बिहार: छठे चरण में NDA के लिए रास्ता आसान नहीं, संजय जायसवाल, वीणा सिंह और लवली आनंद की सीट पर तगड़ी लड़ाई

बिहार में छठे चरण में आठ सीटों पर मतदान होना है. इनमें से कुछ सीटों पर जातीय गणित और एंटी इनकम्बेंसी हावी है. इसलिए उत्तर बिहार की शिवहर, पूर्वी और पश्चमी चंपारण समेत वैशाली में लड़ाई कांटे की हो गई है. वैसे आठ सीटों पर एनडीए के लिए लड़ाई सबसे ज्यादा आसान गोपालगंज में ही दिखाई पड़ रही है. वहीं पीएम मोदी के लगातार सात बार दौरे के बाद महाराजगंज और सिवान जैसी फंसी हुई सीट पर एनडीए मजबूत होती दिख रही है. मगर, वैशाली, शिवहर और चंपारण की सीटों पर जोरदार एंटी इनकम्बेंसी और लालू प्रसाद का जातीय गणित लड़ाई को जोरदार संघर्ष में तब्दील कर रहा है. आइए जानते हैं चंपारण की दोनों सीटों पर बीजेपी के लिए एंटी इनकम्बेंसी से लड़ना गंभीर चुनौती क्यों है ?
पश्चिम चंपारण से संजय जायसवाल बीजेपी से सांसद हैं. पिछले पंद्रह सालों से वो लगातार जीत रहे हैं. इस बार जायसवाल के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी सिर चढ़कर बोल रही है. वैसे बीजेपी को भरोसा है कि मोदी मैजिक आखिरकार काम करेगा और सीट निकल जाएगी. लेकिन कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी महागठबंधन से प्रत्याशी के तौर पर संजय के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं.
मदन मोहन तिवारी की सहजता के चर्चे
मदन मोहन तिवारी लोगों से मिलने-जुलने में सहज हैं . वो मुखिया से लेकर विधायक तक का चुनाव तक जीत चुके हैं. उनकी सहजता खासा चर्चा में है. इसलिए संजय जायसवाल के लिए पश्चिम चंपारण की लड़ाई पिछले चुनाव की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल मानी जा रही है. यही हाल पूर्वी चंपारण के उम्मीदवार राधा मोहन सिंह का है.
राधा मोहन सिंह छह बार से सांसद हैं. केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. मोतिहारी में कई डेवलपमेंट के काम को कराने का क्रेडिट उन्हें दिया जाता है लेकिन लालू प्रसाद की जातीय गोलबंदी राधामोहन के लिए रास्ता मुश्किल करती दिख रही है. महागठबंधन के प्रत्याशी राजेश कुशवाहा युवा हैं. राजेश वीआईपी पार्टी से उम्मीदवार हैं.
आनंद मोहन सिंह की पत्नी हैं लवली
लालू प्रसाद का कुशवाहा और मल्लाह कार्ड राधामोहन सिंह के रास्ते में बड़े बाधक के तौर पर देखा जा रहा है. मगर, बीजेपी को उम्मीद है कि पीएम मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर ये जातीय गोलबंदी हवा हो जाएगी और राधामोहन सिंह सातवीं बार लोकसभा पहुंचने में सफल होंगे. आइए जानते हैं लवली आनंद और वीणा सिंह को शिवहर और वैशाली में क्यों मिल रही है कड़ी चुनौती?
शिवहर से साल 2009,2014 और 2019 में रमा देवी बीजेपी से सांसद रही हैं. इस बार उनका टिकट कट गया है. शिवहर से जेडीयू के टिकट पर लवली आनंद चुनावी मैदान में हैं जो आनंद मोहन सिंह की पत्नी हैं. शिवहर से आनंद मोहन भी साल 96 और 98 में सांसद रह चुके हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि सीतामढ़ी से वैश्य समाज के उम्मीदवार सुनील कुमार पिंटु और शिवहर से रमा देवी के टिकट कटने की वजह से बीजेपी का परंपरागत वोटर उसके खिलाफ वोट कर सकता है.
