मॉस्को ओलंपिक: जब गोल्ड मेडल के साथ खत्म हो गया भारतीय हॉकी का सुनहरा दौर

ओलंपिक के शुरुआती दौरे से भारतीय हॉकी टीम का दबदबा रहता था. हॉकी ही एक ऐसा खेल रहा, जिसमें भारत ने लगातार शानदार प्रदर्शन किया. भारत के ओलंपिक इतिहास में इसी खेल ने सबसे ज्यादा (12) मेडल जीते गए हैं. इसमें 8 गोल्ड, 1 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज मेडल शामिल है. 1928 से 1956 के बीच यानि 8 एडिशन में भारत ने 6 गोल्ड मेडल जीते थे. अब इस खेल में टीम को गोल्ड जीते हुए 44 साल हो चुके हैं, जिसे भारतीय टीम ने 1980 के मॉस्को ओलंपिक में हासिल किया था. आइये जानते हैं, उसी ओलंपिक की कहानी, जब भारत के युवा खिलाड़ियों ने हॉकी में आखिरी बार गोल्ड मेडल से देश का सिर गर्व से ऊंचा किया था.
मॉस्को में केवल हॉकी ने किया कमाल
मॉस्को ओलंपिक में भारत के कुल 76 एथलीट्स ने 8 खेलों में हिस्सा लिया था. शूटिंग हो रेसलिंग, बॉक्सिंग हो या वेटलिफ्टिंग, मॉस्को ओलंपिक में भारतीय एथलीट्स हर जगह नाकाम रहे थे. ज्यादातर खिलाड़ी पहले या दूसरे राउंड से बाहर हो गए. कोई भी खिलाड़ी भारत के लिए मेडल जीतने में कामयाब नहीं हुआ, तब भारतीय हॉकी टीम के युवा खिलाड़ियों ने कारनामा कर दिखाया था. उन्होंने स्पेन को फाइनल में हराकर भारत के लिए एकमात्र मेडल जीता था.
भारत ने पाया खोया हुआ गौरव
भारतीय हॉकी टीम का ओलंपिक में सुनहरा इतिहास रहा है. टीम ने पहले 1928, 1932 और 1936 में गोल्ड की हैट्रिक लगाई थी. वहीं देश की आजादी के बाद ये सिलसिला फिर शुरू हुआ और हॉकी टीम ने 1948, 1952 और 1956 के एडिशन में फिर से गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाई थी. हालांकि, 1960 में पाकिस्तान ने भारत के इस सिलसिले को तोड़ा और तब फाइनल में हारने के बाद सिल्वर से संतुष्टी करनी पड़ी थी. वहीं 1964 में भारत ने पाकिस्तान को हराकर अपना बदला पूरा किया, साथ ही एक बार फिर गोल्ड मेडल अपने नाम किया.
ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने जीते हैं 8 गोल्ड मेडल.
इसके बाद भारतीय टीम पटरी से उतर गई. इसका नतीजा ये हुआ कि 1968, 1972 और 1976 के ओलंपिक में टीम ने अपने सबसे बुरे दौर को देखा. 1968 और 1972 में जहां टीम केवल ब्रॉन्ज मेडल तक पहुंच पाई, वहीं 1976 में सातवें नंबर पर फिनिश किया. 12 सालों के बाद मॉस्को में भारतीय हॉकी टीम ने गोल्ड जीतकर फिर से अपना गौरव हासिल किया था. फाइनल में भारत ने टूर्नामेंट की सबसे मजबूत टीम स्पेन को 4-3 से मात देकर अपना 8वां गोल्ड मेडल जीता. हालांकि, दुखद बात ये रही कि इसके बाद भारत में हॉकी पतन हुआ और अगले मेडल के लिए 41 सालों का इंतजार करना पड़ा, जबकि गोल्ड मेडल का आज भी इंतजार है.
