रूस के ब्रिक्स सम्मेलन में हो सकती है मोदी-जिनपिंग की मुलाकात, रिश्तों में नई शुरुआत के मिल रहे संकेत

रूस के कजान में 22 से 24 अक्टूबर तक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन होगा, जो कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच महत्वपूर्ण बैठक का मंच बन सकता है. 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद से दोनों नेताओं ने सीधे तौर पर कोई बातचीत नहीं की है. हाल के महीनों में हुए कूटनीतिक प्रयास इस बात का संकेत दे रहे हैं कि दोनों देश अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं. भारत और चीन के संबंधों को सुधारने में पर्दे के पीछे रूस की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
2020 में गलवान घाटी में झड़प हुई थी. इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. इससे कहीं ज्यादा चीनी सैनिक मारे गए थे. पिछले चार साल से अधिक समय में तीन दर्जन से अधिक सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के बावजूद, मोदी और जिनपिंग के बीच सीधी बातचीत न होने से दोनों देशों के बीच अविश्वास गहराता गया. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बने तनाव ने किसी भी तरह के सामान्यीकरण की कोशिशों को असफल कर दिया. अगले महीने होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शीर्ष राजनीतिक स्तर पर जारी खामोशी टूट सकती है.
डोभाल-वांग यी की मीटिंग: अंतिम तैयारियों की रूपरेखा
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच 12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में बैठक हुई. इसी दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने की दिशा में एक और सकारात्मक कदम माना जा रहा है. बैठक में डोभाल ने एलएसी पर शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि जब तक सीमा क्षेत्र में स्थिरता और शांतिपूर्ण हल नहीं होता तब तक सामान्य द्विपक्षीय संबंध बहाल नहीं हो सकते. वांग यी ने भी सकारात्मक संकेत देते हुए रणनीतिक विश्वास को बढ़ाने की बात कही है.
यह उच्च-स्तरीय वार्ता इस बात का संकेत है कि दोनों पक्ष सीमा विवाद को हल करने के लिए तैयार हैं. भले ही व्यापक संबंधों में चुनौतियां बनी रहें. इस मुलाकात को मोदी-जिनपिंग बैठक के लिए मंच तैयार करने के रूप में देखा जा सकता है. जहां दोनों पक्ष तनाव को कम करने के लिए सीधे संवाद की आवश्यकता को पहचान रहे हैं.
जयशंकर-वांग यी की बैठक: संबंध सुधार की दिशा में एक और कदम
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और वांग यी के बीच 25 जुलाई को वियंतियाने, लाओ पीडीआर में आसियान से संबंधित बैठकों के दौरान हुई बातचीत ने इन कूटनीतिक प्रयासों को और गति दी है. दोनों नेताओं ने एलएसी पर आपसी मुद्दों को सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने पर चर्चा की थी. जयशंकर ने दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के लिए आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता की आवश्यकता पर जोर दिया था. दोनों पक्षों ने सहमति व्यक्त की थी कि सीमा पर तनाव घटाना सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण है.
इस बैठक से पहले जुलाई में ही अस्ताना में भी दोनों विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई थी. इसमें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले सीमा विवाद को हल करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया था. एनएसए अजीत डोभाल के साथ वांग यी की बातचीत से यह संकेत मिलता है कि मोदी-जिनपिंग संवाद के लिए सही परिस्थितियां बनाने के लिए ठोस कूटनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं.
रूस की भूमिका: भारत और चीन के बीच की कड़ी
भले ही औपचारिक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया गया हो लेकिन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला रूस, प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित बैठक को करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. रूस के भारत और चीन दोनों ही देशों के साथ मजबूत संबंध हैं. साथ ही भारत-चीन विवाद में रूस ने खुद को एक तटस्थ पार्टी के रूप में स्थापित किया है, जो इन दो एशियाई दिग्गजों के बीच मध्यस्थता करने में सक्षम है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ करीबी संबंध साझा करते हैं. राष्ट्रपति पुतिन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का उपयोग भारत और चीन के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए एक अवसर के रूप में कर सकते हैं. इसमें ब्रिक्स ढांचे के भीतर क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग पर जोर दिया जाएगा.
रूस की प्राथमिकताएं भी भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने में रुचि रखने के लिए प्रेरित करती हैं. पश्चिम के साथ मास्को के बढ़ते तनाव के बीच, रूस ब्रिक्स गठबंधन को मजबूत करने के लिए उत्सुक है. भारत-चीन के बीच समझौता ब्रिक्स की एकता और वैश्विक स्थिति को बढ़ाएगा. दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए रूस खुद को तटस्थ मंच के तौर पर मुहैया कर सकता है.
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: एक कूटनीतिक सफलता का अवसर
कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भारत और चीन के संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करता है. यह शिखर सम्मेलन, जो ब्रिक्स के विस्तार के बाद का पहला है, मोदी और जिनपिंग को सीमा सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत करने का एक आदर्श मंच प्रदान करने वाला है. अगर बैठक होती है तो यह 2020 के बाद दोनों नेताओं के बीच पहली सीधी वार्ता होगी. उनके द्विपक्षीय संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत हो सकता है.

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