पाकिस्तान, श्रीलंका के बाद चीन के ‘कर्ज जाल’ का नया शिकार बना अफ्रीका!

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गुरुवार को एक बड़ा ऐलान किया है. उन्होंने अफ्रीका महाद्वीप के लिए 51 बिलियन डॉलर की फंडिंग का वादा किया है. कर्ज में डूबे लेकिन संसाधन-समृद्ध अफ्रीका महाद्वीप में चीन ने तीन गुना अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट और इससे 10 लाख रोज़गार पैदा करने का वादा किया है. बीजिंग में चीन-अफ्रीका सहयोग शिखर सम्मेलन के दौरान जिनपिंग ने यह घोषणा की है.
चीन के राष्ट्रपति ने वित्तीय सहायता के तौर पर करीब 360 बिलियन युआन (51 बिलियन डॉलर) देने का वादा किया, लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि इसमें से 210 बिलियन युआन क्रेडिट लाइन के जरिए दिया जाएगा और कम से कम 70 बिलियन युआन का निवेश चीन की कंपनियां करेंगी. जबकि सैन्य सहायता और अन्य परियोजनाओं के जरिए छोटी राशि प्रदान की जाएगी.
इससे पहले डकार में 2021 के चीन-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में, चीन ने कम से कम $10 बिलियन निवेश और $10 बिलियन क्रेडिट लाइन का वादा किया था. इस बार यह वित्तीय सहायता युआन में होगी, जो चीनी करेंसी युआन को और अधिक अंतर्राष्ट्रीय बनाने के लिए एक बड़ी कोशिश है.
‘कर्ज जाल’ का एक और शिकार!
चीन ने पिछले साल भी अफ्रीका को 4.61 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया था, जो 2016 के बाद पहली वार्षिक वृद्धि थी. लिहाज़ा विश्लेषकों का मानना है कि चीन अपने डेब्ट ट्रैप (कर्ज जाल) को और बढ़ा रहा है. माना जा रहा है कि अफ्रीका उसके कर्ज जाल में फंसने वाला नया शिकार है. इससे पहले भी कई देशों को चीन इसी तरह की वित्तीय सहायता देकर अपने जाल में फंसा चुका है.
क्या है चीन का ‘डेब्ट ट्रैप’ यानी कर्ज जाल?
दरअसल चीन दुनिया के सबसे बड़े कर्ज देने वाले देशों में से एक है. चीन लगातार गरीब और पिछड़े देशों को विकास के नाम पर भारी भरकम राशि कर्ज देकर उनका हितैषी दिखने की कोशिश करता है, लेकिन यह देश धीरे-धीरे उसके डेब्ट ट्रैप (कर्ज जाल) में फंसते जाते हैं.
वर्ल्ड बैंक के डाटा के मुताबिक वर्ष 2010 से 2020 के बीच निम्न और मध्यम आय वाले देशों को दिए गए इसके कर्ज में तीन गुना बढ़ोत्तरी हुई है. 2020 के अंत तक यह रकम 170 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई.
चीन के कर्ज ट्रैप में वैसे तो दुनियाभर के कई देश फंसे हैं लेकिन इनमें पाकिस्तान, श्रीलंका, केन्या, मंगोलिया, जाम्बिया जैसे देश प्रमुख हैं.
माना जाता है चीन पहले तो गरीब देशों को कर्ज देता है और फिर जब ये देश चीन के भारी-भरकम कर्ज को चुकाने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें अपने देश की प्रमुख संपत्तियों से नियंत्रण छोड़ना पड़ता है. यह संपत्तियां रणनीतिक तौर पर चीन के लिए काफी अहम होती हैं और चीन इसके जरिए खुद को मजबूत और ताकतवर बनाता जा रहा है.
चीन के कर्ज जाल में डूबे पाकिस्तान-श्रीलंका!
न्यूज एजेंसी AP के विश्लेषण से पता चला है कि कई देशों ने अपने विदेशी कर्ज का 50% हिस्सा चीन से लिया था और उनमें से अधिकांश देश अपने सरकारी राजस्व का एक तिहाई से अधिक हिस्सा इस कर्ज़ को चुकाने में लगा रहे थे. इनमें 2 देश जाम्बिया और श्रीलंका पहले ही डिफॉल्ट हो चुके हैं और बंदरगाहों, खदानों और बिजली संयंत्रों के निर्माण के लिए लिये गए कर्ज पर ब्याज का भुगतान करने में भी असमर्थ हैं.
पाकिस्तान में लाखों टेक्टाइल वर्कर्स को नौकरी से निकालना पड़ा क्योंकि उस पर चीन का कर्ज इतना अधिक है कि कंपनियां मशीनों को चालू रखने के लिए बिजली बिल का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं. पाकिस्तान की जमीन पर चल रहे चीन के प्रोजेक्ट और कर्ज के चलते गृहयुद्ध जैसे हालात पनप रहे हैं.
Aid डाटा के मुताबिक कम से कम 40 से ज़्यादा निम्न और मध्यम आय वाले देश ऐसे हैं, जिनका चीनी कर्जदाताओं से लिया कर्ज उनकी वार्षिक GDP के आकार का 10% से ज़्यादा है. जिबूती, लाओस, जाम्बिया और किर्गिस्तान पर चीन का कर्ज उनकी वार्षिक GDP के कम से कम 20% के बराबर है.

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