बिहार में 2025 के चुनाव में फिर दिखेंगी पुष्पम प्रिया चौधरी? बोलीं- याद रखिए मैं जिंदा हूं

बिहार विधानस चुनाव को लेकर जोर आजमाइश शुरू हो गई है. सियासी बिसात भी बिछने लगी है. सियासी दल अपने-अपने कुनबे को बढ़ाने में जुट गए हैं. सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर अभी से जातीय समीकरण सेट किए जाने लगे हैं. राज्य में एक तरफ जेडीयू की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार है तो दूसरी और इंडिया गठबंधन है, जिसमें आरजेडी और कांग्रेस शामिल हैं. चुनाव को लेकर नेता जमीन पर दिखने लगे हैं. इस बीच पुष्पम प्रिया चौधरी की भी एंट्री हो गई है. उन्होंने ‘एक चिट्ठी बिहार के नाम’ से लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है.
बिहार में पुष्पम प्रिया चौधरी पहली बार 2020 में चर्चा में आई थीं. ये वो दौर था जब पूरी दुनिया कोरोना काल से गुजर रही थी. कोरोना के समय में काफी एक्टिव भी रहीं. सियासत में कदम रखने का ऐलान भी किया. राजनीतिक मुद्दों पर मुखर भी नजर आईं. सरकार से लेकर विपक्ष तक सियासत पर सवाल भी खड़ा किया. आज एक बार फिर से पुष्पम प्रिया चौधरी ने सोशल मीडिया पर लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है. बिहार की सियासत पर, अर्थव्यवस्था पर सवाल खड़े किया है.
‘बिहार की व्यवस्था को बदलने का संकल्प लिया है’
उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट में कहा कि राजनीति में चार साल का समय काफी छोटा होता है. इन चार सालों में मेरे जीवन और आपके जीवन में कई बदलाव आए होंगे, लेकिन बिहार की की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था जस की तस है. मैंने इसी व्यवस्था को बदलने का संकल्प लिया है. मेरे लिए राजनीति वैसी नहीं रही कि चलो कुछ नहीं कर पाए तो नेतागिरी ही कर लेते हैं.

— Pushpam Priya Choudhary (@pushpampc13) August 26, 2024

पुष्पम प्रिया बोलीं- बाहर रहकर एक बिहारी की पीड़ा का अनुभव किया है
प्लुरल्स पार्टी की मुखिया पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि बिहार मेरे लिए उपहास का विषय नहीं है बल्कि वो एंपायर, वो साम्राज्य है जिसका परचम पूरी दुनिया में लहराया करता था. आज बिहार की विकास संबंधी रिपोर्ट के आंकड़े देखकर सर शर्म से झुक जाता है. बिहार को मैंने करीब से देखा है. जीवन का अधिकांश समय बिहार में बिता है. बिहार को करीब से देखा है और काम किया. बाहर रहकर एक बिहारी की क्या पीड़ा होती है उसका भी अनुभव किया है.
बताया क्यों पड़ा पार्टी का नाम प्लुरल्स
पुष्पम प्रिया ने कहा कि हमारी पार्टी का नाम प्लुरल्स इसलिए था क्योंकि उसमें ऐसे कई लोग हैं जो खरीदे नहीं जा सकते, फंसाए नहीं जा सकते. बिहार के लोगों को जिसकी जितनी संख्या… वोट बैंक से ज्यादा समझते हैं. बिहार को केवल बदलाव की जरूरत नहीं बल्कि सार्थक बदलाव की जरूरत है. नई बोतल में पुरानी शराब बिहार के लिए खतरनाक है. जिनका कोई आदर्श नहीं होता है, वो बस मौकापरस्त होते हैं.

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