यहां मनाया जाता है भारत का ‘इंटरनेशनल दशहरा’, दुनिया के कोने-कोने से देखने आते हैं लोग

Dussehra Festival: वैसे तो दशहरा एक ही दिन मनाया जाता है. लेकिन भारत में एक ऐसी जगह भी है, जहां लगभग एक हफ्ते तक ये त्योहार मनाया जाता है. यहां हम बात कर रहे हैं कुल्लू के इंटरनेशनल दशहरे की. माना जाता है कि यहां 300 से ज्यादा देवी-देवता दशहराउत्सव में हिस्सा लेते हैं. बता दें कि कुल्लू में 13 अक्टूबर से दशहरे की शुरुआत होगी.
कुल्लू का दशहरा न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी खूब फेमस है. जब देश के बाकि हिस्सों में दशहरा मना लिया जाता है, तब कुल्लू में दशहरे की शुरुआत होती है. बता दें कि यहां भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ दशहरा उत्सव का आगाज होता है. विजय दशमी के दिन जहां सब जगह रावण के पुतले जलाकर दशहरा मनाया जाता है तो वहीं, कुल्लू में रथयात्रा निकाली जाती है. आइए कुल्लू दशहरे की अनसुनी बातों के बारे में जानते हैं.
कुल्लू दशहरे का इतिहास
कुल्लू दशहरा का इतिहास लगभग साढ़े 300 साल पुराना है. स्थानीय लोगों की मानें तो राजा जगत सिंह के शासन में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के चलते ब्राह्मण ने आत्मदाह कर लिया. जिसके बाद ब्राह्मण की मौत का दोष राजा पर लगा और उन्हें असाध्य रोग हो गया.

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राजा की ऐसी हालत होने पर उन्हें एक बाबा ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम, माता सीता और हनुमान जी की मूर्ति लाएं. अपना सारा राज-पाठ भगवान के नाम कर दें तो इससे उन्हें इस दोष से मुक्ति मिल जाएगी.
स्थापित की राम जी की प्रतिमा
राजा ने सन् 1653 में रघुनाथ जी की प्रतिमा को मणिकर्ण मंदिर में रखा. इसके 7 सालों बाद यानी 1660 में इसे विधि-विधान से कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया. कहा जाता है कि ऐसा करते ही राजा को रोग से मुक्ति मिल गई. इसी कारण भगवान रघुनाथ के सम्मान में राजा जगत सिंह ने इसी साल कुल्लू में दशहरा मनाना शुरू किया, जो आज तक जारी है.
लोगों की आती है भीड़
दशहरा उत्सव माता हडिम्बा के आगमन से शुरू होता है. इस पूरे हफ्ते के दौरान अलग-अलग राज्यों के सांस्कृतिक दल और विदेशों से लोक नर्तक अपनी शानदारप्रस्तुतियां पेश करते हैं. कुल्लू में दशहरा उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में लोग आते हैं.

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