मायावती छठी बार अध्यक्ष तो बन गईं, पर क्या BSP को बचा पाएंगी?
मायावती फिर से बीएसपी की अध्यक्ष चुन ली गई हैं. लखनऊ में बीएसपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ये फैसला हुआ. इससे पहले इस बात की चर्चा थी कि वे राजनीति से संन्यास ले सकती हैं. बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की तरह वे अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी की कमान सौंप सकती हैं. कांशीराम ने ही मायावती को पहली बार साल 2003 में अध्यक्ष बनाया था. कांशीराम ने साल 2001 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. छठी बार अध्यक्ष चुने जाने के बाद संन्यास की सभी चर्चा पर विराम लग गया है.
आकाश आनंद पहले की तरह मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी बने रहेंगे. वे पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर भी हैं. मायावती के छोटे भाई आकाश आनंद बीएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. एक दौर था जब मायावती ने अपने परिवार के किसी सदस्य को उत्तराधिकारी न बनाने का फैसला किया था, लेकिन अब परिवार के ही तीन सदस्य पार्टी में टॉप तीन पदों पर हैं.
ऑफिस के बाहर लगे पोस्टर पर केवल तीन चेहरे
लखनऊ में बीएसपी ऑफिस के बाहर तीन तरह के ही पोस्टर लगे हैं. पोस्टरों पर बीएसपी के तीन ही नेताओं के फोटो लगे हैं. पार्टी अध्यक्ष मायावती, उनके भाई आनंद कुमार और आनंद के बेटे आकाश आनंद. देश भर से आए बीएसपी के पदाधिकारियों की आज बैठक हुई. इस बैठक में मायावती ने पांच राज्यों में होने वाले चुनावों पर लंबी चर्चा की. हरियाणा में पार्टी में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया है. मायावती बाकी राज्यों में अकेले ही चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं.
एससी और एसटी रिजर्वेशन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही मायावती एक्शन में हैं. वे चाहती थीं कि इस बिल के खिलाफ एनडीए सरकार संसद में बिल लाए. पर ऐसा नहीं हो सका. इसके बाद उन्होंने इस फैसले के खिलाफ भारत बंद की अपील कर दी. बीएसपी कार्यकर्ता सड़क पर उतरे. आरक्षण के मुद्दे के बहाने वे बीएसपी फिर अपनी खोई हुई ताकत पाना चाहती है. केंद्र सरकार ने क्रीमी लेयर का विरोध किया है. लेकिन कोटे के अंदर कोटे वाले आरक्षण पर अभी केंद्र सरकार का रुख साफ नहीं है.
मीटिंग में दो तरह के नारों के क्या हैं सियासी मायने?
बीएसपी की मीटिंग में इस बार दो नए तरह के नारे लगाए गए. संविधान के सम्मान में, मायावती मैदान में. दूसरा नारा रहा आरक्षण के सम्मान में, मायावती मैदान में. ये दोनों नारे पहले नहीं लगा करते थे. दलितों के आरक्षण में कोटे के अंदर अलग कैटेगरी बनाने के मुद्दे पर मायावती देश भर के एससी समाज के लोगों को एकजुट करने की तैयारी में हैं. इस मामले में वे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीजेपी के समान रूप से कसूरवार मानती हैं.
तीस साल पुरानी बीएसपी अभी संकट के दौर से गुजर रही है. लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला. यूपी में मायावती चार बार मुख्यमंत्री रहीं. लेकिन उसी यूपी में बीएसपी का सिर्फ एक विधायक हैं. मायावती ने कहा कि लोकसभा में खराब प्रदर्शन के कारण बीएसपी की राजनीतिक ताकत कम हुई है. पार्टी दलितों के हित में सरकारों पर दबाव नहीं बना सकती हैं.
मायावती के सामने चुनौतियों का पहाड़
आज की तारीख में मायावती के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. उनका अपना दलित वोट बैंक बिखरने लगा है. इसका एक बड़ा हिस्सा एनडीए और इंडिया गठबंधन में शिफ्ट हो गया है. इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर घटकर 9 प्रतिशत रह गया. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को 22 फीसदी वोट मिले थे.
मायावती के साथ रहे सभी बड़े नेता अब दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं. बस पूर्व सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ही बचे रह गए हैं. चंद्रशेखर उनके लिए धीरे धीरे चुनौती बनने लगे हैं. मायावती और चंद्रशेखर दोनों जाटव बिरादरी से हैं. ऐसे में छठी बार अध्यक्ष चुनी गईं मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती बीएसपी को जिंदा रखने की होगी.