महाराष्ट्र में क्या नंबर-1 का रुतबा बरकरार रख पाएगी BJP, 2014 और 2019 से कैसे अलग है 2024 की स्थिति
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान भले ही अभी तक न हुआ हो, लेकिन सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए बेताब नजर आ रही है तो बीजेपी अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है. ऐसे बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती महाराष्ट्र में अपने नंबर-वन के रुतबे को बरकरार रखने की है. पिछले दस सालों से बीजेपी महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में अपना मुकाम बनाया है, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव से सियासी स्थिति बदल गई है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी कैसे अपने सियासी ओहदे को बचाए रखती है?
दस साल पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही महाराष्ट्र की सियासत में भी बदलाव देखने को मिला. बीजेपी का सियासी कद महाराष्ट्र की राजनीति में तेजी से बढ़ा. 2014 में बीजेपी 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में 105 सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही. बीजेपी ने भले ही अपने दम पर राज्य की सत्ता पर काबिज न हो सकी हो, लेकिन राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनने का रुतबा हासिल कर लिया था. इससे पहले बीजेपी महाराष्ट्र में छोटे भाई की भूमिका में थी, लेकिन अब बड़े भाई के रोल में है. इसे बचाए रखने की चुनौती 2024 के चुनाव में खड़ी हो गई है.
2014 में अलग लड़ी थी BJP
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना (संयुक्त) मिलकर लंबे समय तक चुनाव लड़ती रही है, लेकिन पहली बार यह दोस्ती 2014 के विधानसभा चुनाव में टूटी. बीजेपी ने अलग होकर राज्य की 288 सीटों में से 280 सीट पर अकेले चुनाव लड़ा था. बीजेपी के 122 विधायक जीतने में कामयाब रहे थे. इस तरह बीजेपी ने पहली बार महाराष्ट्र में सौ सीटें जीतने का आंकड़ा क्रॉस किया और पहली बार देवेंद्र फड़णवीस के रूप में अपना मुख्यमंत्री बनाने में भी सफल रही थी. 2014 विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 63 विधायक जीते थे और दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी. बीजेपी को शिवसेना ने समर्थन देकर सरकार बनाया था. इससे पहले तक एनडीए की सरकार बनने पर शिवसेना कोटे से सीएम बनते रहे.
2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी लगातार दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. इस बार बीजेपी और शिवसेना मिलकर चुनाव लड़ी थी. राज्य की कुल 288 सीटों में से 164 सीट पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे तो शिवसेना ने 124 सीट पर चुनाव लड़ी थी. बीजेपी ने 100 का आंकड़ा पार करते हुए 105 सीटें जीती थीं. दूसरे नंबर पर शिवसेना 56 सीटों के साथ थी. एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक जीतकर आए. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ मिलकर जरूर चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. ऐसे में बीजेपी ने पहले उद्धव ठाकरे के सबसे मजबूत सिपहसलार एकनाथ शिंदे के जरिए शिवसेना के दो फाड़ कर दिए. शिंदे के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार बना ली और उसके बाद शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के जरिए एनसीपी के दो टुकड़े कर दिए.
बदल गई महाराष्ट्र की सियासत
शिवेसना और एनसीपी को दो धड़ों में बट जाने के बाद महाराष्ट्र की सियासत बदल गई है. शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी बीजेपी के साथ खड़ी हैं. उद्धव ठाकरे के अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी(एस) ने कांग्रेस के साथ हाथ मिला रखा है. इसी गठबंधन के फॉर्मूले पर 2024 का लोकसभा चुनाव हुआ है, जिसमें बीजेपी नेतृत्व वाले गठबंधन को करारा झटका लगा है जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन के पक्ष में नतीजे रहे हैं.
महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन 30 सीटें जीतने में कामयाब रहा तो बीजेपी नेतृत्व वाले गठबंधन को 17 सीटों से संतोष करना पड़ा है. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और उसके 9 सांसद जीते हैं. इसके बाद उद्धव ठाकरे की शिवेसना (यूबीटी) के 9 और शरद पवार की एनसीपी (एस) के 8 सांसद जीते. वहीं, बीजेपी 23 सीट से घटकर 9 सीट पर सिमट गई तो शिंदे की शिवेसना के 7 और अजीत पवार की एनसीपी से एक लोकसभा सांसद जीतने में सफल रहे हैं.
लोकसभा चुनाव के बाद उभरी सियासी तस्वीर ने बीजेपी के लिए चिंता बढ़ा दी है. लोकसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस उभरी है और सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर 13 सीटों के साथ आई है, उसके चलते बीजेपी के नंबर वन के रुतबे पर संकट गहरा गया है. कांग्रेस पार्टी 2009 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. तब उसे 82 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लोकसभा सांसदों के हिसाब से देखें तो कांग्रेस के पास कुल 13 सांसद हैं, जो 86 विधानसभा सीट पर बढ़त को दर्शा रहे हैं. इसी तरह से बीजेपी की जीती हुई लोकसभा सीटों को विधानसभा सीट के लिहाज से देखते हैं तो 54 सीट पर ही उसे बढ़त मिलती दिख रही है. महाराष्ट्र में एक लोकसभा सीट में तकरीबन छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं.
ये है राजनीतिक स्थिति
लोकसभा सांसदों की संख्या में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना और बीजेपी बराबरी पर खड़ी नजर आ रही हैं. दोनों पार्टियों के पास 9-9 सांसद हैं. इसके बाद शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी के पास 8 और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के पास सात सांसद हैं, अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी के पास एक सांसद है. सांगली से निर्दलीय जीते विशाल पाटिल भी कांग्रेस के साथ हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव काफी मुश्किल भरा नजर आ रहा है.
बीजेपी को लोकसभा चुनावों में 1.66 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ था और 14 सीटें घट गई है. इतना ही नहीं बीजेपी को इस बार शिवसेना और एनसीपी को सीटें देने के साथ-साथ कुछ छोटे दलों को एडजस्ट करने की चुनौती है. बीजेपी इस बात को जानती है कि अगर 160 से कम सीटों पर चुनाव लड़ती है तो उसके जीत का आंकड़ा 100 से कम हो जाएगा. बीजेपी इन्हीं सारे गुणा भाग में जुटी है. ऐसे में बीजेपी शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी को सीट देने का का फॉर्मूला तलाश रही है. बीजेपी अगर एनडीए में बड़ा भाई बने रहना चाहती है, लेकिन सीट शेयरिंग में उसे अपने खाते में 160 से ज्यादा सीटें रखनी होगी. यह बात बीजेपी समझ रही, जिसके चलते ही सीट शेयरिंग और उसके बाद सौ प्लस का आंकड़ा पार करने की जुगत में है. इसके लिए सियासी और जातीय समीकरण बैठाने में जुटी है.