आर्मी चीफ ने युवाओं को किया था प्रेरित
1980 के ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम में युवा खिलाड़ियों को मौका दिया गया था. इन्हें इंटरनेशनल मुकाबलों और खास तौर से ओलंपिक जैसे बड़े इवेंट का अनुभव नहीं था. पूर्व भारतीय कप्तान जफर इकबाल, मौजूदा कप्तान वासुदेव भास्करन, मेरविन फर्नांडिज, एमएम सौमैया और बीर बहादुर छेत्री, केवल 4 खिलाड़ी ही थे, जो विदेशी टीम के खिलाफ खेलने का अनुभव रखते थे. इसलिए कप्तान भास्करन ने युवाओं को प्रेरित करने के लिए उन्होंने एक प्लान के बनाया. बेंगलुरु में उन्होंने प्री-ओलंपिक कैंप लगाया और उस वक्त के आर्मी चीफ फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ को इसके लिए आमंत्रित किया. आर्मी चीफ ने युवा खिलाड़ियों से दो बार मुलाकात की और उन्हें अपने भाषण से प्रेरित किया, जिसका असर ओलंपिक में दिखा.
ये रहा टर्निंग पॉइंट
1980 के मॉस्को ओलंपिक में पहले 12 टीम शामिल होने वाली थीं. हालांकि, बाद में इसे घटाकर 6 टीमों तक सीमित कर दिया गया था, जिन्हें दो ग्रुपों में बांटा गया था. भारत, स्पेन, पोलैंड, क्यूबा, तंजानिया और मेजबान देश सोवियत यूनियन इसका हिस्सा थे. भारत ने अपने ग्रुप में तंजानिया को 18-0 से हराया था, वहीं पौलेंड के खिलाफ 2-2 से ड्रॉ खेला था. इसके बावजूद कप्तान भास्करन चिंतित थे, क्योंकि टीम ने पोलैंड के खिलाफ बहुत से मौके गंवाए थे. हालांकि, टूर्नामेंट की सबसे मजबूत टीमों में से एक स्पेन के खिलाफ 2-2 से ड्रॉ खेलने के बाद टीम का आत्मविश्वास फिर से लौट आया.
कप्तान भास्करन के मुताबिक, ये टीम के लिए टर्निंग पॉइंट था. इसके बाद भारत ने क्यूबा को 13-0 से रौंदकर सेमीफाइनल में एंट्री की और फिर रूस को मात देकर फाइनल में जगह बनाया. सेमीफाइनल में भास्करन ने सोवियन यूनियन के खिलाफ एक अलग टैक्टिस बनाई थी. वो पेनाल्टी कॉर्नर के लिए एक विकल्प तलाश रहे थे. इसके लिए उन्होंने वीडियो फूटेज का सहारा लिया.
रोमांचक मुकाबले में स्पेन को हराया
फाइनल का मुकाबला भारतीय टीम के लिए आसान नहीं था. पूरा स्टेडियम दर्शकों से भरा हुआ था और टीम पर मेडल की उम्मीदों का भार था. हालांकि, टीम ने अच्छी शुरुआत की और मिडफील्डर सुरिंदर सिंह सोढ़ी ने हाफ टाइम तक दो गोल दागकर मजबूत स्थिति में ला दिया. जबकि सेकेंड हाफ शुरू होते ही एमके कौशिक ने एक और गोल दाग दिया. ये मैच अब आसान लग रहा था, लेकिन तभी स्पेन ने पलटवार किया. स्पेन दो मिनट के अंदर दो गोल दाग दिए, इससे स्कोर 3-2 पर आ खड़ा हुआ.
इसके बाद कप्तान भास्करन ने एक चाल चली. उन्होंने मोहम्मद शाहिद को सेंटर फॉरवर्ड से मैदान पर उतारा और ये ट्रिक काम कर गई. शाहिद ने भारत के लिए चौथा गोल दागा, जो मैच का सबसे अहम गोल साबित हुआ. मैच के आखिरी मिनट में स्पेन के कप्तान ने तीसरा गोल दागकर हैट्रिक तो लगाई, लेकिन भारत को मैच जीतने से नहीं रोक सके. अंत में भारत ने इस मुकाबले को 4-3 से जीत लिया.

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