मदन राठौड़ को राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने दिए पांच बड़े सियासी संदेश
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जिन राज्यों में नुकसान उठाना पड़ा है, उसमें राजस्थान भी शामिल है. सूबे की 25 लोकसभा सीटों में से 12 सीटें गंवाने के बाद बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान सीपी जोशी से लेकर राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ को सौंप दी है. गुरुवार को देर रात बीजेपी ने राजस्थान के नए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर मदन राठौड़ के नाम का ऐलान किया. इसके साथ ही बीजेपी ने अरुण सिंह की जगह पर राधा मोहन दास अग्रवाल को राज्य का प्रभारी बनाया है.
राजस्थान में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान मदन राठौड़ को ऐसी ही नहीं सौंपी गई है बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत उनकी नियुक्ति की गई है. बीजेपी ने मदन राठौड़ के जरिए अपने कोर वोटबैंक ओबीसी को साधने का दांव चला है तो साथ ही पार्टी और संघ बैकग्राउंड से आने वाले नेताओं को भी संदेश दिया है. जनसंघ से बीजेपी तक की यात्रा करने वाले मदन राठौड़ के पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के साथ भी बेहतर संबंध रहे हैं. इस तरह से बीजेपी ने राजस्थान विधानसभा उपचुनाव से पहले मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप कर पांच सियासी संदेश देने की कोशिश की है.
आरएसएस बैकग्राउंड का फायदा
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ को आरएसएस बैकग्राउंड होने का फायदा मिला है. मदन राठौड़ का जन्म 2 जुलाई 1954 को पाली जिले के रायपुर गांव में हुआ था. मदन राठौड़ शुरुआत से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं. राजस्थान यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के दिनों से ही वे राजनीति में सक्रिय होने लगे थे. 1970 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में उन्होंने अपनी पारी का आगाज किया था. राम जन्मभूमि के आंदोलन के वक्त उन्हें मथुरा के नरहौली थाने में गिरफ्तार किया गया था. मदन राठौड़ के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनने से राजस्थान में आरएसएस की ताकत बढ़ी है और सियासी तौर पर वो पार्टी के लिए मुफीद हो सकता है.
ओबीसी वोटों को साधने का दांव
राजस्थान में जिस तरह से लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सियासी झटका लगा है, उसके चलते ही पार्टी ने अब ओबीसी जातियों पर खास फोकस किया है. इसलिए बीजेपी ने मदन राठौड़ को प्रदेश संगठन का मुखिया बनाकर ओबीसी समुदाय के वोटबैंक का साधने का दांव खेला है. मदन राठौड़ घांची समाज से आते हैं, जो अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल है. राजस्थान में घांची समाज के लोग पशुपालक, दूध और तेल-घी का व्यवसाय करते हैं. राजस्थान ही नहीं बल्कि गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में घांची समुदाय के लोग रहते हैं. झारखंड में तेली समुदाय के लोग भी खुद को घांची समाज की उपजाति मानते हैं. इस तरह बीजेपी ने कई राज्यों में दांव खेला है.
राजस्थान में ओबीसी समुदाय की आबादी 55 फीसदी के करीब है. राजस्थान को ओबीसी की प्रयोगशाला भी कहा जाता है, क्योंकि यहां 10-15 नहीं बल्कि पूरी 91 छोटी-बड़ी जातियां है. देश के किसी राज्य में ओबीसी वोट बैंक में इस प्रकार सोशल इंजीनियरिंग कहीं पर भी नहीं है. ऐसे में पार्टी ने घांची समुदाय से आने वाले मदन राठौड़ के जरिए ओबीसी को साधने के लिए दांव खेला है. इतना ही नहीं प्रदेश के 25 में से 12 सांसद ऐसे हैं जो ओबीसी समुदाय से आते हैं और 120 विधानसभा सीट पर उनका प्रभाव है. बीजेपी ओबीसी वोटर के सहारे राजस्थान में अपना दबदबा बनाए हुए है.
सत्ता और संगठन में बैलेंस बनाने का प्लान
मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप कर बीजेपी ने राजस्थान में सत्ता और संगठन के बीच बैलेंस बनाने के साथ-साथ सियासी समीकरण को साधने का दांव चला है. सत्ता की कमान ब्राह्मण समुदाय से आने वाले सीएम भजनलाल शर्मा के हाथों में है. इसीलिए संगठन की जिम्मेदारी ब्राह्मण चेहरे सीपी जोशी से लेकर ओबीसी समुदाय से आने वाले मदन राठौड़ को सौंपी है. इस तरह बीजेपी ने ब्राह्मण और ओबीसी के जरिए सूबे के सियासी समीकरण को साधे रखने की स्ट्रेटेजी बनाई है. इसके अलावा सत्ता और संगठन के बीच राजनीतिक बैलेंस बनाने के लिए प्लान बनाया है. मदन राठौड़ अस्सी के दशक में संघ से बीजेपी में आए हैं और उसके बाद जिला संगठन से अपना काम शुरू किया. इसके अलावा प्रदेश संगठन में भी अलग-अलग पदों पर रहे हैं.
वसुंधरा राजे के साथ बैलेंस बनाने का दांव
मदन राठौड़ बीजेपी के दिग्गज नेताओं में शुमार किए जाते हैं और दो बार के विधायक रह चुके हैं. पाली जिले की सुमेरपुर विधानसभा सीट से दो बार चुने गए हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था, जिसके बाद निर्दलीय ताल ठोक दी थी. हालांकि, उन्होंने पार्टी के नेतृत्व द्वारा बात करने के बाद अपना पर्चा वापस ले लिया था, जिसके बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया और अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है. मदन राठौड़ के जरिए वसुंधरा राजे को भी साधने का दांव बीजेपी नेतृत्व ने चला है. इसकी वजह है कि राठौड़ को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है. 2018 में वसुंधरा राजे सरकार के दौरान मदन राठौड़ ने बीजेपी के उप मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी संभाली थी. बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी और पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मदन राठौड़ लाल चौक पर तिरंगा फहराने गए थे. इसके अलावा पीएम मोदी के सजातीय भी है.
उपचुनाव से पहले संगठन में बदलाव
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान मदन राठोड़ को ऐसे समय मिली है, जब राजस्थान की पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. बीजेपी ने सीपी जोशी की जगह मदन राठौड़ को संगठन की भागडोर सौंप कर उपचुनाव में जीत दर्ज करने का दांव चला है. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी के लिए उपचुनाव जीतना काफी अहम हो गया है. ऐसे में बीजेपी ने संगठन का चेहरा बदलकर उपचुनाव में जीत का तानाबाना बुना है. मदन राठौड़ खुद को पार्टी का सच्चा सिपाही बताते हुए उपचुनाव जीतने की हुंकार भी भर दी है. उन्होंने साफ कह दिया है कि सरकार और संगठन के बीच बेहतर समनव्य बनाकर उपचुनाव जीतने की पूरी कोशिश करेंगे. इस तरह से उपचुनाव उनके लिए अग्निपरीक्षा है. देखना है कि किस तरह सियासी बैलेंस बनाकर चलते हैं?