मरने के बाद कौन सा अंग कितनी देर में करना होता है ट्रांसप्लांट, एक्सपर्ट्स से जानें
ऑर्गन ट्रांस्प्लांट के लिए समय सीमा बहुत जरूरी होती है. अंगदान करने के बाद जिस मरीज में ऑर्गन का ट्रांसप्लांट किया जाता है उसकी एक समय सीमा होती है. इसको “कोल्ड इस्कीमिया टाइम” कहा जाता है, और यह समय सीमा अंग के अनुसार अलग-अलग होती है. एक्सपर्ट्स बताते हैं की किडनी को 24 से 36 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है. हालांकि, यह देखा गया है कि जितना कम समय लगे, ट्रांसप्लांट के परिणाम उतने ही बेहतर होते हैं.
लिवर के लिए यह समय सीमा 12 से 15 घंटे के बीच होती है. हार्ट और लंग्स जैसे अंगों को 4 से 6 घंटे के अंतर ट्रांसप्लांट करना जरूरी होता है. इन अंगों को जल्दी से जल्दी ट्रांस्प्लांट करना पड़ता है ताकि ट्रांसप्लांट की सफलता दर को बढ़ाया जा सके. अंगदान के बाद समय पर ट्रांसप्लांट हो इसके लिए अस्पताल और प्रशासन मिलकर ग्रीन कॉरिडोर भी बनाते हैं. जिससे कम से कम समय में मरीज तक अंग को पहुंचाया जा सके. इस दौरान ऑर्गन प्रिजवेशन का भी ध्यान रखा जाता है. इससे ऑर्गन को किसी तरह का कोई नुकसान न हो इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है.
ऑर्गन को प्रिज़र्व करने की प्रक्रिया क्या है?
केयर हॉस्पिटल, बंजाराहिल्स में नेफ्रोलॉजिस्ट और ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ पी विक्रांत रेड्डी बताते हैं की जब किसी ऑर्गन डोनर से अंग को निकाला जाता है, तो इसे एक विशेष केमिकल में रखा जाता है. इस समय के दौरान, अंग को प्राप्तकर्ता तक पहुंचाने का काम किया जाता है. इस दौरान ब्लड टाईप और टिश्यू मैचिंग जैसे कार्य किए जाते हैं. इस प्रक्रिया में ट्रांसप्लांट टीमों के बीच समन्वय, परिवहन की व्यवस्थाएं को भी चेक किया जाता है ताकि समय पर मरीज का ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया जा सके.
नई तकनीकों का विकास
ऑर्गन ट्रांस्प्लांट के लिए इन समय सीमाओं को बढ़ाने के लिए ऑर्गन प्रिज़र्व तकनीकों को बढ़ाया जा रहा है. इसके लिए नई तकनीकों का विकास हो रहा है. ऑर्गन ट्रांसप्लानटेशन के लिए अधिक समय मिल सके और सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांटेशन किया जा सके इसके लिए मशीन परफ्यूज़न जैसी तकनीकों पर काम किया जा रहा है. इससे अंगों के प्रिज़र्वेशन के समय को बढ़ाया जा सकता है. इससे मरीजों को जीवनदान मिल सकता है, बल्कि ऑर्गन ट्रांसप्लानटेशन की सफलता दर भी बढ़ सकती है.