फिदेल कास्त्रो से मिली इस सीख को कभी नहीं भूल पाए सीताराम येचुरी, कभी ओबामा का किया था विरोध!
क्यूबा में क्रांति लाने वाले फिदेल कास्त्रो से मिलने के लिए एक बार भारत से लेफ्ट के दो नेता गए. इसमें एक बुजुर्ग के साथ युवा नेता था. बातचीत में कास्त्रो ने पूछा कि भारत में स्टील का कितना उत्पादन होता है. इसका दोनों में से किसी के पास जवाब नहीं था. कास्त्रो ने बुजुर्ग नेता से तो कुछ नहीं कहा. मगर, उनके साथ आए युवा लड़के को एक सीख दी. सीख ये कि हमेशा होमवर्क करके आइए. देश से जुड़ी बड़ी बातें, बड़े आंकड़े आपको उंगलियों पर याद होने चाहिए. इस लड़के ने सीख को हमेशा याद रखा. ये करीब 40 साल पुरानी बात है और वो युवा लड़के सीताराम येचुरी थे.
ये कहानी आज इसलिए सामने आई क्यूंकि मौजूदा दौर में देश में कुछ ही बड़े नाम हैं, जिनकी पहचान लेफ्ट पार्टियों से होती है. सीताराम येचुरी उनमें से एक रहे, लेकिन 12 सितंबर दिन गुरुवार को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 72 साल की उम्र में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी का निधन हो गया. बीते कुछ दिनों से वो दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे. पार्टी की ओर से लगातार उनकी तबीयत की जानकारी दी जा रही थी लेकिन अब अस्पताल की ओर से ये जानकारी दी गई है कि देश के इस वरिष्ठ नेता ने अंतिम सांस ली है.
तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्म
चेन्नई के एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए सीताराम येचुरी के माता-पिता सरकारी अफसर थे. दिल्ली में पढ़ाई हुई और इसी दौर में छात्र राजनीति की ओर झुकाव हुआ. ये झुकाव लेफ्ट पार्टियों की तरफ था और यही दौर इमरजेंसी वाला भी था. इसी के बाद वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने थे. साल 1975 में जब येचुरी JNU में पढ़ाई कर रहे थे. उसी दौरान इमरजेंसी के समय उन्हें गिरफ्तार किया गया था.
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कॉलेज के समय से ही वो राजनीति में आ गए. वो तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. येचुरी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास के बाहर पर्चा पढ़ने के चलते सुर्खियों में आए थे. यहां से ही वो एक नेशनल फिगर भी बने. जब सत्ता में भागीदारी की बात आई तब सीताराम येचुरी को पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की गठबंधन निर्माण विरासत को जारी रखने के लिए जाना जाता है.
12 साल तक राज्यसभा सदस्य रहे
साल 1996 में उन्होंने संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का मसौदा तैयार करने के लिए पी. चिदंबरम का सहयोग किया था. साल 2004 में यूपीए सरकार के गठन के दौरान गठबंधन भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. सीताराम येचुरी कभी लोकसभा के सदस्य तो नहीं रहे, लेकिन 12 साल तक राज्यसभा के सदस्य जरूर रहे.
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येचुरी की गिनती ऐसे नेताओं में रही, जो हर पार्टी से संबंध बना सकते थे और सभी दलों में उनकी जान पहचान थी. देश में अगर लेफ्ट पार्टियों के चेहरे की बात करें तो दो ही चेहरे नजर आते हैं, जिनमें सीताराम येचुरी और फिर प्रकाश करात की बात होती है. बातें ये भी होती हैं कि दोनों की ही आपस में नहीं बनती थी. येचुरी हमेशा बंगाल की आवाज बुलंद करते तो प्रकाश करात केरल वाली लेफ्ट नीति को आगे बढ़ाते थे.
अमेरिका की विदेश नीति के मुखर विरोधी
2015 के बाद से ही सीताराम येचुरी अपनी पार्टी के महासचिव थे, यानी पार्टी एक तरह से वही चला रहे थे. सीताराम येचुरी भले ही सीएम, मंत्री या पीएम नहीं रहे हों लेकिन वो देश की एक ऐसी आवाज रहे जिनका कुछ कहना मायने रखता था. येचुरी ने अमेरिका की विदेश नीति का खुला विरोध किया, ओबामा जब गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत आए तब भी वो उनके खिलाफ थे.
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येचुरी ने पिछले कुछ वक्त में काफी कुछ खोया था, काफी कुछ बदला भी था.कोरोनाकाल में येचुरी ने अपने बेटे को खो दिया था. उसके बाद बढ़ती उम्र के बावजूद वो काम में मगन रहे. येचुरी का कहना था कि ज्यादा काम करने से बेटे की याद कम आती है. येचुरी आज इस दुनिया से विदाई ले चुके हैं. उनके साथ काम करने वाले, उनके समर्थक आज उन्हें विदाई दे रहे हैं.