पापा, मैं लड़की नहीं लड़का हूं…प्लीज, मुझसे नफरत मत करना…पढ़ें, जेंडर चेंज की सच्ची कहानियां

सना (बदला हुआ नाम) का जन्म एक मिडिल क्लास फैमिली में एक लड़के के रूप में हुआ था. वह भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी और उसे सबसे ज्यादा लगाव अपनी मां से था. सना पढ़ाई में शुरू से बेहद होशियार थी लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ी हुई, चीजें बदलने लगीं. 15-16 साल की उम्र तक आते-आते उसे एहसास होने लगा था कि उसके साथ सबकुछ ठीक नहीं है. उसका शरीर बेशक एक लड़के का था लेकिन वो लड़कियों की चीजों में ज्यादा सहज महसूस करने लगी थी. घर में सना को कोई नही समझता था. ये बात उसे अंदर ही अंदर परेशान करता रही जिसकी वजह से वो एंजायटी, डिप्रेशन में रहने लगी और उसे लोगों के साथ रहने के बजाय अकेले रहना ज्यादा पसंद आने लगा. यही वजह थी कि सना का स्कूल और घर में कोई खास दोस्त नहीं था जिसके साथ वो अपना दर्द बांट पाती.

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