यूपी के इस गुंडे के सामने झुकता था दाऊद, मुख्तार-अतीक भी नहीं लेते थे पंगा
1990 के दशक में उत्तर प्रदेश के वाराणसी से एक लड़का मुंबई पहुंचता है. इसकी आंखों में सपना कुछ बड़ा बनने का था. मगर उसने जो किया, उससे जुर्म के दलदल में फंसता चला गया. दिखने में मासूम से लड़के ने जब अपराध से अपना हाथ मिलाया तो दाऊद का भी गुरु बन गया. इस गुंडे को बच्चा-बच्चा जानता था. जेल में इसका दरबार लगता था. कई मुल्कों की पुलिस के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया था. यह लड़का यूपी का बाहुबली सुभाष ठाकुर था. उसके सिर पर अनगिनत अपराध थे, जिसे कई मुल्कों की पुलिस ढूंढ रही थी.
वाराणसी का सुभाष ठाकुर एक सीधा-साधा लड़का हुआ करता था. एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने के नाते उसे जुर्म की A,B,C, D भी नहीं आती थी. मगर, वो तब बदल गया, जब 17 साल की उम्र में उसने कुछ बड़ा करने का सोचा. किस्मत को चमकाने के लिए उसने मुंबई का रुख किया. यहां कुछ महीने काम करने के बाद सुभाष को लगने लगा कि इस तरह के काम से वह अपना पेट तो भर सकता है लेकिन कभी अपने उन सपनों को पूरा नहीं कर सकता, जिन्हें लेकर वह मायानगरी में आया है.
दरअसल, बचपन से ही बेरोजगारी और बुरे दिन देखने के बाद सुभाष ठाकुर ऐसी जिंदगी नहीं जीना चाहता था, जहां उसे गरीबी का मुंह देखना पड़े. इसलिए वह दूसरे रास्तों की तलाश में था. संयोग से उन दिनों ऐसा वाक्य हो गया, जिसने उसकी जिंदगी बदल दी. हुआ यूं कि मुंबई के विरार इलाके में पावभाजी का ठेला लगाने वाले उसके एक दोस्त से हफ्ता वसूली को लेकर मराठी गुंडों का झगड़ा हो जाता है.
सुभाष ठाकुर.
इसलिए सुभाष ने उस दिन पहली बार उन मराठी गुंडों की जमकर पिटाई कर दी. यहां से दबंगई और मनमानी करने की जिद उसके कैरेक्टर में साफ झलकने लगी. इस घटना में सुभाष की ताकत तो गुंडों को साफ दिख गई, लेकिन वो भी कहां पीछे हटने वाले थे. यह पहली बार था, जब उनके इलाके में हफ्ता वसूली को किसी ने ललकारा था. ऐसे में वो कहां चुप बैठते, आगे अंजाम यह हुआ कि मार-पिटाई का यह किस्सा सुभाष को भारी पड़ गया.
क्राइम की दुनिया में एंट्री
मराठी लड़कों ने पुलिस में सेटिंग के बूते सुभाष के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस ने सुभाष को उठा लिया और जमकर पिटाई करके उसे जेल भेज दिया. कुछ दिन बाद उसकी जमानत तो हो गई, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी पुलिस ने उसको परेशान करना नहीं छोड़ा. यहां पर क्षेत्रवाद का एंगल काम कर गया. ऊपर से लोकल मराठी लड़कों को स्थानीय नेताओं की शह थी, जिनके दबाव में पुलिस को भी आना पड़ता था.
इसलिए उनके कहने पर पुलिस को झूठी शिकायत पर सुभाष को पकड़ना भी पड़ता था. ऐसे में सुभाष कुछ ही महीनों में मायानगरी के बारे में समझ गया था कि अगर यहां रहना है तो दबकर नहीं बल्कि दबाकर रहना होगा. इसके बाद सुभाष ने जुर्म की दुनिया में एंट्री ली और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह एक के बाद एक ताबड़तोड़ वारदातों को अंजाम देता चला गया और इसी वजह से जुर्म की दुनिया में उसके नाम का दबदबा बहुत तेजी से बढ़ता गया.
जब दाऊद ने बनाया गुरु
मुंबई में लोग सुभाष ठाकुर के नाम से कांपने लगे थे. वह बिल्डरों और बड़े कारोबारियों पर शिकंजा कसता जा रहा था. यह वह वक्त था, जब उसका कारोबार यूपी से लेकर मुंबई तक फैला हुआ था. धीरे-धीरे उसका नाम भारत के हर गुंडे की जुबान पर चढ़ गया. उसी वक्त दाऊद इब्राहिम ने अपराध जगत में कदम रखा और उसने सुभाष को अपना गुरु बना लिया.
