मैक्रों ने चला था मास्टरस्ट्रोक, अब उल्टा पड़ा दांव, फ्रांस में आखिर क्या होने वाला है?
लगभग 7 करोड़ की आबादी वाले फ्रांस में चुनाव चल रहे हैं. ये चुनाव 2027 में होने थे. लेकिन यूरोपीय संघ में नौ जून को बड़ी हार मिलने के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने करीब 3 साल पहले ही फ्रांस की संसद का चुनाव कराने का बड़ा ऐलान कर दिया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मैक्रौं के लिए समय से पहले संसद भंग कर देने का दांव एक बड़े जुए की तरह है.
मैक्रों को लग रहा था कि इस दांव से वो दक्षिणपंथी दलों को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं. लेकिन चुनाव से पहले हुए चुनावी सर्वे कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. फ्रांस में सेमी प्रेसिडन्शियल सरकार है. ये भारत से अलग है, क्योंकि भारत में संसदीय शासन है और इस शासन में सभी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होती हैं. चूंकि फ्रांस में सेमी प्रेसिडन्शियल सरकार है इसलिए यहां दोनों के चुनाव अलग-अलग होते हैं. यहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों के पास शक्तियां होती हैं.
मैक्रों पर उल्टा पड़ सकता है ये दांव
फ्रांस में राष्ट्रपति को जनता सीधे चुनती हैं. लेकिन ये राष्ट्रपति का चुनाव नहीं है. ये संसद का चुनाव है और भारत की तरह ही संसद में जीतकर आने वाले सदस्य प्रधानमंत्री चुनते हैं. अब आते हैं फ्रांस में चल रहे चुनाव पर. फ्रांस में ईवीएम से चुनाव नहीं होता है. फ्रांस में इस समय निचले सदन का चुनाव चल रहा है. ये भारत के लोकसभा जैसा है. मैक्रों ने अचानक नेशनल असेंबली भंग कर चुनावों का एलान कर दिया था. लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब ये दांव मैक्रों पर उल्टा पड़ सकता है.
यूरोपीय संघ के चुनाव में मैक्रों को बड़ा झटका
6 जून को यूरोपीय संघ की ससंद के लिए यहां चुनाव हुए थे. इसमें फ्रांस की राजनीतिक परिस्थितियों ने सबसे ज्यादा चौंकाया था. क्योंकि चुनाव में मरीन ला पेन की पार्टी नेशनल रैली ने मैक्रों को बड़ा झटका दिया था. मरीन दक्षिणपंथी नेता मानी जाती है. बस इसी हार से मैक्रों ने अचानक संसदीय चुनावों की घोषणा कर दी और कहा कि दक्षिणपंथी पार्टियां आगे बढ़ रही हैं और ऐसे हालातों को मैं स्वीकार नहीं कर सकता. मैक्रों को लग रहा कि इस दांव से वो दक्षिणपंथी दलों को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं.
पहली बार आ सकती है दक्षिणपंथी सरकार
फ्रांस के अगले प्रधानमंत्री बनने के काफी करीब पहुंच चुके दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी के नेता जॉर्डन बार्डेला ने फ्रांस में पहले राउंड का इलेक्शन एक तरफा जीत लिया था. मैक्रों के गठबंधन दल को वामपंथी पार्टी कड़ी चुनौती दे रहे हैं. जानकारों का मानना है कि ऐसा लग रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद देश में पहली बार दक्षिणपंथी सत्ता में आ सकते हैं. इससे यूरोपीय संघ में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
फ्रांस में राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली के चुनाव अलग-अलग होते हैं. ऐसे में अगर किसी पार्टी के पास संसद में बहुमत नहीं है तो भी राष्ट्रपति चुनाव में उस पार्टी का लीडर जीत सकता है. साल 2022 के चुनाव में इमैनुएल मैक्रों के साथ भी यही हुआ था. उस समय वे राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए थे, हालांकि नेशनल असेंबली में उनके गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था.
हारने के बाद भी राष्ट्रपति रहेंगे मैक्रों
मैक्रों की रेनेसां पार्टी और उनके गठबंधन को महज 70 से 100 के बीच सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है. नेशनल असेंबली के चुनाव में अगर मैक्रों की रेनेसां पार्टी हार भी जाती है तो मैक्रों पद पर बने रहेंगे. मैक्रों ने पहले ही कह दिया कि चाहे जो जीते, वे राष्ट्रपति पद से इस्तीफा नहीं देंगे. दरअसल, यूरोपीय संघ के चुनाव में हार के बाद अगर मैक्रों की पार्टी संसद में भी हार जाती है तो उन पर राष्ट्रपति पद छोड़ने का दबाव बनाया जा सकता है. इसलिए मैक्रों ने पहले ही साफ कर दिया कि वो राष्ट्रपति का पद नहीं छोड़ेंगे.
गठबंधन के सहारे मैक्रों
अभी तक मैक्रों सरकार गठबंधन के सहारे चल रही थी. उनके गठबंधन के पास 250 सीटें थीं और हर बार कानून पारित करने के लिए उन्हें अन्य कई दलों का समर्थन भी जुटाना पड़ता था. फिलहाल संसद में दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली के पास 88 सीटें हैं. राजनीतक जानकारों का मानना है कि दक्षिणपंथी पार्टी दूसरे चरण की वोटिंग के बाद 577 सीटों में से 230-280 सीटें जीत सकती है. साथ ही वामपंथी पार्टी को 125-165 सीटें मिल सकती है. मैक्रों की रेनेसां पार्टी और उनके गठबंधन को महज 70 से 100 के बीच सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है