीताल धीरे-धीरे दरक रहा है. खासकर बारिश के मौसम में यहां भूस्खलन आम बात है. खास तोर से बलियानाला के आसपास का इलाका ज्यादा प्रभावित है. यहां 1867 में ही अंग्रेजों ने निर्माण प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन तब से यहां की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है. इसके अलावा पर्यटकों की भीड़ भी लगातार बढ़ती जा रही है. बताया जाता है कि आजादी के बाद भी यह कमेटी जारी रही और 1980 तक इसकी बैठकें भी होती थीं. 1984 में झील विकास प्राधिकरण के गठन के बाद यह कमेटी निष्क्रिय हो गई और नैनीताल डेंजर जोन में जाता रहा. बताया जाता है कि नैनीताल को 20 हजार लोगों की क्षमता के लिए बसाया गया था, लेकिन अब यहां लाखों की संख्या में लोग हैं. इसके अलावा हजारों पर्यटक इस बोझ को और बढ़ा देते हैं.
हिमाचल और उत्तराखंड में लगातार पर्यटक बढ़ रहे हैं. पिछले पांच साल की ही बात करें तो इनकी संख्या लाखों-करोड़ों में पहुंच गई है. कोरोना के साल 2020 और 2021 में जरूर यहां पर्यटकों की संख्या न के बराबर रही, लेकिन उसके बाद से फिर हालात भयावह होने लगे. कुछ माह पहले ही जारी की गई रिपोर्ट में ये बताया गया था कि मनाली में 1980 में सिर्फ 10 होटल हुआ करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या ढाई हजार से ज्यादा हो चुकी है.