मानसून के मौसम में गोवा का मौज-मस्ती वाला उत्सव ‘साओ जोआओ’
मानसून का मौसम एक नए उत्साह के साथ खुशियां लेकर आता है. इन खुशियों को एक-दूसरे के साथ बांटकर मनाने को ही त्योहार कहा जाता है. मानसून के मौसम में उत्तर भारत में कई त्योहार मनाए जाते हैं, वहीं दक्षिण भारत के हर राज्य में वहां की संस्कृति के अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं. ऐसा ही एक मस्ती भरा गोवा का त्योहार है ‘साओ जोआओ’ जो गोवा में रहने वाले कैथोलिक समुदाय का त्योहार है, जिसे पूरे गोवा में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. ‘साओ जोआओ’ हर साल 24 जून को सेंट जॉन द बैपटिस्ट की याद में मनाया जाता है. इस अवसर पर कैथोलिक समुदाय के युवा अपनी परंपरा के अनुसार शराब पीते है और नाच गा कर त्योहार को रंगीन बना देते हैं.
गोवा की परंपरा
इस अवसर पर कैथोलिक समुदाय के युवा सिर पर पत्तों से बने मुकुट और गले में फूल-फलों की माला पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं. गोवा की परंपरा के अनुसार अगर किसी लड़की की नई-नई शादी हुई है और उसके घर में कुआं बना है, तो वह परिवार अपनी बेटी के ससुराल वालों को खाने-पीने की चीजों के साथ-साथ अन्य चीजें भी उपहार में देता है. कैथोलिक समुदाय के युवा हाथ में शराब की बोतलें लेकर कुएं में कूद जाते हैं.
‘साओ जोआओ’ त्योहार के अवसर पर लोग मांस और समुद्री जीवों से बने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हैं. मानसून के दौरान मनाए जाने वाले ‘साओ जोआओ’ त्योहार के अवसर पर युवा बारिश में भीगकर त्योहार और मानसून का आनंद लेते हैं. इस अवसर पर कैथोलिक समुदाय के लोग गोवा के पारंपरिक लोकगीतों के साथ नाचते-गाते हैं. जिसे देखना का अपना अलग ही मजा है. इस अवसर पर घर में बने स्वादिष्ट भोजन के साथ-साथ ताजे फलों का आदान-प्रदान किया जाता है, कैथोलिक लोग चर्च में आयोजित विशेष सामूहिक प्रार्थना में शामिल होते हैं.
‘साओ जोआओ’ का इतिहास
दरअसल, गोवा का ‘साओ जोआओ’ त्योहार कैथोलिक संत जॉन द बैपटिस्ट की जयंती है. कैथोलिक समुदाय के अनुसार, जब एंजेल गेब्रियल ने मदर मैरी को भगवान के इस फैसले के बारे में बताया कि मैरी जल्द ही मां बनने वाली हैं, तो मदर मैरी अपनी बहन एलिजाबेथ को यह खुशखबरी सुनाने के लिए गईं थी. उस समय एलिजाबेथ गर्भावस्था के छठे महीने में थीं. मदर मैरी ने एलिजाबेथ से कहा कि वह जल्द ही एक बच्चे को जन्म देंगी.
इस दौरान एलिजाबेथ के गर्भ में पल रहे बच्चे ने यह खबर सुनी, तो वह खुशी से उछल पड़ा, जिसे सिर्फ एलिजाबेथ ने भी महसूस किया था. कुछ महीनों के बाद, एलिजाबेथ ने सेंट जॉन नाम के एक बच्चे को जन्म दिया। सेंट जॉन का पालन-पोषण जंगल में हुआ था, यही वजह है कि उन्हें प्रकृति से बहुत लगाव था. यह सेंट जॉन प्रभु यीशु के मौसेरे भाई थे, और उन्होंने ने ही 30 साल की उम्र में जॉर्डन नदी में प्रभु यीशु को बपतिस्मा दिया था.
नावों की सजावट
गोवा में ‘साओ जोआओ’ उत्सव के अवसर पर नावों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया जाता है. इस अवसर पर स्थानीय कारीगर और कलाकार बांस, लकड़ी, केले के तने से नाव को बनाते हैं. इन नावों को सजाने के लिए रंग-बिरंगे रिबन, कपड़े, फूल, पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही इन नावों पर प्रभु यीशु, माता मरियम की आकर्षक मूर्तियां, चित्र लगाए जाते हैं. नावों को बनाने और सजाने के बाद उन्हें गोवा के बैकवाटर क्षेत्र में ले जाया जाता है जहां नावों पर सवार होकर लोग पारंपरिक धार्मिक लोकगीत गाते हैं. इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजक सबसे सुंदर नाव को पुरस्कृत भी करते हैं.