आरजेडी ने शिवहर से रीतू जायसवाल को मैदान में उतारा है. रीतू जायसवाल मुखिया के तौर पर बेहतरीन काम करने का रिकॉर्ड बना चुकी हैं. इसलिए आरजेडी का ये दांव सीतामढ़ी और शिवहर के अलावा मोतिहारी में भी बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. मोतिहारी जिसे पूर्वी चंपारण कहा जाता है वहां वैश्य समुदाय के तकरीबन चार लाख मतदाता हैं.
लालू का जायसवाल कार्ड बीजेपी के लिए चुनौती!
लालू प्रसाद का पूर्वी चंपारण में मल्लाह और कुशवाहा के साथ साथ शिवहर में जायसवाल कार्ड खेलना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहा है. वैसे शिवहर में रेल की मांग लंबे समय से लंबित है. बागमती और ललबकिया नदी पर पुल की मांग भी एनडीए के लिए मुश्किल का सबब बन रहा है. यहां भी पूरा दारोमदार पीएम मोदी के मैजिक पर है, जिनके नाम के सहारे बैतरनी पार करने की उम्मीद एनडीए के सांसदों को है. यही हाल वैशाली का भी है. जहां से दो बार से एलजेपी के सांसद हैं.
वैशाली में भूमिहार मतदाता सबसे ज्यादा हैं. इसलिए लालू प्रसाद ने आरजेडी से मुन्ना शुक्ला को मैदान में उतारकर एनडीए के सामने कड़ी चुनौती पेश की है. मुन्ना शुक्ला पहले भी विधायक रह चुके हैं. कहा जा रहा है कि इस बार लालू प्रसाद का आधारभूत वोटर और मुन्ना शुक्ला का वैशाली में बड़ा जनसरोकार आरजेडी की राहें जीत की ओर ले जा रहा है. एनडीए के लिए गोपालगंज में जीत आसान है लेकिन सिवान और महाराजगंज में लड़ाई कांटे की है ?
गोपालगंज में जेडीयू के उम्मीदवार डॉ आलोक सुमन मजबूत माने जा रहे हैं. साल 2019 में यहां से जीत चुके हैं. वहीं उनके विरोधी चंचल पासवान डॉ आलोक सुमन के सामने कमजोर माने जा रहे हैं. महाराजगंज में लालू प्रसाद ने कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर आकाश आनंद को टिकट दिलाया है, जो भूमिहार जाति से आते हैं.
उम्मीदवारों के लिए पीएम मोदी ही तुरुप के इक्का
कहा जा रहा है कि जनार्दन सिग्रीवाल के लिए भूमिहार जाति के प्रत्याशी का मैदान में उतरना एनडीए के वोट बैंक में सेधमारी के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद पीएम के दौरे के बाद जनार्दन सिग्रीवाल की हालत में खासा परिवर्तन बताया जा रहा है. जाहिर है पीएम मोदी ही वो तुरुप के इक्का हैं जिनके दम पर रेस में पिछड़ रहे उम्मीदवार जीत का दावा करते देखे जा रहे हैं.
सिवान की लड़ाई छपरा और महाराजगंज से सटे होने के बावजूद बिल्कुल अलग दिख रही है. निर्दलीय प्रत्याशी हीना शहाब के साथ सवर्ण मतदाता प्रचार करते देखे जा रहे हैं. सिवान में तीन लाख मुसलमान और चार लाख सवर्णों की जोड़ी मतदान में तब्दील होती है तो जेडीयू के प्रत्याशी विजय लक्ष्मी कुशवाहा और आरजेडी के अवध विहारी चौधरी के लिए राहें मुश्किल कर सकती हैं.
इसलिए सिवान की राजनीति में हीना शहाब धुरी बन गई हैं. बाल्मीकि नगर में भी सुनील कुमार बनाम दीपक यादव में एंटी इनकम्बेंसी दिख रही है. यहां ब्राह्मण वोटरों की भूमिका अहम रहने वाली है. वहीं थारू जनजाति का रुख भी बाल्मीकिनगर की जीत और हार का फैसला तय करने जा रहा है.

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