भोजशाला मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हिंदू पक्ष, 1 अप्रैल के आदेश को वापस लेने की मांग

मध्य प्रदेश के धार जिले में भोजशाला-कमल मौला मस्जिद मामले को लेकर हिंदू याचिकाकर्ताओं ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इसमें एक अप्रैल के उस आदेश को रद्द करने की मांग की है, जिसने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और अन्य अधिकारियों को भोजशाला-कमल मौला मस्जिद की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) रिपोर्ट के नतीजे पर कार्रवाई करने से रोक दिया था.
हिंदू पक्ष दावा करता है कि भोजशाला 11वीं सदी का स्मारक एक मंदिर है. मुसलमान दावा करते हैं कि यह एक मस्जिद है. ये विवाद सर्वोच्च अदालत में पहुंच चुका है. इस सप्ताह की शुरुआत में हाईकोर्ट को सौंपी गई एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि भोजशाला-कमल मौला मस्जिद का निर्माण पहले के मंदिरों के अवशेषों का उपयोग करके किया गया था.
1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ये आदेश
सर्वेक्षण रिपोर्ट को लेकर हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक समूह ने सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे एक मामले में यह याचिका दायर की है. इसी समूह ने पहले इस स्थल पर नमाज रोकने के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. बीते 1 अप्रैल को सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया था कि उसकी अनुमति के बिना एएसआई रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
साथ ही विवादित स्थल पर भौतिक उत्खनन पर भी रोक लगा दी थी. यह आदेश मस्जिद प्रबंधन समिति द्वारा सर्वेक्षण करने के हाईकोर्ट के 11 मार्च के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने जारी किया था. हिंदू पक्ष अब यह कहते हुए रोक हटाने की मांग कर रहा है कि सर्वेक्षण का मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया था.
एएसआई ने हाईकोर्ट में 150 पन्नों की रिपोर्ट पेश की
इसलिए सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट को आगे बढ़ने की अनुमति देनी चाहिए, क्योंकि मुस्लिम पक्ष की याचिका अप्रासंगिक हो गई है. इस सप्ताह की शुरुआत में एएसआई ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में 150 पन्नों की एक रिपोर्ट पेश की है. इसमें कहा गया है कि भोजशाला-कमल मौला मस्जिद का निर्माण पहले के मंदिरों के अवशेषों का उपयोग करके किया गया था.
22 मार्च से 30 जून के बीच किए गए सर्वेक्षण का आदेश एक हिंदू समूह द्वारा स्थल पर नमाज पर रोक लगाने की याचिका के जवाब में दिया गया था. एएसआई के निष्कर्षों में 94 धर्मग्रंथों, 106 स्तंभों, 82 स्तंभों, 31 प्राचीन सिक्कों और 150 शिलालेखों की खोज शामिल है. इनमें गणेश, ब्रह्मा, नरसिम्हा और भैरव जैसे हिंदू देवताओं की छवियां शामिल हैं.
यह स्थान देवी सरस्वती को समर्पित एक मंदिर रहा होगा
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि यह स्थान मूल रूप से देवी सरस्वती को समर्पित एक मंदिर रहा होगा. रिपोर्ट में कहा गया है शिलालेखों, मूर्तियों और वास्तुशिल्प के टुकड़ों से पता चलता है कि इस पत्थर की संरचना की अधिरचना को बाद में संशोधित किया गया और एक मस्जिद में बदल दिया गया.
परिसर पर विवाद, जहां हिंदू भोजशाला गुंबद पर पूजा करते हैं और मुस्लिम शुक्रवार की नमाज अदा करते हैं, 1990 के दशक की शुरुआत से है. 1997 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने मुसलमानों को नमाज अदा करना जारी रखने की अनुमति देते हुए सार्वजनिक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया. 2003 में एएसआई की एक व्यवस्था ने हिंदुओं को मंगलवार को पूजा करने और मुसलमानों को शुक्रवार को नमाज अदा करने की अनुमति दी.

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