दाऊद इब्राहिम.
दाऊद ने सुभाष का हाथ थाम लिया और उसके साथ रहकर काम करने लगा. जब दाऊद का काम सुभाष की नजर में छाया तो उसने भी दाऊद को अपना शिष्य बना लिया. यहां से दाऊद को सुभाष से जुर्म करने के तरीके सीखने को मिले और धीरे-धीरे वह सुभाष के कदमों पर चलकर बड़ा गुंडा बनकर उभरा.
क्यों दोनों हुए अलग
दाऊद भी सुभाष को बहुत मानता था, लेकिन दोनों के रिश्तों में खटास पैदा उस समय हो गई, जब सुभाष ठाकुर छोटा राजन और दाऊद के साथ मिलकर मुंबई में काम कर रहा था. इस दौरान दाऊद ने अपनी निजी दुश्मनी के चलते गैंगवॉर में उन लोगों को मार डाला, जिसके सुभाष बिल्कुल खिलाफ था. इसके अलावा उसने आतंकियों के साथ मिलकर मुंबई हमले को अंजाम दिया. सुभाष गुंडा जरूर था लेकिन वह देशद्रोही नहीं था. इसलिए सुभाष के बाद अब लोग दाऊद को बड़ा नाम मानने लगे और इसी के चलते दोनों के रिश्ते टूटते चले गए.
बरसों एक-दूसरे को दोस्त मान रहे दोनों अब एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए. सुभाष ने दाऊद से उसने अपने सारे ताल्लुक तोड़ दिए और इसके बाद दाऊद देश से बाहर चला गया, लेकिन सुभाष ने मुंबई को नहीं छोड़ा. बाद में सुभाष ठाकुर ने दाऊद के दुश्मन बन चुके छोटा राजन के साथ हाथ मिला लिया. दाऊद नाम की मुश्किल कई बार सुभाष के सामने जरूर आई, लेकिन यह उसकी किस्मत रही कि उसको कुछ नहीं हो सका.
जेजे अस्पताल हत्याकांड बना जंजाल
6 जुलाई 1992 को मुंबई के नागपाड़ा के अरब गली में दाऊद इब्राहिम के बहनोई इस्माइल पार्कर की गावली गुंडों ने हत्या कर दी थी. इस हत्या ने दाऊद को हिलाकर रख दिया था. यह उसके मुंह पर बेहद जोर का तमाचा था. ऐसे में अपने बहनोई के कत्ल का बदला तो उसने लेना ही था. इसका जिम्मा सुभाष ठाकुर और छोटा राजन ने उठाया था.
इन्होंने 12 सितंबर 1992 को मुंबई के जेजे अस्पताल में गावली के शूटर शैलेश की दिनदहाड़े हत्या कर दी. कोर्ट में सुभाष ठाकुर का नाम आया और उसे इस केस के चलते साल 2000 में आजीवन कारवास की सजा सुनाई. उसने सुप्रीम कोर्ट से जान की हिफाजत के लिए गुहार लगाई. उसका मानना था कि दाऊद उसकी जान के पीछे पड़ा है. ऐसे में अगर वह जेल में रहा तो सबसे पहले वही उसे मारने की कोशिश करेगा.
बृजेश सिंह को भी दिया सहारा
साल 2017 में भी सुभाष ने यूपी के बनारस कोर्ट में एक याचिका दायर कर बुलेट प्रूफ जैकेट और सुरक्षा की मांग की थी. हालांकि उसकी मांगों पर गौर नहीं किया गया. जेल में अपने दबंग कैरेक्टर को छोड़कर उसने लंबी दाढ़ी और लंबे बाल रखन शुरू कर दिया. इसीलिए लोग उसे बाबा कहने लगे. जेल में रहते हुए भी सुभाष ठाकुर का रोब कमजोर नहीं पड़ा.
मुख्तार अंसारी.
यह सुभाष की दबंगई और ताकत ही थी कि उसने अपने दम पर वह पूर्वांचल की राजनीति को भी कंट्रोल किया. यूपी के बाहुबली बृजेश सिंह को जब सुभाष ठाकुर ने सहारा दिया तो उसकी किस्मत भी चमकने लगी. बाहुबली मुख्तार अंसारी से लेकर अतीक अहमद तक कोई भी सुभाष ठाकुर से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था. एक बाबा के रूप में भी लोगों पर उसका एक बड़ा इन्फ्लुएंस रहा और इसी इन्फ्लुएंस के दम पर यूपी से लेकर मुंबई तक में सुभाष ठाकुर का कारोबार आज भी फैला हुआ है.