बुझ गया बंगाल में लेफ्ट की सियासत का आखिरी चिराग, कहानी बुद्धदेव भट्टाचार्य की
भद्रलोक के भद्रपुरुष (बंगाल के सज्जन व्यक्ति) के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन हो गया है. 80 वर्ष के भट्टाचार्य पिछले कई सालों से बीमार चल रहे थे. भट्टाचार्य को बंगाल में मुख्यमंत्री की कुर्सी ज्योति बसु से विरासत में मिली थी. 11 सालों तक सीएम रहे भट्टाचार्य बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के आखिरी शासक थे.
प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स को तवज्जो देने वाले बुद्धदेव भट्टाचार्य ने करीब 35 साल तक बंगाल की राजनीति को प्रभावित किया. बंगाली ब्राह्मण परिवार से आने वाले भट्टाचार्य की राजनीति में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है.
बांग्ला साहित्य से पढ़ाई, सरकारी शिक्षक बने
1 मार्च 1944 को जन्मे बुद्धदेव ने अपनी पूरी पढ़ाई कोलकाता से ही की. प्रेसिडेंसी कॉलेज से बुद्धदेव ने बांग्ला साहित्य में ग्रेजुएशन किया. बांग्ला साहित्य से पढ़ाई के पीछे बुद्धदेव की पारिवारिक वजहें थी. बुद्धदेव के दादा साहित्य के बड़े जानकार थे और कोलकाता में पुजारी दर्पण नामक मशहूर पत्रिका निकालते थे.
ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद बुद्धदेव शिक्षक बन गए. कुछ सालों तक बच्चों को पढ़ाने के बाद बुद्धदेव राजनीति में आ गए.
छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत की
कोलकाता में जन्मे बुद्धदेव भट्टाचार्य ने छात्र राजनीति से अपनी करियर की शुरुआत की थी. वे साल 1968 में सीपीएम के छात्र संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव चुने गए. बुद्धदेव ने इसके बाद राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा.
1977 में कोलकाता की काशीपुर-बेलछिया विधानसभा सीट से वे विधायक चुने गए. 1987 में वे जादवपुर सीट की ओर से शिफ्ट हो गए. 2011 तक वे इस सीट से विधायक रहे.
बुद्धदेव को 1977 में ज्योति बसु की सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्रालय का जिम्मा मिला. साल 1982 तक वे इस पद पर रहे. 1987 में उन्हें फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया. इस बार उन्हें शहरी विकास जैसे बड़े विभाग दिए गए. 1996 में बुद्धदेव बंगाल के गृह मंत्री बनाए गए.
ज्योति बसु से मिली बंगाल की कमान
साल 2000 में ज्योति बसु ने बंगाल की कमान बुद्धदेव भट्टाचार्य को सौंप दी. बुद्धदेव उस वक्त बंगाल के डिप्टी सीएम थे. बसु 2011 तक बंगाल के मुख्यमंत्री रहे. उनके ही कार्यकाल में बंगाल में विवादित सिंगूर और नंदीग्राम का किसान आंदोलन हुआ था.
बुद्धदेव साल 2015 तक सक्रिय राजनीति में रहे. इसके बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी. हालांकि, साल 2021 के चुनाव में सीपीएम ने बुद्धदेव से एआई वीडियो के जरिए संदेश जारी करवाया था.
बुद्धदेव भट्टाचार्य को 2022 में केंद्र सरकार ने पद्मभूषण सम्मान देने की घोषणा की, लेकिन भट्टाचार्य ने उसे लेने से इनकार कर दिया.
मनमोहन ने बताया था देश का सर्वश्रेष्ठ सीएम
साल 2005 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बताया था. इसी साल उन्हें यह उपाधि उद्योगपति अजीज प्रेमजी ने भी दी थी.
बुद्धदेव ने अपने शासन में बंगाल में अद्यौगिक नीति स्थापित करने की कोशिश की. हालांकि, उनकी सरकार इसमें असफल साबित हुई. बुद्धदेव 2002 से 2015 तक माकपा की सर्वोच्च इकाई पोलित ब्यूरो के भी सदस्य रहे.
ममता और शुभेंदु ने जताया शोक
बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी ने शोक जताया है. ममता ने कहा है कि मैं बुद्धदेव भट्टाचार्य को लंबे वक्त से जानती थी. उनके चाहने वालों पर दुखों का पहाड़ टूट गया है. उनके परिवार और सीपीएम के कार्यकर्ताओं के प्रति मेरी संवेदना है. उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा.
शुभेंदु ने भी दुख जताते हुए संवेदना व्यक्त की है. कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने बुद्धदेव के निधन को व्यक्तिगत क्षति बताया है.