‘साओ जोआओ’ उत्सव, मानसून का आशीर्वाद
गोवा में ‘साओ जोआओ’ उत्सव के दिन प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए कैथोलिक समुदाय के लोग अपने गले में फूलों की माला और सिर पर ताजे फूलों, फलों और पत्तियों से बने पारंपरिक मुकुट पहनते हैं. जिसे स्थानीय गोवा की भाषा में ‘कोपेल’ कहा जाता है. कोपेल प्रकृति की सुंदरता के साथ-साथ अच्छी मानसून की बारिश, भूमि की उर्वरता का प्रतीक होता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि कोपेल पहनकर प्रार्थना करने से भगवान उनकी प्रार्थना सुनते हैं, जिससे उनके क्षेत्र में अच्छी पैदावार होती है.
गोवा के स्थानीय मौसमी फलों में कटहल, आम, अनानास शामिल हैं. इन फलों को स्थानीय लोग या तो बाजार से लाते हैं या फिर पेड़ों से सीधे तोड़कर. फिर इन फलों को चर्च में बिशप के पास ले जाया जाता है, जहां बिशप का आशीर्वाद मिलने के बाद इन फलों को दोस्तों और रिश्तेदारों में बांट दिया जाता है. गोवा में इन मौसमी फलों को मानसून का आशीर्वाद भी माना जाता है.
त्योहार के दिन का जश्न
‘साओ जोआओ’ त्यौहार मनाने के लिए उत्तरी गोवा में एक दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं. स्थानीय लोग आस-पास के इलाकों से अलाव जलाने के लिए लकड़ियां इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं. सभी अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर कोपेल बनाते हैं. इस मौके पर यहां आने वाले पर्यटकों को गोवा की संस्कृति को करीब से जानने और समझने का मौका भी मिलता है.
‘साओ जोआओ’ के दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठते हैं, नहा-धोकर नए रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं, फिर सभी प्रार्थना करने के लिए चर्च की ओर निकल पड़ते हैं. प्राथना के बाद जुलूस की शक्ल में धार्मिक गीत गाकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं. इस अवसर पर युवा खुले आम बीयर पीते नजर आते हैं. ‘साओ जोआओ’ के अवसर पर कुछ संगठन पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए लोक नृत्य और गीत का रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं. जिनमें शामिल हैं :
फुगड़ी डांस : यह गोवा का पारंपरिक फोक डांस हैं जो महिलाओं के द्वारा ही किया जाता है.
ढालो डांस : यह डांस आमतौर पर घरों में परिवार और खास लोगों के बीच किया जाता है. यह पूरी तरह से एक पारिवारिक निजी कार्यक्रम होता है.
मंडो डांस : यह गोवा का सबसे खूबसूरत डांस है. इसमें गोवा की पारंपरिक संस्कृति के साथ पुर्तगाल की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. इस दौरान युवा संगीत बजाने के लिए मैंडोलिन, गिटार, वायलिन आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग करते हैं और उसकी धुन पर जमकर डांस करते हैं.
गोवा कैसे पहुँचें
सड़क मार्ग: कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (KSRTC), महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) के अलावा गोवा के लिए कई निजी बस सेवाएं उपलब्ध हैं. बेंगलुरु, मुंबई से आने वाले पर्यटक अपने निजी वाहनों से NH-4 हाईवे से आ सकते हैं, वहीं केरल, मेंगलुरू से आने वाले पर्यटक NH-17 से आ सकते हैं. दोनों हाईवे की सड़कें बहुत अच्छी हैं, इसलिए पर्यटकों को यात्रा करने में कोई परेशानी नहीं होती है
रेल मार्ग : गोवा में दो मुख्य रेलवे स्टेशन हैं. पहला वास्को-द-गामा और दूसरा रेलवे स्टेशन मडगांव है. इन दोनों रेलवे स्टेशनों के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों से सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं. दिल्ली से मडगांव गोवा के लिए संपर्क क्रांति एक्सप्रेस (12450), हजरत निजामुद्दीन-तिरुवनंतपुरम एक्सप्रेस (22654), गोवा एक्सप्रेस (12780), मंगला एक्सप्रेस (12618) ट्रेनें है. गोवा एक्सप्रेस ट्रेन गोवा के दोनों स्टेशनों यानी वास्को-द-गामा और मडगांव तक जाती है. मडगांव रेलवे स्टेशन पणजी से लगभग 40 किमी और वास्को-द-गामा रेलवे स्टेशन लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है. दोनों स्टेशनों से टैक्सी लेकर पर्यटक आसानी से पणजी पहुंच सकते हैं.
हवाई मार्ग : गोवा का मुख्य हवाई अड्डा डाबोलिम है जो राजधानी पणजी से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. डाबोलिम हवाई अड्डा देश और विदेश के प्रमुख शहरों से सीधे जुड़ा हुआ है. इस हवाई अड्डे का टर्मिनल-1 घरेलू उड़ानों के लिए है, जबकि टर्मिनल-2 अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए है. देश के सभी प्रमुख शहरों से गोवा के लिए सीधी उड़ानें हैं. हवाई अड्डे से कैब लेकर पणजी पहुँचा जा सकते हैं