बारिश में क्यों पहनी जाती है बंधेज और लहरिया साड़ी? राजस्थान की रेत से जुड़ी है कहानी
फैशन समय के साथ बदलता रहता है, लेकिन कुछ ट्रेडिशनल आउटफिट्स कभी आउडेटेड नहीं होते हैं, जैसे साड़ी. भारत में साड़ी पारंपरिक परिधान है जो हर महिला को पसंद होती है. आज मॉर्डन लाइफस्टाइल में भी लड़कियां साड़ी पहनना पसंद करती हैं. राज्यों के साथ ही साड़ी बांधने के तरीका भी बदलता चला जाता है और साथ ही इसके डिजाइन भी बदल जाते हैं. लहरिया और बंधेज या बांधनी दो ऐसे प्रिंट हैं जो राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक कई राज्यों में खूब पसंद किए जाते हैं. बांधनी साड़ी वैसे तो शादी से लेकर फेस्टिवल तक खूब पहनी जाती है, वहीं खासतौर पर मानसून यानी बारिश के मौसम में बंधेज और लहरिया प्रिंट की साड़ियां खूब पसंद की जाती हैं.
लहरिया प्रिंट और बंधेज दोनों खासतौर पर राजस्थान में खूब प्रचलित हैं और इनका इतिहास भी इस राज्य से ही जुड़ा हुआ है. अपने समृद्ध इतिहास और संस्कृति के लिए पहचाने जाने वाले राजस्थान का पहना भी राजसी है. भले ही राजस्थान में साड़ियां पहनने की परंपरा न रही हो लेकिन फिलहाल ये दोनों प्रिंट यहीं की देन माने जाते हैं. राजस्थान में पुरुषों की पगड़ी से लेकर लुगड़ी (दुपट्टे) तक में कलरफुल लहरिया और बंधेज प्रिंट देखने को मिल जाता है. तो चलिए जान लेते हैं कि कैसे बंधेज और लहरिया प्रिंट की हुई शुरुआत और बारिश में ये क्यों पसंद किए जाते हैं.
रेगिस्तान की रेत से जुड़ी है लहरिया की कहानी
लहरिया प्रिंट की कहानी राजस्थान की रेत से जुड़ी हुई है. राजस्थान में बने रेत के टीलों पर हवा से डायगोनल पैटर्न (लहर) बन जाते हैं. लहरिया प्रिंट इन्हीं पैटर्न से प्रेरित माना जाता है. बंधेज की तरह ये भी एक टाई एंड डाई प्रिंट टेक्नीक है, जिसमें खूबसूरत रंगों का कॉम्बिनेशन होता है. लहरिया डिजाइन बनाने के लिए सबसे पहले कपड़े को धागे से बांधा जाता है और फिर उसपर प्रिंट किया जाता है.
लहरिया साड़ी का इतिहास (Tuul & Bruno Morandi/The Image Bank/Getty Images)
बंधेज का इतिहास है पुराना
बांधनी या बंधेज प्रिंट साड़ी अभिनेत्रियां भी खूब पसंद करती हैं. इसकी शुरुआत करीब 17वीं शताब्दी के पास मानी जाती है. बांधनी प्रिंट के कई अलग-अलग पैटर्न और फैब्रिक के हिसाब से नाम होते हैं जैसे घारचोला प्रिंट, गांजी बांधनी साड़ी, बांधनी सिल्क, शुद्ध बांधनी कॉटन, शिकारी बंधेज, चंद्रखानी बंधेज प्रिंट, एकदाली बांधनी प्रिंट. बांधनी प्रिंट के इतिहास की बात करें तो यह बहुत पुराना है. अजंता के भित्ति चित्रों में बंधेज की झलक देखे को मिलती है.
लहरिया औऱ बंधेज साड़ियां (image- Bartosz Hadyniak/Photodisc/Getty Images)
बंधेज की प्रिंटिंग तकनीक भी है कमाल
वैसे तो अब प्रिंटिंग की नई-नई तकनीक विकसित हो गई हैं, लेकिन पारंपरिक रूप से कपड़े पर बंधेज प्रिंट करने के लिए बेहद कुशलता चाहिए होती है, क्योंकि छोटी-छोटी बूंदों के डिजाइन को ब्लॉक पैटर्न में बदलने के लिए पूरे कपड़े में महीन गांठें लगानी होती हैं. इसलिए जो कारीगर ये प्रिंट हाथों से तैयार करते हैं, उन्हें नाखून बड़े रखने पड़ते हैं.
लहरिया और बंधेज प्रिंट (Anand Purohit/Moment/Getty Images)
बारिश में क्यों पहनते हैं बंधेज और लहरिया
राजस्थान में बारिश के मौसम में खासतौर पर सावन में बंधेज प्रिंट की चुन्नी और साड़ियां पहनी जाती हैं. दरअसल लहरिया शब्द पानी की लहर को भी परिभाषित करता है और यह प्रिंट साड़ी पर मुख्यता लहरों को ही दर्शाता है. तो वहीं बंधेज बूंदों के पैटर्न मे की गई प्रिंटिंग होती है. सीधे तौर पर देखा जाए तो बारिश के दिनों में लोग खिले-खिले रंगों के कपड़े पहनना ज्यादा पसंद करते हैं जो नेचर को रिप्रजेंट करते हो और बंधेज व लहरिया प्रिंट में लाल, पीले, हरे, नारंगी रंगों का ज्यादा प्रयोग होता है जो मानसून में बेहतरीन लगता है.