ब्रॉडकास्टिंग, वक्फ बिल अब लेटरल एंट्री… आखिर क्यों यू-टर्न लेने को मजबूर हुई सरकार?

यूपीएससी के जरिए लेटरल एंट्री से नियुक्ति के मामले में केंद्र सरकार ने यूटर्न ले लिया है. यह हाल ही में तीसरा ऐसा मौका है जब सरकार को विपक्ष के दबाव में अपने किसी फैसले को वापस लेना पड़ा. इससे पहले सरकार वक्फ बिल और ब्रॉडकास्टिंग बिल पर भी ऐसा कर चुकी है. लेटरल एंट्री पर सरकार के यूटर्न के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरी है जो उसे लगातार अपने ही फैसलों पर पीछे हटना पड़ रहा है.
माना जा रहा है आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है. दरअसल विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण को जिस तरह से मुद्दा बनाया था, उसे वह लगातार हवा दे रहा है. जम्मू कश्मीर और हरियाणा में चुनाव का ऐलान हो चुका है. साल के अंत तक महाराष्ट्र और झारखंड में भी चुनाव हैं. ऐसे में सरकार किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती. हालांकि यह कहना पूरी तरह से गलत होगा कि लेटरल नियुक्ति से आरक्षण खत्म हो जाएगा, लेकिन विपक्ष इस पर जिस तरह से हमलावर था, उससे वह एक बार फिर लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहा, जबकि सरकार ऐसा नहीं कर सकी.
विपक्ष के आगे क्यों कमजोर दिख रही सरकार?
लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से बनाया गया संविधान और आरक्षण का नरैटिव सरकार की बड़ी मुश्किल बनता जा रहा है. सरकार के किसी भी फैसले का विरोध विपक्ष एकजुटता के साथ कर रहा है. सबसे खास बात यह है कि जिस नरैटिव की बदौलत विपक्ष ने बीजेपी को बहुमत से रोक दिया, वही संविधान और आरक्षण के मुद्दे को विपक्ष अभी भी अपना प्रमुख हथियार बनाए है. विपक्ष की ओर से जो बातें कही जा रही हैं, उससे यह भी साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि संविधान और आरक्षण को लेकर सरकार की मंशा के बारे में जिस तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है फैसलों में उसकी झलक दिख रही है.
सरकार में कॉन्फिडेंस की कमी या डैमेज कंट्रोल की कोशिश
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से सरकार उस कॉन्फिडेंस में नजर नहीं आ रही, जैसा कि पिछले दो कार्यकाल के दौरान थी. सरकार का लगातार तीसरे फैसले से पीछे हटना इसकी बानगी है. दरअसल सरकार की सबसे बड़ी मुसीबत गठबंधन के सहयोगी दलों को साधे रखना है. इसके अलावा सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती जिससे विपक्ष को मौका मिले. संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्ष की ओर से चुनाव में जो नरैटिव फैलाया गया था उसका नुकसान उठाने की वजह से सरकार और सतर्क है और आगामी विधानसभा चुनावों में इस तरह के नरैटिव को हावी न होने देने की कोशिश में जुटी है.
लेटरल एंट्री पर क्या हुआ?
यूपीएससी के संयुक्त सचिव और निदेशक स्तर के 45 पदों पर लेटरल एंट्री से भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया था. इस पर देशभर में बवाल मच गया था. संविधान, आरक्षण, दलितों के हक से इसे जोड़े जाने के बाद सरकार के सहयोगी दल भी इस फैसले के खिलाफ नजर आए और महज 72 घंटे के भीतर ही कार्मिक विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह को यह फैसला वापस लेने के लिए यूपीएससी को पत्र लिखना पड़ा. अब यूपीएससी की ओर से नोटिफिकेशन वापस लेने का औपचारिक आदेश जारी किया जाएगा.
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का भी हुआ था विरोध
सरकार को 8 अगस्त को संसद में पेश किए गए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर भी विरोध का सामना करना पड़ा था. बिल को विपक्ष ने संविधान और अल्पसंख्यकों पर हमला करार दिया था. विपक्ष के लगातार विरोध के बाद सरकार ने इस बिल को वापस तो नहीं लिया, लेकिन विचार विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेज दिया था. माना जा रहा है कि 22 अगस्त को जेपीसी की पहली बैठक हो सकती है, जिसमें 21 लोकसभा सांसद हैं, जबकि 10 सांसद राज्यसभा के हैं.
ब्रॉडकास्टिंग बिल का मसौदा लेना पड़ा था वापस
सरकार को इससे पहले ब्रॉडकास्टिंग बिल 2024 का मसौदा वापस लेना पड़ा था. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि अब सिरे से ब्रॉडकास्टिंग बिल का ड्राफ्ट तैयार होगा. दरअसल सरकार ने सबसे पहले 10 नवंबर 2023 को इस ड्राफ्ट को पब्लिक डोमेन में रखा था. इसके बाद विपक्ष हमलावरर हो गया था. विपक्षी दलों का यहां तक आरोप था कि सरकार सेंसरशिप लाने का पयास कर रही है. लोकसभा चुनाव के बाद विपक्ष ने और जोरदार तरीके से इसका विरोध किया. इसके बाद सरकार ने मसौदा वापस ले लिया. अब 15 अक्टूबर 2024 तक नए सिरे से मसौदा पेश किया जाएगा.

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