भारत का मिनी तिब्बत लद्दाख है बेमिसाल, यहां के बौद्ध धर्म का ‘हेमिस फेस्टिवल’ है निराला

भारत में हिमालय की गोद में बसा एक छोटा और खूबसूरत प्रदेश लद्दाख. यह प्रदेश अपनी प्राकृतिक, सांस्कृतिक खूबियों से देश-दुनिया के पर्यटकों को आसानी से अपनी तरफ आकर्षित करता है. लद्दाख गर्मियों और मानसून के मौसम में पर्यटकों के घूमने की पहली पसंदीदा जगह है. यहां की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान देश के दूसरे प्रदेशों से बहुत अलग है. वहीं लद्दाख के ‘हेमिस फेस्टिवल’ को देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक खास तौर से पहुंचते हैं.
‘हेमिस फेस्टिवल’ हर साल तिब्बती धर्म के चंद्र मास त्से-चू के दसवें दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. हेमिस उत्सव का जश्न पूरे दो दिनों तक चलता है, जो बौद्ध धर्म के गुरु पद्मसंभव की जयंती का प्रतीक है. इस त्यौहार के लिए हेमिस मठ को रंग-बिरंगे कपड़ों और फूलों से खास तौर पर सजाया जाता है.
लद्दाख के स्थानीय लोग अपने पारंपरिक रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर हेमिस मठ में इकट्ठा होते हैं और अपने चेहरे पर मुखौटे पहनकर ढोल, झांझ और सींग की थाप पर नाचते हैं. इस अवसर पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कई तरह के मनोरंजन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. इस त्यौहार के अवसर पर मठ के लामा एक खास पोशाक पहनते हैं जिसमें लंबे गाउन, आकर्षक मुखौटे और सिर पर मुकुट शामिल होता है.
लद्दाख को मिनी तिब्बत भी कहा जाता है. भारत में बौद्ध धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोग इसी क्षेत्र में रहते हैं. इसी वजह से हेमिस त्यौहार लद्दाख का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार होता है. हेमिस त्यौहार के दौरान देशी-विदेशी पर्यटकों को बौद्ध धर्म को करीब से जानने और समझने का मौका मिलता है.
हेमिस त्यौहार लद्दाख के इतिहास, संस्कृति, आध्यात्म और मनोरंजन का मिश्रण है. यह त्यौहार बौद्ध संत पद्मसंभव के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, संत पद्मसंभव को तिब्बत में गुरु रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है, जो बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरू थे. ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 8वीं शताब्दी में लद्दाख को बुरी आत्माओं से बचाया था. हेमिस त्यौहार लद्दाख में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है.
‘हेमिस फेस्टिवल’ की तैयारी
लद्दाख के लोग ‘हेमिस फेस्टिवल’ के लिए कई सप्ताह पहले से ही अपनी तैयारियां शुरू कर देते हैं. वे इस अवसर पर प्रस्तुत किए जाने वाले नृत्य का अभ्यास करते हैं, हेमिस मठ को सजाते हैं, त्यौहार के लिए आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए साफ-सफाई और खान-पान का विशेष प्रबंध करते हैं.
हेमिस त्यौहार के दिन हेमिस मठ में सूर्योदय होते ही त्यौहार की औपचारिक शुरुआत हो जाती है. पूरे लद्दाख से बौद्ध धर्मावलंबी हेमिस मठ में एकत्रित होते हैं और आकर्षक नृत्यों के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं. इस दौरान पूरा हेमिस गोम्पा शहर उत्सव में डूबा हुआ दिखाई देता है.
लद्दाख कैसे पहुंचें
सड़क मार्ग: लेह लद्दाख पहुंचने के दो रास्ते हैं, पहला कश्मीर के श्रीनगर से होकर, इस हाईवे की सड़क बहुत अच्छी है. श्रीनगर से लेह की दूरी करीब 420 किलोमीटर है, जिसे करीब 11 घंटे में आसानी से पूरा किया जा सकता है. मनाली से लेह की दूरी करीब 430 किलोमीटर है, इस रास्ते को भी सफर को 11 घंटे में पूरा किया जा सकता है. इस दौरान पर्यटकों को पूरे रास्ते में आकर्षक प्राकृतिक नज़ारे देखने को मिलते हैं. लेह आने वाले ज़्यादातर लोग अपने खुद के वाहनों से आते हैं ताकि यहां रुककर खूबसूरत नज़ारों को देखे जा सकें.
रेल मार्ग: लेह-लद्दाख में लेह पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मूतवी है, जो लेह से करीब 670 किलोमीटर दूर है. जम्मू से प्राइवेट टैक्सी द्वारा करीब 15-16 घंटे में लेह पहुँचा जा सकता है. जम्मू राजधानी एक्सप्रेस, उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, झेलम एक्सप्रेस, मालवा एक्सप्रेस, पूजा एक्सप्रेस के अलावा कई अन्य ट्रेनें दिल्ली से जम्मूतवी जाती हैं.
हवाई मार्ग: लद्दाख में लेह एयरपोर्ट है जहां से दिल्ली के लिए सीधी उड़ान है. दिल्ली से लेह पहुंचने में करीब 1.30 घंटे का समय लगता है. जो लेह पहुंचने का सबसे आसान तरीका है. लेकिन हवाई जहाज से आते समय पर्यटकों को सड़क के नजारे देखने को नहीं मिलते हैं.

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