यौन उत्पीड़न केस: बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ याचिका पर SC में हुई सुनवाई, नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला स्टाफ की याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है. इस याचिका में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों का हवाला देते हुए संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को दी गई छूट को चुनौती दी गई है.
इस याचिका में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल सरकार को राज्य पुलिस के माध्यम से मामले की जांच करने और राज्यपाल का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है. याचिकाकर्ता की मांग है कि अनुच्छेद 361 के तहत मिली छूट का राज्यपाल किस तरह से इस्तेमाल कर सकता है इस पर भी दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं.
कोर्ट में याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 जांच के खिलाफ बाधा नहीं बन सकता. दीवान ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि जांच ही न हो, साक्ष्य अभी जुटाए जाने चाहिए. उन्होंने अदालत से मांग की कि राज्यपाल के खिलाफ जांच को अनिश्चितकाल के लिए नहीं टाला जा सकता.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि राज्यपाल आपराधिक कृत्यों को लेकर इस छूट का दावा नहीं कर सकते. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि इस इम्यूनिटी से उन्हें मुकदमा शुरू करने के लिए राज्यपाल का पद छोड़ने का इंतजार करना पड़ेगा, जो अनुचित है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
भारत सरकार को पक्षकार बनाने की छूट
वहीं इस पर सुनवाई करते हुए CJI डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले में भारत सरकार को पक्षकार बनाने से छूट दी है. कोर्ट ने इस याचिका में भारत के अटॉर्नी जनरल से सहायता करने को भी कहा है.
बंगाल गवर्नर पर यौन उत्पीड़न का आरोप
पश्चिम बंगाल के राजभवन की महिला कर्मचारी ने 2 मई को राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. महिला का आरोप है कि वो 24 मार्च को स्थायी नौकरी का निवेदन लेकर राज्यपाल के पास गई थी. तब राज्यपाल ने उसके साथ बदसलूकी की थी. याचिका में महिला ने बंगाल पुलिस से मामले की जांच और अपनी और अपने परिवार के लिए सुरक्षा की मांग भी की है.
क्या है अनुच्छेद 361?
संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत, राज्यपाल के खिलाफ उसके कार्यकाल के दौरान कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं जा सकती है, इस आर्टिकल में राष्ट्रपति, राज्यपाल को संवैधानिक मुखिया होने के नाते सिविल और क्रिमिनल मामलों में संवैधानिक सुरक्षा दी गई है. इसका मकसद राज्य और देश के संवैधानिक पद पर बैठे प्रमुख लोग बिना किसी डर के अपने पद की जिम्मेदारी को निभा सकें.