मान नहीं रहे ट्रूडो! भारत और चीन को कनाडा ने एक साथ दिया जोर का झटका!

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल का आखिरी साल चल रहा है. अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले पहले ट्रूडो कई सख्त फैसले ले रहे हैं. ट्रूडो के इन फैसलों का असर सीधे तौर पर देश की विदेश नीति पर पढ़ रहा है. ट्रूडो ने चीन की इलेक्ट्रिक कार कंपनियों को झटका देते हुए फैसला किया है कि देश में चीनी इलेक्ट्रिक व्हीकल पर 100 फीसद टैक्स लगाया जाएगा. इसके अलावा चीनी स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों पर भी 25 फीसद ज्यादा टैक्स लगाने का फैसला किया है.
दूसरी तरफ एक ट्वीट कर जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि वे कम वेतन वाली नौकरियों में विदेशियों की संख्या कम करने जा रहे हैं. कनाडा में भारी संख्या में भारतीय इन नौकरियों को करते है, इस फैसले से कनाडा में रहने वाले भारतीयों में बेरोजगारी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है.

Were reducing the number of low-wage, temporary foreign workers in Canada.
The labour market has changed. Now is the time for our businesses to invest in Canadian workers and youth.
— Justin Trudeau (@JustinTrudeau) August 26, 2024

क्यों बढ़ाया कारों पर टैक्स?
कारों पर टैक्स बढ़ाने का फैसला कनाडा सरकार ने उत्तर अमेरिका में चीनी कारों के ज्यादा आयात को रोकना के लिए उठाया है. ऐसा ही कदम अमेरिका और यूरोपीय संघ पहले ही उठा चुके हैं. अमेरिका में चीनी कारों पर 100 तो, यूरोपीय संघ ने 38 फीसद टैक्स लगाया है. कनाडा ऐसा कर घरेलू इलेक्ट्रिक बाजार को मजबूत करना चाहता है. कनाडा का ऑटोमोटिव बाजार 1,25,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार देता है और सरकार इसको बढ़ाने के लिए कई अरब डॉलर की मदद भी प्रदान कर रही है.
कनाडा ने चीनी कारों पर टैक्स बढ़ाने का तर्क देते हुए कहा कि चीनी कंपनियां पर्यावरणीय और श्रम मानकों का ध्यान नहीं रख रही हैं. कनाडा की ये नई नीति 1 अक्टूबर से लागू की जाएगी.
विदेशी कर्मियों को नहीं मिलेगी नौकरी
ट्रूडो ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एलान किया, “लेबर मार्केट बदल गई है. हम कनाडा में कम वेतन वाले अस्थाई विदेशी कर्मियों की तादाद कम करने जा रहे हैं. अब वक्त आ गया है कि हमारी कंपनियां कनाडा के ही वर्कर्स और युवाओं में इन्वेस्ट करें.
ये ऐलान ऐसे समय में किया गया है जब कनाडा तेज़ी से बढ़ती आबादी से जूझ रहा है, जिसके बारे में जानकारों का कहना है कि इसने आवास और स्वास्थ्य सेवा जैसी सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव डाला है.

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