बहुमत नहीं था तो भंग कर दी संसद, श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के फैसले के पीछे का गणित समझिए

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने मंगलवार को संसद भंग कर दी है. देश में अब 14 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे. श्रीलंका की संसद का कार्यकाल अगस्त 2025 में पूरा होना था लेकिन सोमवार को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले वामपंथी राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने इसे भंग करने के आदेश दे दिए.
राष्ट्रपति दिसानायके ने शपथ ग्रहण से पहले ही जल्द संसद भंग करने के संकेत दे दिए थे. उनका कहना था कि उनकी जीत के साथ ही मौजूदा संसद का जनादेश खत्म हो गया है. लेकिन NPP नेता अनुरा के इस फैसले के पीछे का असली गणित कुछ और है.
बहुमत नहीं था तो भंग कर दी संसद?
दरअसल श्रीलंका की संसद में राष्ट्रपति दिसानायके की पार्टी बेहद कमजोर स्थिति में है. 225 सीटों वाली श्रीलंकाई संसद में उनकी पार्टी के पास महज 3 सीटें थीं. ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में वह जिन वादों और दावों के दम पर जीत हासिल कर सत्ता में आए हैं उन्हें पूरा करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा.
हालांकि श्रीलंका में राष्ट्रपति, राज्य और सरकार दोनों का मुखिया होता है लेकिन देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. महज 3 सांसदों के साथ इतने सारे विभागों का बंटवारा और नौकरशाही को चलाना आसान नहीं होगा. साथ ही संसद से बिल पास कराना भी उनके लिए बड़ी चुनौती होती, क्योंकि 9वीं संसद में राजपक्षे परिवार की SLPP के पास 145 सीटों के साथ मजबूत बहुमत था.
मौजूदा लहर का लाभ उठाने की कोशिश?
श्रीलंका के चुनावी इतिहास में पहली बार कोई वामपंथी राष्ट्रपति चुनकर आया है, अनुरा और उनकी पार्टी के लिए यह जीत बेहद अहम है. श्रीलंका में 1982 से अब तक हुए 9 राष्ट्रपति चुनाव कभी भी निष्पक्ष नहीं रहे हैं, माना जाता है कि निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति पद पर मौजूद व्यक्ति या उसकी पार्टी के दबाव में काम करता रहा है.
लेकिन अब राष्ट्रपति की कुर्सी पर दिसानायके काबिज़ हैं, चुनाव में उनकी पार्टी को करीब 42 फीसदी वोट मिले हैं, अगर उनकी पार्टी इस प्रदर्शन को संसदीय चुनाव में दोहराने में कामयाब हो जाती है तो संसद में भी स्थिति मजबूत हो जाएगी.
समय पर चुनाव होते तो हो सकती थी मुश्किल?
इसके अलावा अनुरा दिसानायके ने देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए IMF के साथ बातचीत को तुरंत शुरू करने की आवश्यकता बताई है. उनकी पार्टी को आर्थिक संकट के आंदोलन के दौरान ही जनता का समर्थन मिलना शुरू हुआ और लोगों ने देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के वादों के चलते ही उन्हें मौका दिया है. लिहाजा श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में सुधार और महंगाई में कमी ना होने की सूरत में जनता का उनसे मोहभंग हो सकता है. ऐसे में अगर संसदीय चुनाव तय समय पर होते तो उनकी पार्टी के लिए संसद में बहुमत जुटाना मुश्किल होता.
श्रीलंका में वामपंथी सियासत का भविष्य क्या होगा?
यही वजह है कि दिसानायके ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के अगले ही दिन संसद भंग करने का ऐलान कर दिया. उन्होंने 4 सदस्यीय अंतरिम कैबिनेट के बीच 15 विभागों का बंटवारा कर दिया है, निश्चित तौर पर इतनी छोटी कैबिनेट के साथ सरकार चलाना बड़ी चुनौती होगी लेकिन वह उम्मीद कर रहे होंगे कि नवंबर में होने वाले चुनाव में उनकी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करे, क्योंकि संसदीय चुनाव में NPP का प्रदर्शन राष्ट्रपति अनुरा को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ देश में वामपंथी सियासत का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है.

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