प्रकृति और आस्था का खूबसूरत संगम स्थल है दक्षिण छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक शहर दंतेवाड़ा
दक्षिणी छत्तीसगढ़ का छोटा सा शहर दंतेवाड़ा जो नदियों, जगमगाते झरनों, ऊंची-ऊंची पहाड़ियों, हरे-भरे जंगलों और सबसे खास मां दंतेश्वरी के शहर के रुप में मशहूर है. इस शहर में आदिवासी कला, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के साथ प्रकृति के खूबसूरत नजारों का जो मजा है वो सिर्फ सुनने या पढ़ने में नहीं बल्कि नज़दीक देखने में ज़्यादा दिलचस्प है. यहां का चप्पा-चप्पा अपनी खूबसूरती के मनोरम दृश्यों को खुद बयान करता है.
दंतेवाड़ा का नाम नारी शक्ति की अवतार देवी मां दंतेश्वरी के नाम पर पड़ा था. जिसका इतिहास जानने और समझने के लिए दंतेवाड़ा का सफर जरूरी हो जाता है. यहां पर पर्यटकों के देखने के लिए सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक और दार्शनिक तौर पर बहुत से स्थल मौजूद हैं…
1. फुलपाड़ का झरना : फुलपाड़ का खूबसूरत झरना शहर से लगभग 40 किमी की दूरी पर प्रकृति की गोद में मौजूद है. इस झरने के आस-पास खड़ी चट्टानें, हरे-भरे जंगल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. इस झरने को देखने के लिए कच्चे रास्तों और चट्टानों पर से गुजरकर जाना होता है. इस दौरान पर्यटकों को ट्रेकिंग का एक अलग ही अनुभव होता है. पर्यटक अगर ग्रुप में हों तो ये रास्ता हंसते हुए पार हो जाता है. इस दौरान आपके साथ अगर कोई स्थानीय प्रशिक्षित गाइड हो तो वो पूरे रास्ते आपको यहां के किस्से कहानियां सुनाता हुआ चलता है. वहीं रास्ते में आदिवासी समाज के लोग भी पर्यटकों का स्वागत दिल खोल कर करते हैं. इस दौरान पर्यटकों को आदिवासी संस्कृति और उनके रहन-सहन, खान-पान की अच्छी जानकारी मिल जाती है.
2. गुमेर झरना या प्रतापगिरी का झरना : गुमेर का झरना बस्तर का सबसे बड़ा झरना कहलाता है, साथ ही इसे बस्तर का दूसरा सबसे ऊंचा झरना होने का गौरव हासिल है. इसकी तुलना दूधसागर झरने से कि जाती है. गुमेर झरना मुंगा गांव के पास स्थित है जिसका पानी अलग-अलग धाराओं में लगभग 400 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है. जो पहली ही नजर में पर्यटकों का दिल जीत लेता है. नीचे गिरने वाला पानी घने जंगल में होता हुआ आगे गुजर जाता है और पीछे छोड़ जाता है अपनी मधुर आवाज़.
3. झारलावा झरना : छत्तीसगढ़ के बैलाडीला पर्वतों के बीचों-बीच स्थित है झारलावा झरना. ये झरना प्रकृति प्रेमियों में एक नया जोश भर देता है और पहाड़ियों के बीच में अपनी अलग ही खूबसूरती बिखेरते हुए नीचे गिरता है. इस झरने के पानी की आवाज जंगल में दूर से सुनाई देने लगती है, थोड़ा करीब आने पर इस झरने की सफेद रंग की धाराएं दिखने लगती हैं जो पहली ही नजर में पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं. इस झरने में पूरे साल पानी मौजूद रहता है लेकिन मानसून के दिनों में ये अपने पूरे जोश के साथ बहता है. हालांकि मानसून की बारिश के दिनों में झरने तक पहुंचने का रास्ता थोड़ा दलदल वाला बन जाता है. साथ ही झरने का पानी पूरे इलाके में दूर-दूर तक फैल जाता है इसलिए मानसून में झरने को पास से देखने का मौका नहीं मिल पाता है जबकि अक्टूबर से मार्च के बीच इस झरने की खूबसूरती अपने चरम पर होती है.
4. ढोलकल गणेश : विश्व प्रसिद्ध भगवान गणेश का ये खास मंदिर मंदिर बैलाडीला के पहाड़ों पर स्थित है. ये मंदिर दंतेवाड़ा शहर से लगभग 20 किमी की दूरी पर है जहां पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लगता है. इस गणेश मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 3000 फीट है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि भगवान गणेश की इस खूबसूरत 3 फीट ऊंची मूर्ति को 10वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान नाग वंश के राजाओं के द्वारा बनवाया गया था.
इस मूर्ती को देखने पर हर पर्यटक को जिज्ञासा होती है कि आखिर ये मूर्ति इतनी ऊंचाई पर इस चट्टान तक कैसे पहुंची होगी. ढोलकल गणेश जी के दर्शन करने के लिए 5 किमी लंबे जंगली रास्तों से होकर गुज़रना पड़ता है. इस दौरान स्थानीय गाइड की सेवा लेना जरूरी होता है जो पूरे रास्ते इस जगह से जुड़ी किंवदंतियों को सुनाता चलता है जिससे ये रास्ता कब पूरा हो जाता है पता ही नहीं चलता.
दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ का आदिवासी बहुल शहर है जहां पर आदिवासी संस्कृति की झलक रहन-सहन, खान-पान और उनके पहनावे में साफ तौर पर दिखाई देती है. आदिवासी कला को प्रदर्शित करने वाले मनमोहक डांस, परंपरागत संगीत की आवाज, समय-समय पर होने वाले आदिवासी लोक संस्कृति के रंग-बिरंगे त्योहारों की झलक देखते ही बनती है…
1. फागुन मड़ई मेला : आदिवासी समाज और उनकी संस्कृति को दर्शाने वाले इस मेले को आदिवासियों का कुंभ के नाम से जाना जाता है. फागुन मड़ई मेला दक्षिण बस्तर की शान है. इस मेले का आयोजन फागुन महीने की 6 से 14 तारीख तक होता है. दंतेवाड़ा के मां दंतेश्वरी मंदिर के पास पूरे 9 दिनों तक दिन-रात मड़ई मेला चलता है.
मान्यता के मुताबिक, इस मेले के दौरान मां दंतेश्वरी के दरबार में पूरे बस्तर के साथ पड़ोसी राज्य उड़ीसा के भी सीमावर्ती गांवों के देवी-देवता अपनी हाजिरी देने के लिए उपस्थित होते हैं. इस मेले में लगभग 1000 देवी-देवता अपने-अपने ध्वज और पालकी के साथ आते हैं. इस दौरान सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद मेले में उपस्थित सभी लोगों को मिलता है. मड़ई मेले के दौरान आदिवासी लोग नाच-गाकर अपना उत्सव मनाते हैं.
2. घोटपाल मेला : दंतेवाड़ा के घोटपाल गांव में आदिवासी संस्कृति को दर्शाने वाले घोटपाल मेले का आयोजन होता है. ये उत्सव पूरे बस्तर में मनाया जाता है. घोटपाल मेला बस्तर संभाग का सबसे बड़ा मेला है, इसके शुरू होने के बाद पूरे मानसून के मौसम में बस्तर संभाग में जगह-जगह मेले और उत्सवों का आयोजन चलता रहता है. घोटपाल मेले की खासियत ये है कि इसका आयोजन सिर्फ मंगल के दिन होता है. इस उत्सव के दौरान आदिवासी लोग अपने-अपने देवी-देवताओं को कंधे पर रखकर नाचते-गाते हैं. इस दौरान मोर पंखों की भी पूजा की जाती है.
3. फरसपाल मेला : बस्तर संभाग के दक्षिणी इलाकों में घोटपाल मेले के आयोजन के बाद अगले मंगलवार के दिन से फरसपाल मेले की शुरूआत होती है. इस वार्षिक मेले में भी आदिवासी समाज के लोग अपने-अपने देवताओं के साथ पहुंचते हैं. मेले में शामिल होने के लिए आस-पास के गांव, कस्बों से ग्रामीण बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
इस मेले में विधि-विधान के अनुसार पूजा-पाठ होती है जिसके बाद पारंपरिक रस्मों को निभाने के लिए नर्तक हाथों में ढोल लेकर डांस करते हुए पूरे मेले की परिक्रमा लगाते हैं. फरसपाल के मेले में पर्यटकों को आदिवासी संस्कृति और रस्मों का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है. फरसपाल का मेला कोटवार इलाके में स्थित मां शीतला देवी मंदिर के परिसर में चार दिनों तक चलता है.
दंतेवाड़ा पहुंचने का मार्ग
1. सड़क मार्ग : दंतेवाड़ा शहर के लिए छत्तीसगढ़ के सभी शहरों से बस सेवाएं मिल जाती हैं. वहीं बजट के अनुसार पर्यटक प्राइवेट टैक्सी या कैब लेकर भी दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं. दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 325 किमी की दूरी पर स्थित है.
2. रेलमार्ग : दंतेवाड़ा का रेलवे स्टेशन जंक्शन है. भारत के हर छोटे बड़े शहरों के लिए यहां से ट्रेनें आसानी से मिल जाती हैं. रेलवे स्टेशन से आसानी से ऑटोरिक्शा मिल जाते हैं, स्टेशन के पास ही सस्ते होटल भी मौजूद हैं जहां कम बजट में आसानी से रुका जा सकता है. रेलवे ने बस्तर में पर्यटक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विस्टाडोम कोच वाली ट्रेन चलाई है जो आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम शहर से चलती है. इस विस्टडोम कोच में लगी बड़ी-बड़ी कांच की खिड़कियों से बस्तर के जंगलों की खूबसूरती को देखा जा सकता है.
3. हवाई मार्ग : दंतेवाड़ा जाने के लिए सबसे नजदीक रायपुर एयरपोर्ट है. रायपुर से बस, टैक्सी या कैब लेकर दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं.