‘बिरहा दा सुल्तान’ शिव कुमार बटालवी, जिसकी आकाशवाणी से रिकॉर्डिंग डिलीट कराई और जलवा दी गई उसकी डायरी

इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है…गुम है… ये गाना ‘उड़ता पंजाब’ मूवी में आपने सुना होगा. इस गाने को दिलजीत दोसांझ और आलिया भट्ट ने गाया है. इस गाने की लाइन्स कवि शिव कुमार बटालवी ने लिखी हैं. शिव कुमार बटालवी वो कवि हैं जिन्होंने अपनी प्रेमिका की जुदाई में वो लिखा, जिसे पढ़कर आज भी दुनिया उन्हें याद करती है. तो चलिए आपको बताते हैं कौन हैं वो शिव कुमार बटालवी जिनकी मोहब्बत के किस्से आज भी मशहुर हैं. पंजाब के बटाला की वो गलियां जहां शिव ने लिखी मोहब्बत की दास्तान.
पाकिस्तान के बड़ापिंड में 23 जुलाई 1936 को शिव का जन्म हुआ था. उनके पिता पंडित कृष्ण गोपाल तहसीलदार थे और मां शांति देवी एक हाउस वाइफ. 1947 में विभाजन के बाद वे बटाला, जिला गुरदासपुर, पंजाब आ गये. यहीं पर शिव ने अपनी प्राइमरी एजुकेशन हासिल की. पंजाबी कवि शिव कुमार बटालवी ने शराब की बोतल में डूबकर दुनिया को शायरी का नशा दिया. वे अपनी रोमांटिक कविताओं के लिए जाने जाते थे. इनमें एक प्रेमी का दर्द, जुदाई और भावनाओं का उभार साफ दिखता है.
शिव को दर्द ने बनाया लेखक, कवि और शायर
शिव कुमार बटालवी ने अपनी जवानी में प्यार किया, लेकिन उन्हें क्या मिला? सिर्फ बेचैनी…नाकामी… असफलता…उदासी.. तन्हाई…और गहरा दर्द…इस दर्द से उनकी कविताओं, शायरी और गीतों के सफर की शुरूआत हुई. लेकिन होठों से लगी शराब उनकी जुदाई पर मरहम लगाने लगी. कहते हैं कि जिस लड़की से वो प्रेम करते थे, उस की बीमारी में मौत हो गई. जिसके बाद बटालवी ने अपने प्यार की जुदाई को लिखा और दुनिया को अपनी लेखनी का दीवाना बना दिया. उन्होंने ने लिखा:
की पुछदेओ हाल फ़कीरां दा
साडा नदियों बिछड़े नीरां दा
साडा हंझ दी जूने आयां दा
(क्या पूछते हो हाल फ़कीरों का, हम नदियों से बिछड़े पानी की तरह हैं)
कुमार विश्वास ने एक शो में कहा था कि शिव ने मोहब्बत को गंभीरता से लिया था. शिव को बहुत बदनामी और विरोध झेलना पड़ा. पंजाब आकाशवाणी पर हुई उनकी रिकॉर्डिंग डिलीट करवा दी गई और डायरियां जला दी गईं. कुमार विश्वास ने कहा कि शिव हमारी याद के पहले बदनाम शायरों में है. शिव कुमार पंजाबी जुबान के एक ऐसे शायर, एक ऐसे कवि थे, जिन्हें सरहद के पार पाकिस्तान में भी और हिंदोस्तान में भी गाया जाता है.

शिव कुमार बटालवी ने लंदन में बीबीसी को दिये एक इंटरव्यू में कहा था कि हम सब लोग स्लो सुसाइड कर रहे हैं. शिव ने कहा कि कविता एक हादसे से पैदा नहीं होती. मेरे अंदर पैदा हुई कविता में मोहब्बत, उदासी और दर्द के साथ-साथ सब कुछ है. बटालवी के गीतों में जुदाई का दर्द था, जिसके चलते मशहुर कवयित्री अमृता प्रीतम ने उन्हें बिरह का सुल्तान नाम दिया. पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) के लिए शिव को साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया. शिव 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे छोटी उम्र के साहित्यकार बने.
बटालवी शराब की लत के इस कदर आदी हो चुके थे कि वे बीमार पड़ गए और इलाज के दौरान उनका देहांत हो गया. शिव कुमार बटालवी मई 1973 को 36 साल की उम्र में दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए. पठानकोट, पंजाब के कीर मंग्याल में उन्होंने अपनी आखरी सांसे ली. शिव ने लिखा था:
एह मेरा गीत
किसे ना गाणा
इह मेरा गीत
मैं आपे गा के
भलके ही मर जाना
(ये मेरा गीत कोई नहीं गाएगा मैं खुद ये गाना गाऊंगा और कल ही मर जाऊंगा )

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