बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम की गई तो जोरदार विरोध करेगी कांग्रेस – जयराम रमेश
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 55 साल पूरे होने पर कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि 1969 में इंदिरा गांधी की सरकार ने यह फैसला किया था. कांग्रेस मीडिया महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट किया कि 55 साल पहले इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण का निर्णायक कदम उठाकर भारत के आर्थिक इतिहास में एक नया अध्याय शुरू किया था. उन्होंने कहा कि उस दौरान जनसंघ ने इस फैसले का विरोध किया था.
जयराम रमेश ने लिखा कि मैंने अपने इंटरट्वाइंड लाइव्स: पीएन हक्सर एंड इंदिरा गांधी में अभिलेखीय सामग्री के आधार पर इस महत्वपूर्ण घटना की पृष्ठभूमि का वर्णन किया है. हक्सर के साथ अहम भूमिका निभाने वाले डीएन घोष ने भी अपने बेहद कीमती संस्मरण नो रिग्रेट्स में इसपर विस्तार से लिखा है.
ग्लिम्पसेस ऑफ इंडियन इकोनॉमिक पॉलिसी
उन्होंने लिखा कि आईजी पटेल उस समय वित्त मंत्रालय में विशेष सचिव थे. उन्होंने भी अपनी ग्लिम्पसेस ऑफ इंडियन इकोनॉमिक पॉलिसी: एन इनसाइडर्स व्यू में इस आधारभूत नीति बदलाव के बारे में लिखा है. बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कृषि, ग्रामीण विकास और अर्थव्यवस्था के अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए ऋण देने के मामले में गहरा प्रभाव पड़ा. सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों ने वैश्विक वित्तीय संकट के समय में देश की अच्छी तरह से सेवा की है. उन्होंने प्रबंधकीय विशेषज्ञता का एक प्रभावशाली पूल बनाया है.
पिछले सात वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर विलय हुए हैं.
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया गया है.
सिंडिकेट बैंक को केनरा बैंक का हिस्सा बना दिया गया है.
इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हुआ.
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक को खुद़ में विलय किया.
विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय हुआ.
स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक में विलय हुआ.
बैंकों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी
इन विलयों की अपनी स्पष्ट चुनौतियां हैं, लेकिन उन्हें मोटे तौर पर केवल इसलिए स्वीकार किया गया क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम नहीं होनी थी. वर्तमान में कार्यरत 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उस स्थिति को कमज़ोर करने के किसी भी कदम का संसद और बाहर दोनों जगह जोरदार विरोध किया जाता रहेगा.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश में हलचल
यह भी याद रखने वाली बात है, जब जुलाई 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश में हलचल मच गई, तब शुरुआत में भारतीय जनसंघ जैसे कुछ राजनीतिक दलों ने इस पर हमला किया था. लेकिन पांच महीने के भीतर ही जनसंघ सार्वजनिक रूप से विदेशी बैंकों के भी राष्ट्रीयकरण की मांग कर रहा था.