रतन टाटा को विरासत में मिला था ये ‘हुनर’, हर घाटे के सौदे से कमाया ‘मुनाफा’

रतन टाटा… आज हर किसी की जुबान पर बस यही एक नाम है. इसकी वजह भी वाजिब है. भारत ने आज अपने एक ऐसे ‘रतन’ को खोया है, जिसकी भरपाई करने में अब कई पीढ़ियां गुजर जाएंगी. लेकिन एक बात ऐसी है, जो रतन टाटा को टाटा फैमिली की विरासत से मिली है. मतलब कि ये ऐसा हुनर है जो हर घाटे के सौदे को मुनाफे में बदल देता है और इतना ही नहीं ‘House of Tata’ के फाउंडर जमदेशजी टाटा से लेकर जेआरडी टाटा और रतन टाटा तक सबके पास रहा है.
जी हां, घाटे के सौदे को मुनाफे में बदलने के किस्से की शुरुआत होती है, जमशेदजी टाटा से… चलिए समझते हैं इस पूरी कहानी को…
जमशेदजी टाटा
जमदेशजी टाटा ने ‘ताज होटल’ शुरू करने से पहले कपड़े के कारोबार में हाथ आजमाया था. उन्होंने 1874 में 1.5 लाख रुपए लगाकर महाराष्ट्र के नागपुर में सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग और मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की शुरुआत की. बाद में इसका नाम एम्प्रेस मिल (Empress Mill) हो गया. कपड़े के इस कारोबार की सफलता ने जमशेदजी टाटा का साहस बढ़ाया और उन्होंने 1886 में बंबई के कुर्ला में बनी धर्मसी मिल को खरीद लिया. ये कंपनी 4 साल से घाटे में चल रही थी, लेकिन अपने हुनर के दम पर उन्होंने इस कंपनी को फिर से प्रॉफिटेबल कंपनी बना दिया.
जमदेशजी ने उस समय इसका नाम बदलकर स्वदेशी मिल रखा, लेकिन मुंबई की स्वदेशी मिल तब श्रमिकों की कमी, पुरानी और खराब मशीनरी जैसी दिक्कतों का सामना कर रही थी. ये टाटा के नाम पर भी धब्बा बनती जा रही थी. यहां के प्रोडक्ट्स को लेकर लगातार आ रही शिकायतों ने Tata के नाम को ही दांव पर लगा दिया. दो साल बाद ही ये मिल शेयर होल्डर्स के लिए घाटे का सौदा बन गई. इसके शेयर की कीमत चौथाई रह गई. लेकिन जमशेदजी टाटा ने इसे बचाने के लिए अपना सब कुछ लगा दिया. उन्होंने स्वदेशी मिल में और निवेश किया, एम्प्रेस मिल के शेयर्स बेच दिए, नई मशीनरी लगवाई और नागपुर की मिल से अनुभवी लोगों को लाकर जिम्मेदारी दी और देखते ही देखते ये मिल अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही.
जेआरडी टाटा
ऐसा ही किस्सा जेआरडी टाटा की जिंदगी से भी जुड़ा है. उन्होंने भारत को देश की पहली एयरलाइंस ‘एअर इंडिया’ दी. ये उस दौर की सबसे लग्जरी एयरलाइंस थी, वह भी ऐसे समय में जब एयर ट्रैवल बहुत ज्यादा पॉपुलर नहीं था और मुनाफे का सौदा भी नहीं. लेकिन जेआरडी टाटा ने एअर इंडिया को इस तरह बनाया कि वह दूसरे देशों में ‘भारतीय संस्कृति का आईना’ बन गई. इतना ही नहीं, देखते ही देखते उसकी ख्याति ऐसी फैली कि दुनिया के कई देश उसके मॉडल को रेप्लिकेट करने के लिए भारत में ट्रेनिंग करने आने लगे.
अब दोबारा से ‘एअर इंडिया’ टाटा समूह के पास आ चुकी है और लोगों को इसके फिर से ‘मुनाफा’ कमाने का इंतजार है. जेआरडी टाटा के दौर में टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, टाटा सॉल्ट, टाइटन और लेक्मे जैसी कई कंपनियों की या तो शुरुआत हुई या उनका कैनवास बड़ा हुआ.
रतन टाटा
इसी तरह रतन टाटा ने लगभग 30 साल तक टाटा ग्रुप की कमान संभाली. एक लाइन में कहा जाए, तो टाटा ग्रुप को उन्होंने मल्टीनेशनल या ग्लोबल कंपनी बनाने का काम किया. 90 के दशक में जब देश में आईटी बूम आया, तब उन्होंने ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) का रंग रूप बदल दिया. आज ये दुनिया की दूसरी सबसे वैल्यूएबल आईटी कंपनी है. जबकि रोजगार देने के मामले में ये दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनी है. इसके एम्प्लॉइज की संख्या 6 लाख से भी ज्यादा है. टाटा मोटर्स को कमर्शियल व्हीकल कंपनी से पैसेंजर व्हीकल कंपनी में ट्रांसफॉर्म करना. फ्लॉप होने पर उसे दोबारा खड़ा करना. ब्रिटेन की कोरस स्टील, टेटली टी और बाद में जगुआर एवं लैंडरोवर जैसे कार ब्रांड को खरीदकर उन्हें घाटे से मुनाफे में लाना, ये उनकी निजी विरासत का हिस्सा हैं.
उनकी सबसे बड़ी पहचान देश के आम आदमी को कार में चलने का सपना दिखाना और महज 1 लाख रुपए में Tata Nano को लॉन्च करना है.

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