फिल्मों में क्या होता है Bullet Time Effect, जिससे हवा में सबकुछ रुक जाता है?

हॉलीवुड-बॉलीवुड का जब भी कम्पैरिजन होता है तो हमेशा एक बात आपने लोगों को कहते जरूर सुनी होगी कि हॉलीवुड में मेकर्स के पास जो चीजें हैं वो बॉलीवुड के पास नहीं है. कुछ तो कारण है ही कि हॉलीवुड की फिल्में इतनी अलग सी लगती हैं. जैसे साल 1999 में आई फिल्म ‘मेट्रिक्स’ ने लोगों को एक ऐसी दुनिया दिखाई जिसे वो आजतक नहीं भूल पाए. मेट्रिक्स ने एक पूरी जेनरेशन को इस बात के विरोधाभास यानी कॉन्टैडिक्शन में डाल दिया कि हमारे आसपास जो भी है ये सबकुछ झूठ है और एक ऐसी दुनिया है जहां हम सब सो रहे हैं.
इस फिल्म ने ना सिर्फ हॉलीवुड बल्कि हर एक फिल्म इंडस्ट्री को फिल्म मेकिंग के कई अलग तरह के एस्पेक्टस से रूबरू करवाया. इस फिल्म में कई ऐसे सीन थे जिन्हें उसी तरह से शूट करना आज भी कई डायरेक्टर्स और सिनेमेटोग्राफर्स के लिए एक चैलेंज है. ऐसा ही एक सीन था मेट्रिक्स में आईकॉनिक Bullet Dodge scean.
इस सीन में कियानू रीव्स का किरदार न्यू 180 डिग्री बेंड होकर सारी गोलियों को डॉज करता है और उसके आसपास पूरा कैमरा सर्कुलर मोशन में घूमता है. ये सीन और इसका कैमरा मूवमेंट, उस जमाने की फिल्म मेकिंग में एक अलग किस्म की तकनीक लेकर आया था जिसे आज एक आईकॉनिक एफेक्ट के तौर पर कई फिल्मों में यूज किया जाता है. तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर मेट्रिक्स का ये सीन आपको इतना अनोखा क्यों लगता है और हिंदी सिनेमा में ऐसे कौन से एक्टर हैं जिन्होंने ऐसे सीन्स को एक नहीं बल्कि दो-दो बार किया है.
क्या है बुलेट टाइम इफेक्ट?
बुलेट टाइम इफेक्ट या फिर मेट्रिक्स इफेक्ट एक तरह का सीन इफेक्ट है जिसे फिल्म में इस्तेमाल किया जाता है. ये इफेक्ट अक्सर सीन में समय को रोकने के लिए यूज किया जाता है. मैट्रिक्स के इस सीन को अगर हम करीब से समझे तो इस फिल्म की पूरी कहानी में टाइम एक काफी अहम हिस्सा है. ऐसे में इस सीन में न्यू के किरदार को टाइम की स्पीड के हिसाब से फास्ट दिखाया गया है. न्यू पर जब फाइरिंग होती है तो वो काफी स्पीड से इन्हें डॉज करता है लेकिन हमें वो पूरा सीन काफी स्लो मूव करके दिखाया जाता है ताकी हम पूरे सीन को अच्छे से समझ पाएं और न्यू के किरदार से और जुड़ सकें.
कैसे क्रिएट किया जाता है ये इफेक्ट?
इस इफेक्ट को क्रिएट करना भले आज की तकनीक के हिसाब से आसान लगे लेकिन असल में ये इतना आसान नहीं होता. इस इफेक्ट को क्रिएट करने के लिए किसी ऑबजेक्ट के आसपास सर्कुलर मूवमेंट में लगभग 200 से 300 कैमरे रखे जाते हैं. इन कैमरों को 180 डिग्री या फिर 360 डिग्री के एंगल पर सेट किया जाता है डिपेंडिंग ऑबजेक्ट के आसपास का सर्कल कितना बड़ा है. इसके बाद सीन शूट करते वक्त ऑबजेक्ट के एक्शन को वो सारे कैमरे अलग-अलग एंगल से सर्कुलरली एक साथ कैप्टचर करते हैं. ये सबकुछ फोटोज में होता है. इन पिक्चर्स को खींचने के बाद आपको उस ऑबजेक्ट के मोशन का फ्रेम बाई फ्रेम एक पूरा मोमेंट मिल जाता है.
जब मैट्रिक्स के न्यू की तरह उड़े थे शाहरुख
जब ये फोटोज मिल जाती हैं तो इन्हें पोस्ट प्रोडक्शन के वक्त मोशन दिया जाता है और सारे ग्लिच को हटा दिया जाता है साथ ही कैमरा भी रीमूव कर दिए जाते हैं. इसके बाद सारी इमेजिस को फ्रेम बाई फ्रेम एक साथ ऐसे सेट किया जाता है कि आपको लगे कि ये एक वीडियो है ना कि कोई पिक्चर. इस इफेक्ट की शुरुआत मेट्रिक्स फिल्म से ही हुई थी, लेकिन बॉलीवुड में भी कई बार इस इफेक्ट का इस्तेमाल हुआ है. उदाहरण के लिए फारह खान की डायरेक्टिड फिल्म ‘मैं हूं ना’ का आईकॉनिक रिक्शा रेस्क्य़ू वाला सीन या फिर शाहरुख का इसी फिल्म में गन हवा में उड़ते हुए चलाने वाला सीन. इसके अलावा रा.वन में भी शाहरुख खान और अर्जुन रामपाल का कार फाइट सीन जिसमें करीना और उनके बेटे कार में हैं और कार 360 डिग्री टर्न करती है.

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